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यूएपीए के आरोपी को रिहा करते हुए कोर्ट ने कहा था : साक्ष्यों की बजाय भावना पर आधारित थे आरोप

RK News by RK News
July 13, 2021
Reading Time: 1 min read
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यूएपीए के आरोपी को रिहा करते हुए कोर्ट ने कहा था : साक्ष्यों की बजाय भावना पर आधारित थे आरोप

वडोदराः गुजरात के आणंद की एक सत्र अदालत ने श्रीनगर के 43 वर्षीय नागरिक को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार करने के ग्यारह साल बाद रिहा करते हुए कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोपी के आतंकी गतिविधियों से जुड़े होने को लेकर कोई साक्ष्य पेश नहीं कर सका.

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द वायर की रिपोर्ट में आगे कहा गया है की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि किसी भी शख्स को सामाजिक भय, अराजकता, दहशत और समाज के प्रति चिंता के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता.आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) द्वारा आणंद से 13 मार्च 2010 की आधीरात को गिरफ्तार किए गए बशीर अहमद उर्फ एजाज गुलामनबी बाबा 22 जून को अपने परिवार के पास लौटे.

चौथे अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एसए नकुम की अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष सिर्फ संदेह से परे जाकर कोई साक्ष्य पेश करने में असफल रहा. अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर पाया कि क्या आरोपी किसी तरह की आतंकी गतिविधि में शामिल था या क्या वह किसी आतंकी संगठन से जुड़ा था या क्या उसने आतंकी गतिविधियों के लिए किसी तरह की धनराशि जुटाई थी.

अदालत ने कहा कि गवाहों की गवाहियों में दम नहीं है. फॉरेंसिक भी पुलिस के रुख का समर्थन नहीं करते और अहमद के इकबालिया बयान को सबूत के तौर पर दर्ज नहीं किया जा सकता.अहमद पर आतंकी नेटवर्क के लिए रेकी करने और 2002 गुजरात दंगों के प्रभावित मुस्लिमों की हिजबुल मुजाहिद्दीन के लिए भर्ती करने का आरोप था.एटीएस का दावा था कि अहमद पाकिस्तान स्थित कमांडरों सैयद सलाहुद्दीन, बिलाल अहमद शेरा और आणंद के गुलाम रसूल मोहम्मद इस्माइल खान सहित हिजबुल हैंडलर्स के निरंतर संपर्क में था.अहमद पर आईपीसी की धारा 120 (बी) (आपराधिक साजिश रचने) और यूएपीए सहित कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था.अदालत ने कहा, ‘सरकारी वकील के तर्क में भावनाएं अधिक थीं.

आपराधिक न्यायशास्त्र में शिकायतकर्ता पक्ष को बिना किसी संदेह के अपने पक्ष को साबित करना होता है. ऐसा कुछ भी साबित नहीं किया गया, जिससे पता चले कि आरोपी किसी तरह के आतंकी संगठन से जुड़ा हुआ था या आरोपी ने गुजरात के मुस्लिम युवाओं को आतंकी गतिविधियों के लिए प्रशिक्षण लेने भेजा था.’श्रीनगर के रैनवाड़ी के स्थानीय नागरिक अहमद बच्चों के लिए काम करने वाले एनजीओ ‘किमाया कलेफ्ट सेंटर’ में बतौर कैंप सहायक के रूप में काम करते थे.

वह कलेफ्ट और क्रैनीफेशियल रिसर्च इंस्टिट्यूट (सीसीआरआई) के साथ प्रशिक्षण लेने क लिए अहमदाबाद आए थे.पुलिस का दावा है कि उन्हें अहमद के विजिटिंग कार्ड पर माया फाउंडेशन (एनजीओ) का ईमेल एड्रेस, पाकिस्तान का फोन नंबर, एक कागज जिस पर बिलाल नाम लिखा था, एक डायरी जिसमें हैंडलूम शॉप, लॉ गार्डन, अक्षरधाम मंदिर, जामा मस्जिद जैसे अहमदाबाद के स्थानों के नाम लिखे थे और आईएसआई लिखा था.

