कुमार तथागत
लोकसभा चुनावों में शर्मनाक प्रदर्शन के बाद उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री योगी विरोधियों के हमले तेज हो गए हैं। बीते कई सालों से नेतृत्व परिवर्तन की आस लगाए बैठे भाजपा के धड़े को ये एक सुनहरे मौके की तरह दिख रहा है और वो मत चूको चौहान की तर्ज पर चौतरफा वार की मुद्रा में हैं। हालांकि योगी खेमे की ओर से इसका भरपूर मुकाबला किया जा रहा है और लोकसभा चुनावों में हार की ठीकरा केंद्रीय नेतृत्व पर फोड़ा जा रहा है। हाल में संपन्न हुयी प्रदेश भाजपा की कार्यसमिति की बैठक से पहले और उसके दौरान दोनो धड़ों के एक-दूसरे पर हमले तेज होते दिखे। योगी विरोधी खेमे को मजबूती प्रदेश में सहयोगी दलों से भी मिल रही है जो योगी पर वार का कोई मौका छोड़ते नहीं दिख रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में भाजपा को करारी हार मिली और वह समाजवादी पार्टी से पिछड़ कर वह 33 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर आ गयी। हार के बाद भाजपा ने सीटवार समीक्षा की और हारे प्रत्याशियों सहित कार्यकर्त्ताओं से बात कर रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कई अन्य कारणों के अलावा भितरघात, प्रशासन के भाजपा कार्यकर्त्ताओं की अनदेखी, बेलगाम नौकरशाही सहित कई कारण योगी के खिलाफ जाते हैं। हालांकि प्रत्याशियों के चयन, रणनीति में कमजोरी और कार्यकर्त्ताओं में उत्साह की कमी को भी कारण बताया गया है। रिपोर्ट के आ जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश में किसी ने हार की जिम्मेदारी नही ली है और न ही आगे बढ़कर इस्तीफे की पेशकश की है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, प्रदेश प्रभारी धर्मपाल से लेकर सभी आला अधिकारी सहित मुख्यमंत्री अपनी जगह काम कर रहे हैं और हार की ठीकरा दूसरे के सर फोड़ने की कवायद में जुटे हैं
आलाकमान से दूरी बढ़ती जा रही
सात साल से भी ज्यादा समय पहले जब योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए तो उसमें बड़ा हाथ अमित शाह का माना जा रहा था। हालांकि कुछ ही दिनों के बाद दोनो के रिश्ते सहज नहीं रह गए। कई मौके एसे भी रहे जब ये टकराहट अपने चरम पर पहुंची। चाहे वह आईएएस की नौकरी छोड़ प्रदेश की राजनीति में आए एके शर्मा को मंत्री बनाने का मामला रहा हो या दारा सिंह चौहान व ओम प्रकाश राजभर को एनडीए में लाने व प्रदेश में मंत्री बनाना रहा हो। प्रदेश में विधानसभा या विधान परिषद से लेकर राज्यसभा के लिए प्रत्याशियों के चयन में आलाकमान ने योगी को दरकिनार ही रखा। हालात यहां तक पहुंचे कि प्रदेश में आज तक कार्यवाहक डीजीपी काम कर रहे हैं और योगी को अपनी पसंद का मुख्य सचिव साढ़े सात साल बाद मिल सका है।
लोकसभा चुनावों में जिस तरह से अमित शाह ने कमान संभाली और हार के बाद जिस तरह से योगी खेमा उन्हें जिम्मेदार ठहराने की कवायद में जुटा है उससे भी रिश्तों में खटास बढ़ती जा रही है। संयोग ही नहीं है कि मुख्यमंत्री योगी से असहज रिश्ते रखने वाले दोनो उप मुख्यमंत्री हों या सहयोगी दलों के संजय निषाद, ओम प्रकाश राजभर हों अथवा हाल ही सपा से आकर व उपचुनाव हारकर भी मंत्री बनाए गए दारा सिंह चौहान हों, इन सभी से गर्मजोशी से अमित शाह से मिलते हुए तस्वीरें अक्सर प्रचारित होती हैं।
सरकार से लेकर संगठन तक मुख्यमंत्री पर हमलावर
कुछ परोक्ष और बहुत से लोग अपरोक्ष रूप से लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली को जिम्मेदार बता रहे हैं। पूर्व मंत्री मोती सिंह, बदलापुर (जौनपुर) के विधायक रमेश मिश्रा सहित कई नेताओं ने तो अपनी बात सार्वजनिक रूप से रखी पर तमाम हारे हुए प्रत्याशियों ने समीक्षा के दौरान भी प्रदेश सरकार की कार्यशैली को जिम्मेदार बताया है। भाजपा कार्यसमिति की बैठक में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के संगठन के सरकार से बड़ा व सर्वोपरि होने के बयान को इसी से जोड़ा जा रहा है जिस पर खूब तालिया बजी और उनसे इसे दोहराने को कहा गया।
राजनैतिक टीकाकार योगी के उत्तराधिकारी होने की कतार में बसे आगे उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के कद पर सवाल खड़ा करते हैं। प्रो. रविकांत कहते हैं कि भूलना नहीं चाहिए कि मौर्य विधानसभा चुनाव भी हार गए थे और इस लोकसभा चुनाव में उनकी अपनी सीट भाजपा गंवा चुकी है। अन्य लोगों का कहना है कि उप मुख्यमंत्री तो अब पिछड़ों की छोड़ दे बल्कि अपनी मौर्य जाति के ही सर्वमान्य नेता नहीं रह गए हैं। दूसरे उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ही हालात बहुत बेहतर नहीं है। इनके अलावा प्रदेश भाजपा में किसी का कद योगी के आसपास नहीं दिखता है।(आभार:सत्य हिन्दी)