यह मामला 1911 और 1915 के बीच शुरू होता है, जब भारत की ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला किया और सरकारी कार्यालयों और सचिवालयों के लिए जगह की पहचान की। एक अधिसूचना के माध्यम से उन सभी संपत्तियों के अधिग्रहण की घोषणा की जो उनकी प्रस्तावित राजधानी में आ रही थीं। इस अधिसूचना में उल्लिखित स्थानों में दरगाह, मस्जिद और कब्रिस्तान भीशामिल थे,जिन लोगों के व्यक्तिगत स्थानों को acquire कर लिया गया था, उन्होंने मुआवज़ाले लिया, लेकिन मुसलमानोंऔर मस्जिदों के ट्रस्टियों ने मुआवज़ा लेने से इनकार कर दिया।मुसलमानोंऔर मस्जिदों के ट्रस्टियों नेन सिर्फ ये कि मुआवज़ा नहीं लिया बल्कि मस्जिदों और दरगाहों में नमाज़ जारी रही और कब्रिस्तान में मय्यतों को दफनाना जारी रहा।यहविवाद जारी रहा, और इन संपत्तियों के नाम केआगे “सरकार दौलत मदार”लिख दिया गया,सरकार दौलत मदार वह विभाग था जो बाद मेंL&DO बनाऔर मुसलमानऔर मस्जिदों के ट्रस्टी सरकार सेमांगकरते रहे। कि इन जायदादों की मिलकियत के दस्तावेज़ों में मुसलमानो और मुतवल्लियों का ज़िक्र किया जाये,
1970 के दशक में, तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने IAS अधिकारी मुजफ्फर हुसैन बर्नीके नेतृत्व में एक समिति का गठन किया, जिसे “बर्नीसमिति” के नाम से जाना जाता है।“बर्नीसमिति”ने केंद्र सरकार से निम्नलिखित सिफारिशें कीं।
1. सूची ए:-
दिनांक 27-03-1984 के आदेश के अनुसार, सूची ए में उल्लिखित 123 वक्फ संपत्तियों (एलएंडडीओ की 61 और डीडीए की 62) को दिल्ली वक्फ बोर्ड को एक रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष की दर से पट्टे पर देने की मंजूरी दी गई थी।
2. सूची बी:-
सूची बी के तहत 40 संपत्तियों का उल्लेख किया गया है) (एलएंडडीओ की 19 और डीडीए की 21) जो सरकारी सार्वजनिक संपदाओं/सार्वजनिक पार्कों आदि के भीतर स्थित हैं, इन सम्पत्तियों को सरकार के पास रखने काप्रस्तावरखा गया था लेकिन दिल्ली वक्फ बोर्ड को उनका प्रबंधन करने की अनुमति दी गई थी। और संपत्तियों को वक्फ के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई थी।
3. सूची सी:-
सूची सी में 84 संपत्तियों का उल्लेख है। (एल एंड डीओ की 29 और डीडीए की 55) इन संपत्तियों को बर्नी समिति द्वारा हस्तांतरण के लिए अनुशंसित नहीं किया गया था।
1980 के दशक में, उस समय की कांग्रेस की केंद्र सरकार ने इन सभी 123 वक्फ संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को एक रुपये की वार्षिक दर पर पट्टे पर देने के लिए अधिसूचित किया था। यही वो बिंदु था जिसके बिना पर इंद्रप्रस्थ विश्व हिंदू परिषद को कोर्ट से स्टे मिल गया था,
होना तो ये चाहिए था कि मुसलमानों की ये सभी वक्फ संपत्तियां जिन में 90% मस्जिदें शामिल हैं, वक्फ बोर्ड को हर्जाने के साथ लौटा दी जातीं । लेकिन हुआ इसके विपरीत, उस समय की कांग्रेस सरकार ने एक साजिश के तहत इस बिंदु को इसमें जोड़ा कि इन संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को एक रुपये की वार्षिक दर पर पट्टे पर दे दिया जाये,
विश्व हिंदू परिषद ने अदालत से एक रुपये के वार्षिक पट्टे पर स्टे प्राप्त कर लिया। यह स्टे करीब 30 साल तक चला।
यूपीए ने अपने आखिरी दौर में Code of conduct लागू होने से एक रात पहले इन सभी waqf properties को denotify करते हुए एक अधिसूचना जारी कर दी
विश्व हिंदू परिषद ने फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, कोर्ट ने शहरी विकास मंत्रालय से इस मामले में फैसला लेने को कहा, जिस पर मंत्रालय ने एक रुकनी कमेटी का गठन किया, जिसके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी थी वो रिपोर्ट दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के साथ शेयर नहीं की गयी इसके बाद फिर दो रुकनी समिति बना दी गयी, दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड ने इस दो रुकनी committee के कंस्टीटूशन को दिल्ली हाई कोर्ट में challenge किया, ये मामला अभी हाई कोर्ट में पेंडिंग है,
तारीख़ 08-02-2023 को शहरी विकास मंत्रालय ने चेयरमैन दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड को खत लिखा जिसमें कहा है कि आपको इस मामले से बर्खास्त किया जाता है, हालाँकि, उसके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह स्वयं इस मामले में एक पक्षकार है, हम इस मामले को दिल्ली हाई कोर्ट में challenge करेंगे, रही बात 123 वक़्फ़ प्रॉपर्टीज की तो इन में से अक्सर मस्जिदें, क़ब्रिस्तान और दरगाहें हैं, जिन में बराबर नमाज़ें अदा हो रही हैं , ये प्रॉपर्टीज कहीं नहीं जाने वाली।