पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले में एक मुसलमान व्यक्ति की कथित लिंचिंग को लेकर दो पत्रकारों पर मामला दर्ज किए जाने को लेकर प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने आपत्ति जताई है.
प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने एक बयान जारी कर कहा, “यह जानकर पीड़ा हुई है कि यूपी पुलिस ने कथित लिंचिंग को सोशल मीडिया पर रिपोर्ट करने के लिए पत्रकार ज़ाकिर अली त्यागी और वसीम अकरम त्यागी पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 196 (धर्म, जाति समूह के आधार पर वैमनस्यता फैलाना) और 353 (सार्वजनिक अशांति पैदा करना) के तहत एफ़आईआर दर्ज की है.”
बयान के अनुसार, ‘सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचनाओं की रिपोर्टिंग, चाहे उस मैसेज का माध्यम कोई भी हो, प्रामाणिक पत्रकारिता की शर्तें पूरी करता है. बीएनएस का मनमाने तरीके से इस्तेमाल पत्रकारों को धमकाने के बराबर है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है.’
बयान में दोनों पत्रकारों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर को रद्द किए जाने की मांग की गई है.
इस संयुक्त बयान में इंडियन वुमेंस प्रेस कोर का नाम भी शामिल है.
स्थानीय मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक़, चार जुलाई की रात में हुई फ़िरोज़ क़ुरैशी की मौत के मामले में पांच लोगों पर एफ़आईरआर दर्ज की गई है, जिनमें दो पत्रकार हैं.
पुलिस का कहना है कि ‘ये आपसी विवाद था. फ़िरोज़ नशे की हालत में राजेंद्र के घर में घुस गए थे और फिर दोनों पक्षों में झगड़ा हुआ था.’
पत्रकार ज़ाकिर अली त्यागी और वसीम अकरम त्यागी ने इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था.
अपना पक्ष रखते हुए एक्स पर वसीम अकरम त्यागी ने लिखा, “मेरे ख़िलाफ़ शामली पुलिस ने लिंचिंग के मामलें को रिपोर्ट करने की वजह से एफआईआर दर्ज की है, यह पहली बार नहीं है. इससे पहले भी मेरी रिपोर्टिंग की वजह से मुझ पर पाँच बार हमले हो चुके हैं, लेकिन हाल ही में मेरे ख़िलाफ़ दर्ज हुई एफ़आईआर ने अन्य पत्रकारों को भी आश्चर्य में डाल दिया है.”
पूर्व सांसद दानिश अली ने एक्स पर लिखा है, “पत्रकार को निशाने पर लेना का यह एक क्लासिक केस है. यूपी पुलिस ने शामली हत्या में सांप्रदायिक एंगल को सामने लाने पर पत्रकारों के ख़िलाफ़ ही मामला दर्ज किया है जबकि जिन पर आरोप हैं वे गिरफ़्तार नहीं हुए हैं. लगता है कि पुलिस की प्राथमिकता में दोषी को सज़ा दिलाने की बजाय न्याय की आवाज़ को दबाना हो गया है.”