Roznama Khabrein
No Result
View All Result
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو
اردو
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو
No Result
View All Result
No Result
View All Result
Home विचार

आज़ादी के बाद भारत में मुसलमान सियासी ताक़त क्यों नहीं बन सके?

RK News by RK News
December 23, 2021
Reading Time: 1 min read
0
आज़ादी के बाद भारत में मुसलमान सियासी ताक़त क्यों नहीं बन सके?

✍लेखक : कलीमुल हफ़ीज़

RELATED POSTS

मुसलामानों का वर्तमान राजनितिक परिदृश्य; शकीलुर रहमान

आवास को मस्जिद में बदलने का आरोप, हिंदू ब्रिगेड की आपकत्ति के बाद फातिमा मस्जिद पर ताला

समर्थकों के दबाव में बदले हैं भागवत :एक नजरिया

भारत में मुसलमान लगभग एक हज़ार साल से आबाद हैं। लम्बे समय तक वो शासक रहे। इसके बावजूद उनकी सियासी सूझबूझ और सियासी समझ पक्की नहीं है। भारत में वो सियासी तौर पर कोई ताक़त नहीं बन सके। कोशिशें हुईं, लेकिन नाकाम हो गईं। लीडर्स उठे, मगर अपनी तमाम कोशिशों के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला। कुछ तहरीकें बहुत ज़ोर-शोर से उठीं लेकिन साबुन के झाग साबित हुईं।

अब भी कोशिशें हो रही हैं, लेकिन उम्मीद का सूरज निकलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। जबकि हर पार्टी, जमात और हर गरोह इसकी ज़रूरत गुज़रते वक़्त के साथ शिद्दत से महसूस करता रहा है। अपने-आपको मिल्लत का सेवक समझनेवाला हर व्यक्ति फ़िक्रमंद है। हर चेहरे पर फ़िक्र के आसार हैं। फिर क्या वजह है कि मुसलमान सियासी हैसियत में पहले से ज़्यादा बे-वज़्न हो गए हैं? मेरी राय में इसकी कुछ वजहें हैं।

सबसे पहली वजह ये है कि भारत का आम मुसलमान कभी सियासी नहीं रहा। मुस्लिम बादशाहों के ज़माने में भी आम मुसलमान का ताल्लुक़ सल्तनत के सियासी मामलों से बिलकुल भी नहीं था। बादशाहत, सल्तनत और पूरा राज्य कुछ एक क़बीलों और ख़ानदानों तक महदूद थी। उसी के लोग अपनी सियासी चालें चलते थे, वही आपस में बादशाह बनने या बादशाह को बेदख़ल करने की साज़िशें करते थे। बादशाह की अपने साम्राज्य को फैलाने की फ़िक्र उसे आसपास के राज्यों पर कभी हमला करने के लिये उकसाती या कभी डिफ़ेंसिव जंग पर मजबूर करती, बादशाह का ज़्यादा वक़्त मैदाने-जंग की नज़र हो जाता या अपनों से अपनी और अपने राज्य की हिफ़ाज़त में गुज़र जाता।

कोई वोटिंग सिस्टम नहीं था। देश में बादशाहत थी, राज्यों में नवाब थे, इलाक़ों में ज़मींदार थे। आम जनता को सियासी मामलों में न दिलचस्पी थी और न ये उनकी ज़रूरत थी। ब्रिटिश राज में भी यही सिस्टम क़ायम रहा। सियासत में केवल हाकिम बदलते थे, बाक़ी सब कुछ जैसे चल रहा था वैसे ही था, अलबत्ता तालीम की बहुतायत और सइंसी तरक़्क़ी ने आम लोगों को हालात से बाख़बर ज़रूर कर दिया था।

दूसरी वजह ये रही कि आज़ादी के बाद मुसलमानों का वो तबक़ा जिसके पास इल्म भी था और किसी हद तक उनका सियासी शुऊर भी बेदार हो चुका था, देश के बँटवारे के नतीजे में पाकिस्तान चला गया। इस तरह भारतीय मुसलमान अपने अच्छे और समझदार लोगों से महरूम हो गए।

तीसरी वजह मुसलमानों में दीन के सही तसव्वुर की कमी है। भारतीय मुसलमानों को मज़हबी गरोह ने ये तालीम दी कि सियासत और हुकूमत दीन में नहीं है। दीन तो चिल्ला खींचने, ज़िक्र करने, नमाज़ और रोज़े का नाम है। इस तसव्वुर ने हमारे आम लोगों को सियासत से बिलकुल बेदख़ल कर दिया। वो सियासत को गुनाह समझने लगे। उस वक़्त के सियासी लीडर्स और मज़हबी गरोह ने हिस्सेदारी के बजाय ताबेदारी की सियासत को बढ़ावा दिया, नेक लोग मस्जिद और ख़ानक़ाहों तक महदूद हो गए।

