क्या कर्नाटक की जनता ने बीजेपी के हिंदुत्व को खारिज कर दिया है?इस का उत्तर देते हुए वरिष्ठ पत्रकार एन राम बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कहा कि
अवश्य कह सकते हैं. यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी वहां जाने पर हनुमान के नारे लगाए. यह चुनाव संबंधी नियमों के ख़िलाफ़ था.
वो कह सकते हैं कि लोग कहते हैं कि स्थानीय मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इससे वे विचारधारा की असफलता से बच नहीं सकते. यह हिन्दुत्व विचारधारा की भी नाकामी है.
अब पूरे दक्षिण भारत में बीजेपी सत्ता से बाहर है. कर्नाटक में बीजेपी अब घटकर 64 स्थानों पर आ गई है, जो सबसे ख़राब स्थिति है.
दक्षिण भारत में हिंदुत्व के ख़िलाफ़ अब एक मजबूत दीवार खड़ी हो गई है, इसके लिए कांग्रेस ने काफ़ी मेहनत की है. कांग्रेस नेताओं ने अच्छे से अभियान चलाया.
पीएम मोदी का प्रचार केवल बेंगलुरु में रंग लाया. एक बात और है, लोगों ने फ़िलहाल बीजेपी की राजनीति को खारिज़ कर दिया है. लेकिन, इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि लोकसभा चुनाव के नतीजे कैसे आएंगे.
कर्नाटक में बीजेपी की ओर से अधिकांश फ़ैसले बी.एल. संतोष ने लिए. वहीं प्रदेश में सरकार का नेतृत्व बासवराज बोम्मई कर रहे थे, जबकि पीएम मोदी ने यहां ज़ोरदार प्रचार किया- ऐसे में सवाल उठता है कि इस हार की ज़िम्मेदारी किसकी है?
पूरी पार्टी को हार की ज़िम्मेदारी लेनी होगी. सब मिलकर काम करते हैं, लेकिन हार की प्रमुख वजह राज्य सरकार का रवैया रहा है. लोगों को यह सरकार पसंद नहीं आई.
इस नाकामी में केंद्रीय नेतृत्व की भी भूमिका है. कुल मिलाकर लोगों ने बीजेपी को नापसंद किया है.
इस सवाल पर कि आगामी चुनावों पर क्या असर होगा?एन राम ने कहा कि आगामी चुनावों के लिए यह संकेत हो सकता है. लेकिन जहां तक लोकसभा चुनाव का सवाल है, ऐसे नतीजों की उम्मीद नहीं की जा सकती.
कई राज्यों में विधानसभा चुनाव परिणाम और संसदीय चुनाव परिणाम अलग-अलग रहे हैं. इस चुनावी हार को देखते हुए कहा जा सकता है कि दक्षिण भारत में बीजेपी के ख़िलाफ़ लहर है.
कांग्रेस के लिए, गठबंधनों को ठीक से संभालने की ज़रूरत है. गठबंधन को सही से चलाने में कांग्रेस की दिलचस्पी कम हो गई है.सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए इसे बखूबी निभाया. उन्होंने धर्मनिरपेक्ष राजनीति को लोकतांत्रिक तरीके से निभाया. अब आगे ऐसा होगा या नहीं, देखना बाक़ी है.(courtsay:bbc)