राहुल गाँधी की यात्रा भारत को भारत होने का मतलब समझा रही है। इस यात्रा को अभी कई राज्यों से गुज़रना है। असम में जिस तरह से हमले हुए हैं वो आने वाले दिनों में और बढ़ सकते हैं। इतना तो साफ़ है कि राहुल गाँधी एक बड़ी रेखा खींचने में जुटे हैं जो न सिर्फ कांग्रेस बल्कि पूरे इंडिया गठबंधन को नयी तेजस्विता दे सकता है। न्याय के बिना आज़ादी झूठी होने की बात समझाना इस यात्रा का असल हासिल होगा। उम्मीद है कि यात्रा के बिहार और यूपी तक पहुँचते-पहुँचते आर्थिक और सामाजिक न्याय का प्रश्न, जातिजनगणना से लेकर ‘जितनी आबादी, उतना हक़’ तक का रहुल गाँधी का नारा एक बड़े राजनीतिक मुद्दे में तब्दील हो जाएगा और धार्मिक ध्रुवीकरण के छलछद्म पर भारी पड़ेगा।
अयोध्या में प्राणप्रतिष्ठा को लेकर की गयी जल्दबाजी के पीछे निश्चित ही बीजेपी का मिशन 2024 है। उसकी कोशिश अपने रंग को एकमात्र रंग और अपने विचार को एकमात्र विचार के रूप में पेश करने की थी। लेकिन राहुल गाँधी की यात्रा ने बता दिया है कि विचारधारा की लड़ाई में उसका पाला एक ऐसे योद्धा से पड़ा है जो हथियार डालने को तैयार नहीं है। कुछ मोर्चों पर मिली हार की परवाह न करते हुए राहुल एक व्यापक युद्ध के लिए न सिर्फ़ कांग्रेस के सहयोगी दलों बल्कि देश को तैयार कर रहे हैं।
अयोध्या में 22 जनवरी को विपक्षी नेताओं की अनुपस्थिति को मुद्दा बनाने की रणनीति पर काम कर रही बीजेपी को पत्थरबाज़ी के बीच भारत की प्राणप्रतिष्ठा के लिए जूझते राहुल गाँधी की तस्वीरें किसी झटके की तरह हैं। विपक्ष को कठघरे में खड़ा करते-करते वह खुद कठघरे में नज़र आने लगी है। मोदियाबिंद के शिकार मीडिया को यह नज़र आये भी तो कैसे? (साभार सत्य हिन्दी)
(लेखक कांग्रेस से जुड़े है ,ये उनके निजी विचार हैं)