बांग्लादेश के मीडिया, वहाँ की विपक्षी पार्टी और वर्तमान सरकार में भारत की भूमिका को लेकर बहस हो रही है.वहाँ के मीडिया में भारत की भूमिका की तीखी आलोचना हो रही है, तो मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी शेख़ हसीना की सरकार में भारत के साथ हुए समझौते को रद्द करने की मांग कर रही है.
ढाका ट्रिब्यून बांग्लादेश का प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार है.
ढाका ट्रिब्यून के संपादक जफ़र सोभन ने रविवार एक लेख में लिखा है कि ‘हिंदू बांग्लादेश में ख़तरे में नहीं हैं’ और वहां के ‘अल्पसंख्यक भारत की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं.’
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं. यानी ज़फ़र सोभन भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की तुलना में हिंदुओं को ज़्यादा सुरक्षित बता रहे हैं.
उन्होंने लिखा है, ”शेख़ हसीना को गद्दी से उतरने पर मजबूर करने वाला आंदोलन इस्लामी क्रांति नहीं है. इस आंदोलन की अगुवाई करने वाले छात्र प्रतिबद्ध और देशभक्त हैं जो एक निष्पक्ष और स्वतंत्र बांग्लादेश की चाहत रखते हैं.”
रविवार को भारत के रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, “बांग्लादेश में सेना की ओर से चुनी गई नागरिक सरकार में मानवाधिकारों का उल्लंघन जारी है और यहाँ तक कि कोर्ट में भी राजनीतिक बंदियों के साथ मारपीट हो रही है.”
उन्होंने लिखा, “ताज़ा मामला है सुप्रीम कोर्ट के 75 साल के वरिष्ठ जज का, जिन्हें मैजिस्ट्रेट कोर्ट में बुरी तरह से पीटा गया और उनके गुप्तांगों पर चोट पहुंचाई गई, जिससे उन्हें अस्पताल में इमरजेंसी सर्जरी करानी पड़ी.”
एक रिटायर्ड जनरल को अंतरिम सरकार के मुखिया प्रोफ़ेसर यूनुस का सलाहकार बनाए जाने पर रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने एक्स पर लिखा, “ऐसा लगता है कि यह बांग्लादेश की राजनीति में सेना के निर्णायक शासक बनने का संकेत हैं.”
उन्होंने लिखा, “नागरिक मोर्चे के पीछे सेना ही प्रमुख फ़ैसले ले रही है. कुछ दिन पहले, एक अन्य सलाहकार, ब्रिगेडियर जनरल सख़ावत हुसैन ने जबरन राजनीतिक वसूली में लगे लोगों को चेतावनी देते हुए कहा कि उन्होंने “सेना प्रमुख से अपील की है कि वे आपके पैर तोड़ दें.”
अवामी लीग के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा
शेख़ हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग पर भी कार्रवाइयां जारी हैं.
रविवार को शेख़ हसीना के राजनयिक पासपोर्ट को अंतरिम सरकार ने रद्द कर दिया था, जिससे ये भी सवाल खड़ा हो गया है कि हसीना भारत में कितने दिन तक रहेंगी.
बांग्लादेश के एक और प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार द डेली स्टार ने लिखा है कि भारतीय वीज़ा पॉलिसी के अनुसार, राजनयिक या आधिकारिक पासपोर्ट धारक बांग्लादेशी नागरिक भारत में 45 दिन तक रुक सकता है. हसीना 18 दिन से अधिक भारत में गुज़ार चुकी हैं.
बांग्लादेश में उन पर 61 मुक़दमे दर्ज किए गए हैं, जिनमें 51 हत्या से जुड़े हैं. इनमें वे 12 मामले भी शामिल हैं, जिन्हें रविवार को दर्ज किया गया.
इसके अलावा अवामी लीग के पूर्व मंत्री उबैदुल क़ादर, असदुज्ज़मान ख़ान कमाल, अनिसुल हक़ और जहांगीर कबीर नानक और पूर्व इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस चौधरी अब्दुल्लाह अल मामुन भी इन मामलों में अभियुक्त हैं.
रविवार को दर्ज मामलों में, 2010 में बांग्लादेश राइफ़ल्स के एक पूर्व अधिकारी की मौत के मामले में हसीना, पूर्व आर्मी चीफ़ अज़ीज़ अहमद और अन्य 11 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है
बांग्लादेश को लेकर भारत की नीति की आलोचना
इस बीच बांग्लादेश में भारत की नीतियों की भी आलोचना हो रही है.
विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेता अमीर खसरू महमूद चौधरी ने अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू को दिए इंटरव्यू में कहा है कि ‘बांग्लादेश को लेकर भारत की नीति पूरी तरह फ़ेल हो गई है.’
उन्होंने कहा, “बांग्लादेश को लेकर भारत की आधिकारिक नीति पूरी तरह से विफल रही, क्योंकि उस पर एक इको सिस्टम का दबदबा था, जिसमें ताक़तवर अधिकारी, रिटायर राजनयिक, विचारक और पत्रकार शामिल थे. इन्होंने ज़मीन पर राजनीतिक नब्ज़ देखे बिना सुरक्षा को प्राथमिकता दी.”
बीएनपी की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया सत्ता परिवर्तन के बाद जेल से बाहर आई हैं. अंतरिम सरकार में बीएनपी प्रमुख फ़ैसले लेने वालों में से एक है. कई लोग ख़ालिदा ज़िया को भारत विरोधी के रूप में पेश करते रहे हैं.
अमीर खसरू ने भारत से आग्रह किया कि वो बांग्लादेश में इस समय चल रही जनता की भावनाओं का सम्मान करे.
उन्होंने ये भी कहा, “भारत ने 2014, 2018 और 2024 में अवामी लीग सरकार को बार-बार मान्यता दी और असल में उसने इन तीनों चुनावों में अहम भूमिका निभाई.”(आभार BBC हिंदी)