आने वाले समय में केंद्र सरकार धर्मस्थल कानून को बदल सकती है। अभी तत्काल इसकी कोई जरूरत नहीं दिख रही है, क्योंकि इस कानून के रहते ही अदालतें धर्मस्थलों को लेकर ऐसे आदेश दे रही हैं, जिनसे उनकी प्रकृति बदल सकती है। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब मथुरा की एक अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह के विवाद में सर्वे करने का आदेश दे दिया है। इससे पहले वाराणसी मे जब सर्वे का आदेश दिया गया तो दूसरे पक्ष की ओर से बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बने धर्मस्थल कानून का हवाला दिया गया था, जिसके मुताबिक किसी भी धर्मस्थल की 1947 वाली स्थिति को बदला नहीं जा सकता है। तब अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यह कानून किसी धर्मस्थल का सर्वे करने से नहीं रोकता है। यह भी कहा गया कि सर्वे करने से किसी धर्मस्थल की प्रकृति नहीं बदल जाती है। ऊपरी अदालतों ने भी इस तर्क को स्वीकार किया। इसी तर्क के आधार पर मथुरा में भी सर्वे का आदेश दिया गया है। सवाल है कि अगर सर्वे के जरिए यह साबित हो गया कि ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पर पहले मंदिर था और जिसे फव्वारा बताया जा रहा है वह शिवलिंग था तो क्या होगा? या सर्वे में यह पता चले कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जगह पर शाही ईदगाह है तो क्या होगा? अंदाजा लगाया जा सकता है कि तब इन दोनों जगहों को हिंदुओं को सौंपने के लिए कैसा आंदोलन होगा। अदालतों की सुनवाई से जब यह मुद्दा पूरी तरह से पक जाएगा तब धर्मस्थल कानून को बदला जा सकता है।
(यह लेखक के निजी विचार है)