नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में पसमांदा मुसलमानों पर तवज्जो देने की बात कही थी क्या कि अगले चुनाव में उसका फायदा उठाया जा सके इस संबंध में स्नेह यात्रा निकालने का निर्णय लिया गया है। मुस्लिम समाज की तरफ से इसकी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है ऑल इंडिया मुस्लिम पसमांदा महाज़ के फाउंडर और साबिक एमपीअली अनवर ने कहां कि पसमांदा मुसलमानों को सनेह नहीं सम्मान और बराबरी की जरूरत है। हमें वोट बैंक न समझा जाए और हमें बराबरी का दर्जा दिया जाए
अली अनवर ने प्रधानमंत्री का नाम एक खत लिख कर पसमांदा मुसलमानों के जज्बात से अवगत कराया है। इससे पता चलता है की पसमांदा मुसलमानों की लीडरशिप बीजेपी के इरादों से पूरी तरह आगाह है। यह पत्र इसलिए अहमियत का है कि किसी बड़े मुस्लिम लीडर ने पहली बार बीजेपी की स्नेह यात्रा पर तीखी प्रतिक्रिया दी है उनके इस पद को देखकर पता चलता है कि पसमांदा मुसलमान अपनी अगली लड़ाई के लिए तैयार नजर आ रहे हैं। उनका यह आरोप रहा है की शराफिया ने उनको दबा कर रखा है और लीडरशिप पर कब्जा है वह पसमांदा मुसलमानों को आगे नहीं आने देता इस शिकायत कितनी जायज है इसका भी जायजा लेना जरूरी है
प्रतिष्ठा में ,
प्रधानमंत्री
भारत सरकार।
प्रिय महोदय ,
आप के मुँह से पसमांदा शब्द सुन कर आश्चर्य मिश्रित हर्ष हुआ है। मगर, पसमांदा मुसलमानों को ‘स्नेह’ नहीं सम-मान (सम्मान) चाहिए। स्नेह शब्द से बड़े-छोटे का भाव आता है। कोई पार्टी या सरकार भला देश की जनता से बड़ी कैसे हो सकती है? मैंने 22 साल पहले ‘मसावात की जंग’ किताब लिखी थी, जिसका अर्थ होता है बराबरी के लिए संघर्ष। हम मुस्लिम समाज के अंदर या बाहर किसी तरह के ‘वर्चस्व’ की नहीं, बल्कि बराबरी के लिए लड़ रहे हैं। अचानक पसमांदा समाज के लिए ‘स्नेह यात्रा ’निकालने के पीछे मकसद मुसलमानों को आपस में लड़ा कर वोट बैंक की सियासत करना तो नहीं है? पसमांदा मुसलमान किसी भी पार्टी का आँख मूंद कर समर्थन नहीं करते हैं। किसी भी पार्टी को इन्हे ‘टेकेन फॉर ग्रांटेड’ नहीं लेना चाहिए।
हमारी किसी जाति-बिरादरी , तबका से लड़ाई नहीं है। हम तो सरकारों और सियासी पार्टियों से अपनी आबादी के अनुसार हिस्सा मांग रहे हैं। हम अन्य लोगों की बराबरी में खड़ा होना चाहते है। हमारी लड़ाई शांतिपूर्ण और संवैधानिक दायरे में है। हम पसमांदा मुसलमान होने के नाते अलग से कुछ नहीं मांग रहे हैं। मुसलमान होने के नाते सरकारी तौर पर हमारे साथ जो भेदभाव हो रहा है उसको बंद करने की मांग कर रहे हैं। यही मांग हमारी ईसाई दलितों के लिए भी है। उन्हें भी ईसाई होने की सजा दी जा रही है।
हमारा शुरू से यह मानना रहा है कि पसमांदा मुसलमान अकेले इस लड़ाई को नहीं जीत सकते। हम सभी धर्मों के पसमांदा-दलित तथा अन्य प्रगतिशील एवम इंसाफ पसंद लोगों को साथ लेकर ही कामयाब हो सकते हैं।
1998 में हमने पसमांदा महाज नाम से एक सामाजिक संगठन इसलिए बनाया कि पसमांदा शब्द धर्म और जाति न्यूट्रल है। पसमांदा नाम की न तो कोई बिरादरी है और ना ऐसा कोई धर्म। हिंदु , मुसलमान, ईसाई, सिक्ख , बौद्ध तथा अन्य धर्मों में भी पसमांदा, दलित, आदिवासी तबके के लोग हैं। इन तबकों के साथ न सिर्फ हमारा दर्द का रिश्ता है, बल्कि हमारा डी.एन.ए भी एक समान है। हमने अपने संगठन ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज में मुस्लिम शब्द से पहले पसमांदा शब्द लगाया है। ऐतिहासिक रूप से हम पहले पसमांदा हैं, बाद में मुसलमान। मसावात (बराबरी ) के लिए हमने इस्लाम धर्म कबूल किया है। मुश्किल से एक-दो प्रतिशत मुसलमान ही यहां अरब , ईरान, और इराक से आए हैं। पसमांदा मुस्लिम यहां के मूल निवासी हैं। हम अकलियत के लोग नहीं, बल्कि अकसरियत (बहुजन) हैं। पसमांदा शब्द उर्दू -फरसी का है। जिसका अर्थ होता है पीछे छूटे या नीचे धकेल दिए गए लोग। अब हम ‘पसमांदा’ नहीं , बल्कि ‘पेशमांदा’(आगे रहने वाला) बनना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री जी, आपने अपनी पार्टी के लोगों से पसमांदा मुसलमानों के लिए ‘स्नेह’ यात्रा निकालने को कहा है। यह तभी कारगर साबित होगा, जब समाज में सांप्रदायिक सद्भाव कायम रहेगा। नफरती बयान और बुलडोजर भी चलता रहे तब भला स्नेह यात्रा का क्या मतलब है? 2014 से लेकर लगातार माँब लिंचिंग, घर वापसी, गौरक्षा, लव जेहाद, कोरोना के दौर में तबलिगी जेहाद , मंदिर- मस्जिद का बखेड़ा, जितने भी इस तरह के अभियान चलाए गये हैं, उससे तो सर्वाधिक पीड़ित पसमांदा और गरीब मुसलमान ही हुए हैं। इन सभी मामलों में पसमांदा मुसलमान ही तो सबसे अधिक मारे, काटे, जलाए तथा झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेजे गए हैं।
