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राहुल गांधी की लोकप्रियता तेजी से कैसे बढ़ने लगी?

RK News by RK News
July 9, 2024
Reading Time: 1 min read
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एक नज़रिया डॉ॰ रविकांत-18वीं लोकसभा के पहले सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा दिए गए भाषण की चर्चा लगातार हो रही है। एक घंटे से अधिक समय तक दिए गए अपने भाषण में राहुल गांधी ने अग्निवीर, बेरोजगारी और महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों से लेकर मणिपुर जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। अपने भाषण में राहुल गांधी ने बड़ी बेबाकी से नरेंद्र मोदी की राजनीति को बेपर्दा किया। 
गोदी मीडिया के सहारे नरेंद्र मोदी अपनी असफलताओं को बड़े करीने से छुपाते रहे हैं। इसी कॉरपोरेट मीडिया और भाजपा के आईटी सेल द्वारा देश में सांप्रदायिक जहर फैलाकर समाज को विभाजित किया गया। धार्मिक उन्माद के जरिए मॉब लिंचिंग और दलित-आदिवासियों के उत्पीड़न की हजारों घटनाएं सामने आई हैं। नरेंद्र मोदी को लगता था कि सांप्रदायिक विभाजन और धार्मिक उन्माद के ज़रिए फिर से चुनावी सफलता हासिल कर लेंगे। लेकिन चुनावी नतीजे बताते हैं कि सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग, चुनाव आयोग, गोदी मीडिया और लाखों करोड़ों रुपए झोंकने के बावजूद देश की जनता ने नरेंद्र मोदी और भाजपा को नकार दिया है। हालांकि नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब ज़रूर हुए हैं, लेकिन राहुल गांधी लगातार देश के लोगों के मुद्दों को उभारकर नरेंद्र मोदी के लिए मुसीबतें पैदा कर रहे हैं।
राहुल गांधी ने भाजपा और आरएसएस पर हमला बोलते हुए कहा कि जो हिंदू धर्म के ठेकेदार हैं, जो हिंदू धर्म की राजनीति करते हैं, वे लोगों को डराते हैं, हिंसा और नफरत फैलाते हैं। जबकि हिंदू धर्म हमें अभय होना सिखाता है। राहुल गांधी की इस बात की दुर्व्याख्या करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि है, ‘यह गंभीर मसला है। पूरे हिंदू समाज को हिंसक बताया जा रहा है।’ संसद के इतिहास में संभवतया यह पहला मौका था, जब नेता प्रतिपक्ष के भाषण के बीच में नेता सदन यानी प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप किया हो और और भी दुर्भावना से प्रेरित होकर
वस्तुतः नरेंद्र मोदी ने अपने समर्थकों, पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को एक संकेत दे दिया कि राहुल गांधी के भाषण को हिंदू धर्म को हिंसक बताने के रूप में प्रचारित करना है। दूसरे दिन जब नरेंद्र मोदी ने सदन में दो घंटे 16 मिनट का भाषण दिया तो वह भाषण राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर कम, राहुल गांधी के भाषण पर ज्यादा केंद्रित था। दरअसल, राहुल गांधी का भाषण बहुत तेजी से वायरल हुआ थ
तमाम विश्लेषकों और बुद्धिजीवियों ने राहुल गांधी के भाषण को बहुत सराहा था। जबकि नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी की छवि को बिगाड़ने के लिए बेहद नाटकीय भाव भंगाओं के साथ भाषण दिया।
इस भाषण में राहुल गांधी का मजाक ही नहीं उड़ाया गया था बल्कि कुछ और भी था। राहुल गांधी के खिलाफ की गई टिप्पणियों में एक किस्म की उत्तेजना थी। यही कारण है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में भाजपा कार्यकर्ताओं, बजरंग दल और अनेक हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा राहुल गांधी का पुतला जलाया गया। उनके चित्र पर कालिख पोती गई। कांग्रेस कार्यालय और कार्यकर्ताओं पर हमले किए गए। इंटेलिजेंस द्वारा सूचना मिली है कि राहुल गांधी पर ख़तरा बढ़ गया है।
भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने ‘डरो मत’ का नारा दिया था। अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों पर कट्टरपंथी हिंदुओं द्वारा कभी गो तस्करी के नाम पर तो कभी कथित रूप से हिंदू धर्म का अपमान करने के लिए हमले किए जाते रहे हैं। पिछले एक दशक में पूरे देश में एक भय का माहौल बनाया गया। सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को पुलिसिया तंत्र द्वारा प्रताड़ित किया गया। मध्यमवर्ग बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। ऐसी परिस्थितियों में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की। देखते ही देखते लाखों लोग राहुल गांधी के कारवां से जुड़ते चले गए।
राहुल गांधी की प्रतिबद्धता जितनी समाज के प्रति बढ़ती जा रही है, उतनी ही उनकी प्रसिद्धि भी बढ़ती जा रही है। इसीलिए अब राहुल गांधी को डराने की कोशिश की जा रही है।
सत्तातंत्र और हिंदुत्ववादी संगठनों के ज़रिए राहुल गांधी के खिलाफ जो नफरत और हिंसा का प्रचार किया जा रहा है, वह बेहद भयावह और चिंताजनक है
तमाम खुफिया सूचनाओं के बावजूद राहुल गांधी का जनता के बीच जाना जारी है। पिछले साल जातीय हिंसा की आग में जलते हुए मणिपुर के लोगों से मिलने के लिए राहुल गांधी राहत कैंपों में गए थे।
राहुल गांधी हाथरस और अलीगढ़ भी गए, जहां एक सत्संग कार्यक्रम के बाद मची भगदड़ में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई। राहुल गांधी की सक्रियता उन हिंदुत्ववादी ताक़तों के लिए पैगाम है कि वे उन्हें कितना भी भयभीत करें लेकिन वह अपने लक्ष्य से भटकने वाले नहीं हैं। हालाँकि राहुल गांधी के प्रशंसक बेहद चिंतित हैं

(लेखक दलित चिंतक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।)

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