असम में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के घरों पर बुलडोजर की कार्रवाई
नई दिल्ली/ग्वालपारा, 15 जुलाई, जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी के निर्देश पर आज एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने असम के ग्वालपारा ज़िले का दौरा किया, जहां हाल ही में असम के आशडूबी और हसीलाबेल क्षेत्रों में असम सरकार द्वारा तोड़फोड़ कार्रावाई के तहत 3973 घरों को ध्वस्त कर दिए गया है। इन इलाक़ों में ज़्यादातर पीड़ित बंगाली मूल के मुसलमान हैं। गौरतलब है कि जमीअत उलमा-ए-असम ने विस्थापितों के लिए तत्काल तंबुओं की व्यवस्था की है।
यह प्रतिनिधिमंडल जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना मोहम्मद हकीमुद्दीन कासमी के नेतृत्व में प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचा, प्रभावितों से मुलाकात की और उनकी स्थिति की समीक्षा की। प्रभावित लोगों की हालत देखकर प्रतिनिधिमंडल को बहुत दुख हुआ और उसने उनकी हर संभव मदद का आश्वासन दिया। प्रतिनिधिमंडल में इसके प्रमुख के अलावा, हाफिज बशीर अहमद कासमी, महासचिव, जमीअत उलमा असम, मौलाना अब्दुल कादिर कासमी, सहायक महासचिव, जमीअत उलेमा असम, मौलाना महबूब हसन, सहायक महासचिव, जमीअत उलेमा असम, मौलाना फजलुल करीम कासमी, सहायक महासचिव, जमीअत उलेमा असम, मौलाना इज्जत अली, अध्यक्ष, जमीअत उलेमा जिला ग्वालपारा, अब्दुल हई, महासचिव, जमीअत उलेमा जिला ग्वालपारा, मुफ्ती सादुद्दीन सचिव, मरकज अल-यतामी ग्वालपारा और मौलाना अबुल हाशिम कोकराझार भी शामिल हैं।
प्रतिनिधिमंडल ने ज़िला मजिस्ट्रेट के माध्यम से असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नाम एक ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें तोड़फोड़ कार्रवाई को अमानवीय, असंवैधानिक और धार्मिक भेदभाव पर आधारित बताया गया। ज्ञापन में कहा गया है कि यह तोड़फोड़ की कार्रवाइयां केवल उन इलाकों में की गईं, जहां विशेषकर बंगाली मुसलमान बसे हुए थे, जबकि उसी जमीन पर रहने वाले अन्य समुदायों के निवासियों को नहीं छेड़ा गया, जो कि भेदभावपूर्ण रवैया है और धार्मिक आधार पर पक्षपात का खुला उदाहरण है।
ज्ञापन में आगे कहा गया है कि प्रभावित लोग गत 70-80 वर्षों से इन्हीं ज़मीनों पर रह रहे हैं, जिनमें से अधिकांश संख्या ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ के कारण विस्थापित हुए लोगों की है और वह सभी अधिकारिक रूप से भारतीय नागरिक हैं। उनको बेदखल करना न्याय और मानवीय मूल्यों के विरुद्ध है। कई क्षेत्रों में तोड़फोड़ की कार्रवाई औद्योगिक या निजी स्वार्थों के लिए की गई और प्रभावित लोगों को पूर्व सूचना देना भी ज़रूरी नहीं समझा गया, जो कानूनी बाध्यताओं और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों का खुला उल्लंघन है।
ज्ञापन में मांग की गई है कि बेदखली से उत्पन्न होने वाले गंभीर मानवीय संकट से निपटने के लिए तत्काल प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए कदम उठाए जाएं। असम में अभी भी विशेष सरकारी जमीन का एक बड़ा हिस्सा उपलब्ध है। सरकार को चाहिए कि वह इन बेदखल लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था और मुआवज़ा देने के लिए आगे आए। जब तक स्थायी व्यवस्था न हो जाए, तब तक सरकार अस्थायी रूप से इन प्रभावित लोगों को भोजन और आश्रय प्रदान करना चाहिए। हमें उम्मीद है कि सरकार इस संबंध में आवश्यक कदम उठाएगी।
असम जमीअत उलमा की प्रारंभिक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट
जमीअत उलमा असम के अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल और महासचिव हाफिज बशीर अहमद कासमी द्वारा प्रस्तुत की गई प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार ग्वालपारा, धुबरी और नलबारी जिलों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कुल 8115 परिवार प्रभावित हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप 32530 से अधिक लोग जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं, बेघर हो चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2023 से जुलाई 2025 तक चलने वाली तोड़फोड़ की कार्रवाइयों में 21 मस्जिदों, 44 मकतब और मदरसों और 9 ईदगाहों को भी ध्वस्त किया जा चुका है। इस स्थिति से निपटने के लिए, जमीअत उलमा-ए-हिंद द्वारा इन प्रभावित लोगों के लिए आश्रय और भोजन की भी व्यवस्था की है, हालांकि यह व्यवस्थाएं अपर्याप्त हैं। अभी और व्यवस्थाओं की तत्काल आवश्यकता है।(प्रेस विज्ञप्ति)












