संभल बीते दिनों शाही जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान हुई हिंसा के कारण चर्चा में था और अब एक मंदिर के चलते फिर से सुर्ख़ियों में आ गया है.
शनिवार को ज़िला प्रशासन ने एक प्राचीन शिव मंदिर मिलने का दावा किया जो कथित तौर पर 1978 से बंद था.
प्रशासन का दावा है कि अतिक्रमण के चलते मंदिर बंद पड़ा था और मंदिर में कोई भी नहीं आता था. हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर रस्तोगी समाज का है और अतिक्रमण का दावा सही नहीं है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, स्थानीय प्रशासन ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को पत्र लिखकर कार्बन डेटिंग की मांग की है.
शनिवार को संभल में ज़िलाधिकारी राजेंद्र पेंसिया और पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार बिश्नोई के नेतृत्व में अतिक्रमण और बिजली चोरी के ख़िलाफ़ अभियान चलाया जा रहा था.
इस दौरान प्रशासन की तरफ़ से संभल के खग्गू सराय मोहल्ले में प्राचीन शिव मंदिर मिलने का दावा किया गया. संभल की शाही जामा मस्जिद से इस मोहल्ले की दूरी लगभग दो किलोमीटर है.उसी दिन मंदिर से जुड़ा एक वीडियो भी सामने आया जिसमें एडिशनल एसपी श्रीश चंद्र और सीओ अनुज चौधरी सफ़ाई करते हुए दिख रहे हैं. इस वीडियो में शिवलिंग और हनुमानजी की मूर्ति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है.
प्रशासन का दावा है कि मंदिर एक हज़ार साल पुराना है और अब तक अतिक्रमण की चपेट में था.फ़िलहाल मंदिर में पूजा-अर्चना हो रही है और आस-पास सुरक्षा बढ़ा दी गई है. इसके अलावा सीसीटीवी कैमरों के ज़रिए मंदिर की निगरानी की जा रही है.
•••ताला हमने लगाया था: विष्णु शरण रस्तोगी
प्रशासन की तरफ़ से मंदिर में अतिक्रमण का दावा किया जा रहा है लेकिन नगर हिंदू महासभा के संरक्षक विष्णु शरण रस्तोगी प्रशासन के इस दावे से अलग बात कह रहे हैं.समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में विष्णु शरण रस्तोगी कहते हैं, “हमारा परिवार मेरे जन्म के पहले से यहां खग्गू सराय में रहता था. 1978 के बाद हम मकान बेचकर चले गए थे. मेरी उम्र 82 साल है. भगवान शंकर का मंदिर है और ये हमारे कुलगुरू हैं.”
आप लोग यहां आते नहीं थे या आने नहीं दिया जाता था? इस सवाल पर विष्णु शरण रस्तोगी कहते हैं, “आने जाने पर कोई रोक नहीं थी. यहां हमारी (हिन्दुओं) कोई आबादी नहीं थी इसलिए सभी लोग पलायन कर गए थे. यहां से हम चले गए तो मंदिर की देखभाल कर नहीं पाए इसलिए यहां कोई पुजारी नहीं टिक पाता था.”मंदिर पर क़ब्जे़ के सवाल पर विष्णु शरण कहते हैं, “मंदिर हमारे अंडर है. हमारे भतीजे ने इस पर ताला लगाया था. उसके बाद यहां आना-जाना कम हो गया था क्योंकि पुजारी नहीं था.”
प्रशासन का दावा है कि 1978 से मंदिर बंद था लेकिन पलायन करने वाले कुछ हिन्दू परिवारों की राय प्रशासन के दावे से बिल्कुल अलग है.
वर्तमान में संभल के कोट मोहल्ले में रहने वाले धर्मेंद्र रस्तोगी का दावा है कि उन्होंने 2006 तक इस मंदिर में पूजा-अर्चना देखी थी.निजी समाचार चैनल एबीपी न्यूज़ से बातचीत करते हुए धर्मेंद्र कहते हैं, “मंदिर रस्तोगी बिरादरी का है. 2006 में मेरा परिवार यहां से चला गया था. डर जैसी कोई वजह नहीं थी, सब लोग चले गए थे इसलिए हम लोग भी चले गए.”
क्या मंदिर पर अतिक्रमण होना शुरू हो गया था? इस पर धर्मेंद्र रस्तोगी कहते हैं, “मंदिर तो जैसा था वैसा ही है. कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है मंदिर पर. मंदिर के बगल में दीवार और जो कमरा है वो भी हम लोगों ने ही बनवाया था. मंदिर की चाबी रस्तोगी परिवार के पास थी.”
एक और स्थानीय निवासी प्रदीप वर्मा का कहना है, “मेरा परिवार 1993 तक इसी गली में रहता था. इसके बाद हम कभी-कभार यहां आते थे. 1993 के बाद वे (रस्तोगी परिवार) कभी-कभार इस इलाके़ में आते थे. मंदिर की चाबियां रस्तोगी परिवार के पास थीं.”संजय गुप्ता संभल की श्रीरामलीला कमेटी के अध्यक्ष हैं और हिन्दू बहुल कोट पूर्वी मोहल्ले के निवासी हैं.बीबीसी से बातचीत में संजय गुप्ता कहते हैं, “चाबी किसी के भी पास हो लेकिन इसका महत्व क्या रह जाता है जब वहां के लोगों ने इस पर अतिक्रमण कर लिया हो. मंदिर में भूसा वगैरह भर दिया था. लोग 20-30 साल बाद यहां आ रहे हैं तो चाबी की क्या वैल्यू है. मंदिर के आगे तो दीवार थी जिसे प्रशासन ने तोड़ा. विष्णु शरण जी की तबियत सही नहीं है इसलिए उन्होंने ऐसा बयान दिया है.”(आभार बीबीसी)