भाजपा के अनेक सांसदों, विधायकों की बात को छोड़ भी दी जाए, तो क्या आपके मंत्री, मुख्यमंत्री, ‘जमीन में गाड़ देंने ’, ‘पाकिस्तान भेज देंने’ जैसी बातें ऑन रिकॉर्ड नहीं बोलते हैं? क्या गृहमंत्री अमित शाह जी ने एनआरसी, सीएए के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं के शांतिपूर्ण आंदोलन(दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय) यह नहीं कहा कि ‘बटन इस तरह दबाओ कि शाहीनबाग को करंट लगे’? प्रधानमंत्री जी क्या आपके श्रीमुख से किसी को कपड़े से पहचानने जैसी बात शोभा देती है ?
क्या जब मुसलमान इतने पर भी उकसावे में नहीं आए तो उनकी नमाज में खलल डालकर, उनकी मस्जिदों पर प्रदर्शन और हमला कर तथा उनके नबी की शान में गुस्ताखी नहीं की जा रही है? दुनिया भर में इस बात को लेकर अपने देश की बदनामी होती रही, फिर भी आप ने आजतक इसके खिलाफ एक शब्द नहीं बोला है। बल्कि इसके उलट जो मुस्लिम या अन्य बुद्धिजीवी, पत्रकार, सिविल सोसाइटी के लोग इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं तो उनको जेलों में बंद किया जा रहा है।
हमारे संगठन ने हमेशा पसमांदा मुसलमानों के बीच इस बात के लिए अभियान चलाया है कि वे शांति और सदभाव के रास्ते पर चलते हुए हिकमत अमली और दूरंदेशी से काम लें। किसी भी हालत में उबाल पर नहीं आना है। कानून को अपने हाथ में नहीं लेना है। इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर आम तौर पर हमारे लोगों ने सब्र और तहम्मुल (बर्दाश्त करने) का ही सबूत दिया है। हम हमेशा से हर तरह की सांप्रदायिकता और मज़हबी गोलबंदी के खिलाफ रहे हैं। हमारे पूर्वजों अब्दुल कय्यूम अंसारी , मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी सरीखे नेताओं ने मोमिन कॉन्फ्रेंस के झंडा तले, 1940 में दिल्ली के इंडिया गेट पर, चालीस हजार की तादाद में इकट्ठा होकर, मिस्टर जिन्ना और सावरकर के दो कौमी नजरिया (टू नेशन थ्योरी) और ‘हिन्दुराष्ट्र’ की मुखालफत की थी।फिर इसी रास्ते पर मौलाना अतिकुर्र रहमान मंसूरी, मियाँ अब्दुल मालिक राइनी,आदि अनेक नेता चल निकले। ये सभी पसमांदा मुसलमान ही तो थे।
चम्पारण के पत्रकार पीर मोहम्मद मूनिस ने गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार ‘प्रताप’ में लेख लिख- लिख कर मोहनदास करमचंद गांधी को चम्पारण में निलहे जमींदारों के शोषण और अत्याचार से अवगत कराया था। गांधी जब चम्पारण आए तब उनके खाने-पीने में जहर मिलाकर उनकी जान लेने की कोशिश की गई। तब बत्तख मियां ने उनकी जान बचाई थी। हम लोग गाँधी को मारने वाले नहीं, बचाने वालों में हैं। झारखंड के क्रांतिकारी योद्धा शेख भिखारी को 1857 में पकड़कर फौरन फांसी पर लटका दिया गया। वह अंग्रेजी हुकूमत के लिए इतने खतरनाक थे कि उन्हें गिरफ़्तार कर मुकदमा चलाने की भी जहमत नहीं उठाई गई। उपरोक्त तीनों शख्सियत पसमांदा मुसलमान ही तो थे। 1965 में जब पाकिस्तान ने अमेरिकी पेटेंट टैंक के साथ भारत पर हमला किया तो उसके परखचे उड़ाने वाले शहीद अब्दुल हमीद पसमांदा मुसलमान ही थे जिन्हें परणोपरांत परमबीर चक्र से नवाजा गया। भारत रत्न से नवाजे गए शहनाईवादक उस्तान विस्मिल्लाह खां और महान फ़िल्म अभिनेता दिलीप कुमार (यूसुफ खां ) दलित-पसमांदा मुसलमान ही तो थे। पूरा देश इन लोगों पर गर्व करता है।
मौजूदा दौर में भी हमारा संगठन हमेशा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के खिलाफ आवाज उठाता रहा है। इस तरह का ध्रुवीकरण चाहे भाजपा-आरएसएस करे या एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी या अन्य कोई करे। दोनों तरह के लोग अपनी कारकर्दगी से एक दूसरे को मजबूत बनाने का काम करते हैं । एक की विचारधारा ‘मनुवादी’ है, तो दूसरे की ‘इब्लिसवादी’ है। हमारा मानना है कि किसी तरह की मजहबी गोलबंदी से उपजी बीमारी का इलाज पसमांदा आंदोलन में ही है।
प्रधानमंत्री जी, भाजपा वोट के लिए ही सही यदि सचमुच पसमांदा की तरफ ‘हाथ बढ़ाना’ चाहती है तो क्या आप फौरी तौर पर ये कुछ कदम उठा सकते हैं?
