देश में नफरतअंगेज़ी की प्रवृत्ति में इज़फ़ा हो रहा है। संक्रमण से प्रभावित लोगों को सहयोग राशि और उनके स्वास्थ्य की बहाली पर सरकार उचित ध्यान नहीं दे रही है। सांप्रदायिक शक्तियां अपने चरम पर हैं। भीड़-हिंसा की घटनाओं में भी दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार से समाज के पिछड़े वर्गों असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। समाज में ध्रुवीकरण के मामले बढ़ रहे हैं और इन निंदनीय गतिविधियों में लिप्त तत्वों के खि़लाफ़ कार्रवाई न होने की वजह से उनका हौसला बढ़ता जा रही है। ये बातें जमाअत इस्लामी हिन्द के मासिक ऑन लाइन प्रेस कान्फ्रेंस में उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कही।
उन्होंने मांग की कि सरकार सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वालों के खि़लाफ कठोरता से पेश आए। और साथ ही मज़दूरों, उद्योगों और ऐसी संस्थाओं जिस पर कोविड संक्रमण का प्रभाव पड़ा है उसे वित्तीय सहायता प्रदान करने से संबंधित प्रोग्रेस रिपोर्ट को अपने दैनिक प्रेस ब्रिफिंग में पेश करे। और कोरोना से मरने वालों के अनाथ बच्चों की शिक्षा का मुफ्त बंदोबस्त करे। उनकी विधवा को वित्तीय सहायता प्रदान करे। और परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी दे। उन्होंने देश की आर्थिक सूरतेहाल का उल्लेख करते हुए कहा कि धीमी आर्थिक विकास और उच्च बेरोजगारी के गतिरोध का सामना कर रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के अनुसारए 2021 में देश की मासिक बेरोजगारी दर जनवरी में 6.62% से बढ़कर अप्रैल में 7.97% हो गई जो मई के अंत तक लगभग 14.5% हो गई।
कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए जमाअत इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय सचिव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए हमें अपनी अर्थव्यवस्था को एक बार फिर से मांग.संचालित बनाने की जरूरत है क्योंकि अतिरिक्त आपूर्ति मुद्रास्फीति और नौकरी जाने और कर्मियों छंटनी का कारण बन रही है।। उन्होंने कहा कि देश की वर्तमान सूरते हाल पर जमाअत इस्लामी हिन्द सामुदायिक संगठनों के साथ मिल कर संयुक्त प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए सरकार से स्थिति पर काबू पाने के लिए लगातार मांग कर रही है।
एक सवाल के जवाब में जमाअत के मीडिया सचिव सैयद तनवीर अहमद ने कहा कि लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के माध्यम से ही संभव है। चुनावी बांड का आगमन निर्वाचन के निष्पक्ष और पारदर्शी प्रणाली का विलोम है। चुनावी बांड आम तौर इस आम सोच की भी पुस्टि करता है कि व्यापार अनुबंधए भारी बैंक ऋण और औद्योगिक लाइसेंस हासिल करने के लिए दानदाताओं और राजनीतिक दलों के बीच एक अप्रत्यक्ष सहयोग है। जहां तक इस मुद्दे को सार्वजनिक बनाने का है, तो अभी यह समय उपयुक्त नहीं है।