तवलीन सिंह द इंडियन एक्सप्रेस में एक अमेरिकी अश्वेत कवयित्री को उद्धृत करती हैं- “इतिहास चाहे जितना भी दर्द भरा हो, दुबारा नहीं जिया जा सकता है. साहस के साथ अगर उसका सामना किया जाए, तो उसको दोबारा जीने की जरूरत नहीं है.”
काश! एनसीईआरटी के अधिकारियों ने इतिहास की किताबों से उन चीजों को मिटाने के पहले इन शब्दों को याद किया गया होता जो हिंदुत्ववादियों को इन दिनों बहुत तकलीफ देती हैं. गांधीजी ने कितना प्रयास किया था हिंदुओं और मुसलमानों में भाईचारा बनाए रखने के लिए. वह भी उस समय जब देश का बंटवारा हुआ था इस्लाम के नाम पर.
तवलीन सिंह लिखती हैं कि पाठ्यपुस्तकों में बदलाव कर रहे लोग भुलाना चाहते हैं कि नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की इस नेक कोशिश को रोकने के लिए उनकी हत्या कर दी थी. वे भुलाना चाहते हैं कि गांधीजी की हत्या के बाद संघ पर उनके सबसे प्रिय नायक सरदार पटेल ने प्रतिबंध लगाया था.
गुजरात में हुए 2002 के दंगों का जिक्र अब किताबों से गायब कर दिया गया है. अब मोदी भक्तों ने भी सोशल मीडिया पर कहना शुरू कर दिया है कि यह बेवकूफी है. बेहतर होता कि मुगल दौर में जो हिंदुओं के साथ अत्याचार हुआ था, उसके बारे में लिखा जाए विस्तार से. लेखिका मानती हैं कि किताबों में परिवर्तन लाना जरूरी था. मुसलमानों को खुश रखने के लिए मुगलकाल की ज्यादतियों को याद नहीं किया जाए या फिर आज हिंदुओं को खुश करने के लिए मुगलकाल को ही किताबों से हटा लिया जाए- दोनों बातें गलत हैं.
आभार:इंडियन एक्सप्रेस