पसमांदा मुसलमानों के अंदर की करीब एक दर्जन जातियां यथा- हलालखोर (मेहतर, भंगी), मुस्लिम धोबी, मुस्लिम मोची, भटियारा,गदहेडी आदि ऐसी जातियां है जिन्हें मुस्लिम होने के चलते शिड्यूल कास्ट का दर्जा नहीं मिल रहा है। सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग ने इस बाबत सिफारिश की है। मगर क्या आपकी सरकार ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूछे जाने के बाद यह जवाब दिया है कि वह इस सिफारिश को नहीं मानेगी? क्या आप शिड्यूल कास्ट (एसी) का कोटा बढ़ाकर इस धार्मिक भेदभाव को समाप्त करेंगे? क्या मेवाती, वनगुज्जर, सपेरा, मदारी आदि घुमंतू और ब्रिटिश काल में क्रिमिनल ट्राइब कही जानी वाली जातियों को ‘शिड्यूल्ड ट्राइब’ में शामिल करेंगे ? यदि नहीं, तो कुछ लोभार्थी ( लालची) लोगों के ढोल पीटने-पिटवाने से कुछ नहीं होगा।
क्या मुसलमानों को टारगेट कर जो नफरती अभियान चलाया जा रहा है उसको आप रोकेंगे? नोटबंदी, जीएसटी, कोरोना काल की लम्बी तालाबंदी जैसे आपके फरमान से तबाह हो चुकी दस्तकार जातियों को फिर से खड़ा करने के लिए उनके द्वारा उत्पादित माल की खरीद तथा उन्हें सस्ती बिजली एवं कच्चा माल उपलब्ध कराकर उनकी सहायता करेंगे? क्या बेतहासा बढ़ रही महगाई से तबाह हो रही जिंदगियों को राहत देने के लिए फौरी तौर पर कुछ कदम उठाने का काम करेंगे ? क्या सभी धर्मों के पसमांदा और दलित समाज की सही संख्या एवं सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जानकारी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जनगणना कराएंगे? आपकी मौजूदा सरकार ने तेजी से सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी क्षेत्रों के हवाले कर आरक्षण को बेमानी बना दिया है। तो क्या आप निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण की व्यवस्था लागू करेंगे? अगर नहीं, तो पसमांदा मुस्लिम ‘आपकी सरकार’ पर कैसे और क्यों भरोसा करें?
आम तौर पर मुसलमानों और खास तौर से पसमांदा मुसलमानों का संसद और विधानसभाओं से राजनैतिक बहिष्कार तो हो चुका है। उनके आर्थिक बहिष्कार की भी प्रकिया तेजी से चलाई जा रही है। क्या आप इसको रोकना चाहेंगे? बीजेपी बैकग्राउंड के किसी एक-दो फर्द (व्यक्ति ) को मंत्री या राज्यपाल बना देने से क्या होने वाला है? मुख़्तार अब्बास नकवी , सैय्यद शहनवाज हुसैन , एम.जे. अकबर, नजमा हेपतुल्ला , आरिफ मोहम्द खान, को भाजपा के दूसरे नेताओ से ज्यादा मौजूदा सरकार की कई विवादास्पद नीतियों एवम निर्णयों का समर्थन करते देखा गया है। मुसलमान होना और मुसलमानों का हमदर्द और नेता होना दोनों में बहुत फर्क है।
आशा है आप हमारी उक्त मांगों और सुझावों पर विचार करते हुए जल्द निर्णय लेना चाहेंगे।
(अली अनवर अंसारी)
संस्थापक अध्यक्ष ऑल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज एवम पूर्व सांसद (राज्य सभा )