नई दिल्ली: मोदी सरकार ने एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट से उन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांगों पर विचार-विमर्श पूरा करने के लिए समय मांगा है, जहां उनकी संख्या दूसरों से कम हो गई है। केंद्र ने कहा कि यह मामला संवेदनशील है और इसके दूरगामी प्रभाव होंगे।
जनसत्ता के अनुसार अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय और अन्य की याचिकाओं के जवाब में सोमवार को दायर अपने चौथे हलफनामे में केंद्र ने कहा कि उसे इस मुद्दे पर अब तक 14 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों से टिप्पणियां मिली हैं और उसने दूसरे राज्यों को इस मामले पर कमेंट करने के लिए रिमाइंडर भेजा है।
याचिकाकर्ताओं ने टीएमए पाई मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2002 के ऐतिहासिक फैसले पर भरोसा करते हुए परामर्श प्रक्रिया की कानूनी पवित्रता पर संदेह जताया है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस मामले में फैसले के बाद केंद्र अब किसी को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित नहीं कर सकता है इसलिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत जो भी विचार-विमर्श किया जा सकता है वह किसी राज्य में किसी को भी अल्पसंख्यक दर्जे की पुष्टि नहीं कर सकता है।
टीएमए पाई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्धारित किया कि अनुच्छेद 30 के प्रयोजनों के लिए धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को राज्य स्तर पर पहचानना होगा। सोमवार के हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श बैठकें की हैं।