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चीन के चक्कर में पुराने दोस्त भारत से क्यों रिश्ता खराब कर रहा है मालदीव?

RK News by RK News
January 9, 2024
Reading Time: 1 min read
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नई दिल्ली: चारों तरफ़ समुद्र से घिरे देश मालदीव (Maldives) के दो सबसे नज़दीकी देश हैं श्रीलंका (Sri Lanka) और भारत. कई वजहों से मालदीव और भारत के बीच के रिश्ते बहुत अहम रहे हैं. हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा की दृष्टि से मालदीव भारत के लिए बहुत अहम है. और भारत जैसा देश मालदीव के लिए कई मामलों में सिंगल विंडो सोल्यूशन रहा है. लेकिन पिछले कुछ समय में भारत और मालदीव के रिश्तों में खटास आयी है. मालदीव के नए राष्ट्रपति खुले तौर पर चीन के समर्थक हैं. आख़िर क्यों हुआ है ऐसा?
मोइज्ज़ू से पहले इब्राहिम मोहम्मद सोलिह मालदीव के राष्ट्रपति थे. उन्होंने इंडिया फर्स्ट की नीति अपनायी. मोइज्ज़ू उसके उलट इंडिया आउट की नीति अपना रहे हैं. अपने चुनावी कैंपेन के दौरान उन्होंने यही स्लोगन दिया. सत्ता में आने के बाद उन्होंने द्वीप समूह पर तैनात क़रीब भारतीय सेना के छोटे से दल को निकालने का फ़रमान जारी कर दिया.
इसके अलावा उन्होंने हाइड्रोग्राफ़ी यानि कि जल सर्वेक्षण से जुड़ी सहमति के नवीनीकरण से मना कर दिया. 2019 में बनी ये सहमति समुद्र के डाटा आदि की समीक्षा से लेकर आर्थिक विकास, वैज्ञानिक अनुसंधान, पर्यावरण, जल परिवहन और सुरक्षा के मुद्दों से जुड़ी थी. मालदीव के रूख़ में बदलाव के पीछे असल किरदार चीन का है. चीन ने 2008 के आसपास मालदीव के रणनीतिक महत्व को पहचान उस पर नज़र गड़ानी शुरु की.
मोहम्मद नशीद के राष्ट्रपति रहते ही बढ़ने लगा था चीन का प्रभाव
मोहम्मद नशीद के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान चीन ने 2011 में मालदीव में अपना दूतावास खोला था. राजनीतिक उठापटक के चलते मोहम्मद नशीद को 2012 में इस्तीफ़ा देना पड़ा था. हालांकि वे इसे तख़्तापलट बताते रहे. अगर ये तख़्तापलट भी था तो भारत नशीद की मदद के लिए उस तरह से आगे नहीं आया जैसे भारत ने 1988 में सेना भेज कर ‘पीपुल्स लिब्रेशन ऑर्जेनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम’ की तरफ़ से की गई तख़्ता पलट की कोशिश को रोका था और तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद ग़यूम की सत्ता बचायी थी. बेशक पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने अभी मालदीव के मंत्रियों के आपत्तिजनक टिप्पणियों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला हो लेकिन उनके राष्ट्रपति रहते मालदीव में चीन ने अपना प्रभाव बढ़ाना शुरु कर दिया था.
2013 से 2018 तक राष्ट्रपति रहे यामीन अब्दुल ग़यूम के कार्यकाल में मालदीव में चीन का निवेश और असर बढ़ता गया. भारत से मालदीव की परंपरागत नज़दीकी दूरी में बदलती गई.
2018 में इब्राहिम सोलिह के राष्ट्रपति चुने जाने को चीन की हार के तौर पर देखा गया. कहने को तो राष्ट्रपति सोलिह इंडिया फ़र्स्ट की नीति अपनायी लेकिन 2008 से बाद के 10 सालों में चीन ने आर्थिक तौर पर मालदीव में ऐसा जाल बिछा लिया कि मालदीव उससे निकल नहीं पाया.
क्या श्रीलंका की तरह फस जाएगा मालदीव?
2023 में चुनाव में मोहम्मद मोइज़ू राष्ट्रपति बने. अब्दुल्ला यामीन की सरकार में वे निर्माण मंत्री थे. इस दौरान इन्होंने चीन की फंडिंग वाले कई प्रोजेक्ट पर काम किया. इसमें राजधानी माले को एयरपोर्ट वाले द्वीप से जोड़ने के लिए 200 मिलियन डॉलर के पुल का प्रोजेक्ट शामिल है. ऐसे में चीन के प्रभाव में उनका आना लाज़िमी था. लेकिन चीनी निवेश और कर्ज के श्रीलंका के अनुभव से मोइज्ज़ू ने लगता है कि कुछ सीखा नहीं है. फिलहाल वे चीन के दौरे पर हैं और चीन को मालदीव में और असर बढ़ाने का मौक़ा दे रहे हैं( साभार NDTV इंडिया)

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