नई दिल्ली: चुनाव आयुक्त के रूप में पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी। सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति की फाइल देखने के बाद कहा कि सरकार ने बिजली की रफ्तार से नियुक्ति की है।
गुरुवार की सुनवाई में नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर सरकार की ओर से जो दलील दी गई, उससे अदालत संतुष्ट नहीं हुई। बहरहाल, चुनाव आयोग में सुधार और स्वायत्तता के मुद्दे पर चार दिनों तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
जस्टिस केएम जोसफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा है। साथ ही पीठ ने सभी पक्ष को लिखित दलीलें देने के लिए पांच दिनों का समय दिया है।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र पैनल का गठन किया जाए? गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसेफ ने इसका सुझाव दिया था।
बहरहाल, गुरुवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की नियुक्तियों पर सवाल उठाए। अदालत ने पूछा- बिजली की रफ्तार से चुनाव आयुक्त की नियुक्ति क्यों? चौबीस घंटे के भीतर ही नियुक्ति की सारी प्रक्रिया कैसे पूरी कर ली गई? किस आधार पर कानून मंत्री ने चार नाम को शॉर्टलिस्ट किया?
इन सवालों पर केंद्र सरकार ने कहा- तय नियमों के तहत नियुक्ति की गई। हालांकि, नियुक्ति की प्रक्रिया पर सरकार के जवाब से अदालत संतुष्ट नहीं हुई।
इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेकेंटरमणी ने अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल अदालत को सौंपी।
अटॉर्नी जनरल ने कहा- मैं इस अदालत को याद दिलाना चाहता हूं कि हम इस पर मिनी ट्रायल नहीं कर रहे हैं। इसके बाद आर वेंकटरमणी ने पूरी प्रक्रिया की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि विधि और न्याय मंत्रालय ही संभावित उम्मीदवारों की सूची बनाता है। फिर उनमें से सबसे उपयुक्त का चुनाव होता है। इसमें प्रधानमंत्री की भी भूमिका होती है।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा- चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में इतनी जल्दबाजी क्यों? इतनी सुपरफास्ट नियुक्ति क्यों? जस्टिस जोसेफ ने कहा- 18 तारीख को हम मामले की सुनवाई करते हैं। उसी दिन आप फाइल पेश कर आगे बढ़ा देते हैं, उसी दिन पीएम उनके नाम की सिफारिश करते हैं। यह जल्दबाजी क्यों?
अदालत ने यह सवाल भी उठाया कि पद कई महीने से खाली था फिर जब इस मामले की सुनवाई अदालत ने शुरू की तो अचानक नियुक्ति क्यों की गई? जस्टिस अजय रस्तोगी ने इतनी तेज रफ्तार से फाइल आगे बढ़ने और नियुक्ति हो जाने पर सवाल उठाए और कहा- चौबीस घंटे में ही सब कुछ हो गया। इस आपाधापी में आपने कैसे जांच पड़ताल की?