मामले में मुख्य गवाह सीसीआरआई का प्रोजेक्ट डेवलपमेंट कार्यकारी मनीष जैन ने कहा कि अहमद प्रशिक्षण को लेकर ज्यादा इच्छुक नहीं था.उन्होंने कहा कि वह अक्सर मांसाहार के लिए एक होटल जाता था.हालांकि, अदालत ने कहा, ‘जम्मू कश्मीर जैसे दूरस्थ राज्य से आए आरोपी के लिए कैंप के बाद अपने फ्री टाइम में म्यूजियम जाना और भोजन अवकाश के दौरान मांसाहारी भोजन के लिए बाहर जाना बहुत स्वाभाविक है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है. इन सब तथ्यों की वजह से यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी की प्रशिक्षण के बजाय आतंकी गतिविधियों में अधिक रुचि थी.’मामले में एक अन्य गवाह डॉ. आनंद विजयव्रज सोमेरी जिनके फ्लैट में अहमद रहता था. उन्होंने कहा कि वह अक्सर उनके फोन का इस्तेमाल पाकिस्तान और दुबई के लोगों से बात करने के लिए करता था.एटीएस का कहना है कि सोमेरी के पास भी किसी पाकिस्तानी नंबर से फोन आया था जिससे उन्हें पता चला कि अहमद को बशीर बाबा के नाम से भी बुलाया जाता है.

हालांकि सोमेरी ने क्रॉस जांच के दौरान स्वीकार किया कि भाषाई दिक्कत की वजह से वह पाकिस्तान में किए गए फोन कॉल के दौरान हुई बातचीत को समझ नहीं सके.अदालत ने पुलिस जांच की आलोचना करते हुए कहा कि उसे ऐसी कोई भी जानकारी नहीं मिली जिससे पता चल सके कि आरोपी 28 फरवरी के बाद कहां था और 13 मार्च तक कैंप खत्म होने के बाद श्रीनगर लौटने के लिए उसने ट्रेन कब बुक की.पुलिस का कहना है कि अपने इकबालिया बयान के समय अहमद उनकी हिरासत में नहीं था.अदालत ने गौर किया कि पुलिस के गवाह हितेंद्र सिंह जडेजा ने कहा था कि अहमद को पकड़ा गड़ा, उसकी तलाशी ली गई और उससे पूछताछ की गई.जज ने कहा, ‘तकनीकी रूप से और अप्रत्यक्ष तरीके से अहमद को हिरासत में लिया गया और उनसे पूछताछ की गई और इस घटना को शिकायत में इकबालिया बयान के तौर पर पेश किया गया. इसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 और 26 के प्रावधानों के तहत साक्ष्य नहीं माना जा सकता.

’एटीएस ने अहमद के खिलाफ 2008 में श्रीनगर के कर्णनगर पुलिस स्टेशन में विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसमें दावा किया गया था कि वह हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़े हुए हैं.थाने के ‘क्राइम राइटर’ ने कहा कि एफआईआर में इस्तेमाल किया गया संक्षिप्त नाम ‘एचएम’ प्रतिबंधित संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के लिए है.अदालत ने कहा, ‘ऐसा नहीं कहा जा सकता कि एफआईआर में एचएम शब्द का इस्तेमाल करने के आधार पर आरोपी हिजबुल मुजाहिद्दीन से जुड़ा हुआ है या आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा है. यह कानून का स्थापित नियम है कि जब तक कोई शख्स दोषी सिद्ध नहीं हो जाता उसे निर्दोष माना जाता है.’बीते महीने ही रिहा होकर अपने घर श्रीनगर पहुंचे बाबा ने कहा था कि वह कभी निराश नहीं हुए. उनका कहना था, ‘मुझे पता था कि मैं निर्दोष हूं और इसलिए कभी उम्मीद नहीं खोई. पता था कि मुझे एक दिन सम्मान के साथ रिहा किया जाएगा.’

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