रूस ने भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता करने की इच्छा जताई है। जिसका मकसद इस क्षेत्र में तनाव कम करना है।
रूस ने कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद को सुलझाने में मध्यस्थता की पेशकश की है। रूसी विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रविवार को कहा कि मॉस्को दोनों पड़ोसी देशों के बीच बातचीत को बढ़ावा देने और तनाव कम करने के लिए तैयार है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने रविवार (4 मई, 2025) को पाकिस्तानी विदेश मंत्री से बात की और कश्मीर को लेकर पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव को सुलझाने में रूस की मदद की पेशकश की।
रूसी अधिकारी ने एक बयान में कहा, “रूस भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध है। हम कश्मीर सहित सभी विवादित मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच रचनात्मक संवाद की सुविधा प्रदान करने को तैयार हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि रूस का रुख तटस्थ रहेगा और वह दोनों देशों की संप्रभुता का सम्मान करेगा।
यह पेशकश ऐसे समय में आई है जब भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर तनाव फिर से बढ़ा है। दोनों देशों ने हाल के महीनों में सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति और राजनयिक तकरार की घटनाओं की सूचना दी है। भारत ने हमेशा कश्मीर को अपना अभिन्न अंग माना है और इस मुद्दे पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को खारिज किया है, जबकि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की मांग करता रहा है
भारत और पाकिस्तान की ओर से इस रूसी प्रस्ताव पर तत्काल कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। विश्लेषकों का मानना है कि रूस की यह पहल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन दोनों देशों की जटिल स्थिति को देखते हुए इसकी सफलता अनिश्चित है।
रूस का यह बयान दक्षिण एशिया में उसकी बढ़ती राजनयिक सक्रियता को भी दर्शाता है। मॉस्को ने हाल के वर्षों में भारत के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को मजबूत किया है और साथ ही पाकिस्तान के साथ भी संबंध बेहतर करने की कोशिश की है।
कश्मीर विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराना क्षेत्रीय संघर्ष है जो जम्मू-कश्मीर क्षेत्र को लेकर है। यह विवाद 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन से शुरू हुआ, जब महाराजा हरि सिंह के नेतृत्व वाले कश्मीर को भारत में शामिल किया गया। जम्मू कश्मीर मुस्लिम बहुल इलाका है। महाराजा के भारत में शामिल होने के फैसले ने पहला भारत-पाक युद्ध (1947-48) छेड़ दिया, जिसके बाद युद्धविराम हुआ और नियंत्रण रेखा (एलओसी) बनाई गई, जिसने क्षेत्र को भारत के जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तानी के कब्जे वाले कश्मीर व गिलगित-बाल्टिस्तान में बांट दिया। तब से, दोनों परमाणु-सशस्त्र पड़ोसी देश तीन युद्ध (1947-48, 1965, 1999) और कई छोटी-मोटी झड़पों में उलझ चुके हैं। कश्मीर इस समय हिंसा, उग्रवाद और राजनयिक तनाव का केंद्र बना हुआ है।
भारत का आरोप है कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को प्रायोजित करता है ताकि कश्मीर को अस्थिर किया जाए, और इसमें एलईटी और टीआरएफ जैसे समूहों की भूमिका का हवाला देता है। हमले के बाद, भारत ने इसे पाकिस्तान से जोड़ा, जिसमें मुजफ्फराबाद और कराची में सुरक्षित ठिकानों के डिजिटल सबूत और पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) की संलिप्तता का दावा किया गया। भारत ने जवाब में सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया, अटारी-वाघा सीमा को बंद कर दिया, पाकिस्तानी राजनयिकों को निष्कासित किया और वीजा प्रतिबंध लागू किए। दोनों देशों के बीच सैन्य जवाबी कार्रवाई की आशंका बढ़ती जा रही है। पहले उरी (2016) और पुलवामा (2019) हमलों में भारत ने कार्रवाई की थी। हालांकि कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के बाद मोदी सरकार ने कश्मीर में पूरी तरह शांति के दावे किए थे लेकिन उस दावे की सच्चाई पहलगाम हमले ने सामने ला दी है। (आभार सत्य हिंदी)