मस्जिदों में सियासत का ज़िक्र करना तो दूर की बात, अगर तिजारत और लेन-देन के मामलों का ज़िक्र भी किसी ने कर दिया तो क़ौम ने ये कहकर रोक दिया कि ये दुनियादारी की बातें मस्जिद में नहीं हो सकतीं। इस पर फ़तवे पूछे जाने लगे कि क्या मस्जिद के लाउडस्पीकर से किसी तिजारती चीज़ की ख़रीद-बिक्री का ऐलान हो सकता है या नहीं? इस सूरतेहाल ने आम लोगों को सियासत से दूर कर दिया। अगर कुछ लोग आए भी तो वो दुनियादार कहलाए, उन्होंने भी कभी उसे दीनी फ़र्ज़ नहीं समझा। जिसने समझा उसको आलिम हज़रात के फ़तवों ने काफ़िर बना दिया।अब आप ही सोचिये पिछले सत्तर साल से जिस क़ौम को यही पढ़ाया जा रहा हो वो किस तरह सियासी तौर पर कोई ताक़त बन सकती है।

Tags: Indian MuslimsMuslim PoliticsMuslims After Independence
ShareTweetSend
RK News

RK News

Related Posts

विचार

मुसलामानों का वर्तमान राजनितिक परिदृश्य; शकीलुर रहमान

February 1, 2023
विचार

आवास को मस्जिद में बदलने का आरोप, हिंदू ब्रिगेड की आपकत्ति के बाद फातिमा मस्जिद पर ताला

January 18, 2023
विचार

समर्थकों के दबाव में बदले हैं भागवत :एक नजरिया

January 14, 2023
अकेले एक पार्टी (कांग्रेस) ने ही नहीं लड़ी आजादी की लड़ाई: एक नजरिया
विचार

अकेले एक पार्टी (कांग्रेस) ने ही नहीं लड़ी आजादी की लड़ाई: एक नजरिया

December 31, 2022
क्या RSS ने 1949 में मनुस्मृति आधारित संविधान मांगा था?
विचार

क्या RSS ने 1949 में मनुस्मृति आधारित संविधान मांगा था?

December 29, 2022
‘भारत जोड़ो यात्रा’ से इतना क्यों डरती है भाजपा
विचार

‘भारत जोड़ो यात्रा’ से इतना क्यों डरती है भाजपा

December 29, 2022
Next Post
देश को ब्याज की लानत से मुक्त कराना चाहता हूँ : रजब तईय्यब अर्दोगान

देश को ब्याज की लानत से मुक्त कराना चाहता हूँ : रजब तईय्यब अर्दोगान

दो साल पहले युपी में पुलिस फायरिंग के दौरान मारे गए 22 मुस्लिम युवाओं की मौत का ज़िम्मेदार कौन?

दो साल पहले युपी में पुलिस फायरिंग के दौरान मारे गए 22 मुस्लिम युवाओं की मौत का ज़िम्मेदार कौन?

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recommended Stories

कर्नाटक विधानसभा के हाल सावरकर की तस्वीर, मचा बवाल

कर्नाटक विधानसभा के हाल सावरकर की तस्वीर, मचा बवाल

December 19, 2022
‘सीमांचल भारत का हिस्सा ‘अमित शाह के बयान का मतलब क्या है!

‘सीमांचल भारत का हिस्सा ‘अमित शाह के बयान का मतलब क्या है!

September 24, 2022

चिन गांग: कड़क मिजाज, चीन के नए विदेश मंत्री

January 5, 2023

Popular Stories

  • नूपुर को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- बयान के लिए टीवी पर पूरे देश से माफी मांगे

    नूपुर को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- बयान के लिए टीवी पर पूरे देश से माफी मांगे

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • दुआएं कुबूल, हल्द्वानी में नहीं चलेगा बुलडोजर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • खबरदार! धंस रहा है नैनीताल, तीन तरफ से पहाड़ियां दरकने की खबर, धरती में समा जाएगा शहर, अगर .…..!

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • मदरसों को बम से उड़ा दो, यति नरसिंहानंद का भड़काऊ बयान

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • यूपी में एक मदरसा ऐसा भी…. जिसके प्रिंसिपल एक पंडित जी

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • लाउडस्पीकर पर अजान से नहीं होता किसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघनः हाई कोर्ट

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
Roznama Khabrein

The Roznama Khabrein advocates rule of law, human rights, minority rights, national interests, press freedom, and transparency on which the newspaper and newsportal has never compromised and will never compromise whatever the costs.

More... »

Recent Posts

  • रामचरितमानस विवाद: आरजेडी- एसपी की मान्यता रद्द हो, वीएचपी की इलेक्शन कमिशन से मांग
  • “28 महीने और लंबी लड़ाई के बाद..”: केरल के पत्रकार सिद्दिक कप्पन को मिली ज़मानत।
  • जामिया टीम ने एआईयू के नार्थ-ईस्ट जोन में पहला स्थान हासिल किया

Categories

  • Uncategorized
  • अन्य
  • एजुकेशन
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • विचार
  • समाचार
  • हेट क्राइम

Quick Links

  • About Us
  • Support Us
  • Terms & Conditions
  • Privacy Policy
  • Grievance
  • Contact Us

© 2021 Roznama Khabrein Hindi

No Result
View All Result
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو

© 2021 Roznama Khabrein Hindi

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?