मतदाता सूची को आधार कार्ड से जोड़ने की योजना गुप्त मतदान की अवधारणा को बदल देती। आधार से जोड़ने के नाम पर मतदाता का सारा रिकार्ड आधार को चलाने वाली संस्था UIADI के पास होगा। किसी को पता नहीं कि यह संस्था भीतर भीतर कैसे काम करती है। सरकार के नियंत्रण से चलने वाली यह संस्था मतदाता की पहचान को लेकर क्या खेल करेगी यह अभी आज के समाज को समझ नहीं आएगा। चुनाव अब चुनाव नहीं रहा। इलेक्टोरल फंड के कारण वैसे भी चंदे का हिसाब एक पार्टी के पक्ष में हो चुका है। एक ही बैंक से बॉन्ड ख़रीदने के कारण सरकार के पास उसका रिकार्ड नहीं होगा, यह वही मान सकता है जो चुनाव के समय विपक्ष नेताओं के घर आयकर विभाग की छापेमारी को क़ानून का अपना काम समझता है । गुप्त मतदान लोकतंत्र की जान है। आधार नंबर से सब जाना जा सकेगा। जो आश्वासन दे रहा है उसी के पास जानकारी होगी और वही इसका खेल खेलेगा।
हम सब तेज़ी से नियंत्रण किये जाने की तरफ़ बढ़ रहे हैं। इस टेक्नॉलजी को समस्या के समाधान के रुप घुसाया जाता है और फिर दूसरी समस्या खड़ी की जाती है। मैं टेक्नॉलजी का विरोधी नहीं हूँ लेकिन बिना सोचे समझे पर बात में आधार आधार करने वाला समाज का दम एकदिन घुटने वाला है। आधार कहाँ कहाँ आपकी निजी जानकारियों का नेटवर्क बना रहा है और उसके आधार पर आपके निजी जीवन में किस तरह का नियंत्रण आने वाला है यह अब दिखने लगा है।
यह जो खेल खेला गया है उसे समझिए। हा हा ही ही का टाइम चला गया।
(रवीश कुमार की FB वॉल से)