क्या सुप्रीम कोर्ट आगे से किसी कथित बुल्डोजर न्याय पर अपनी तरफ से पहल कर कार्रवाई करेगा? ऐसा नहीं हुआ, तो आशंका है कि ताजा अदालती पहल का हश्र भी लीचिंग मामले में दिए आदेश जैसा हो
सर्वोच्च न्यायालय ने कथित बुल्डोजर न्याय के बारे जो बातें कही हैं, वो उन समाजों में सामान्य और खुद जाहिर रहती हैं, जो कानून के राज के सिद्धांत से चलते हैं। यह सिद्धांत भारतीय संविधान का भी आधारभूत तत्व है। ऐसे में यह लाजिम होना चाहिए कि इस सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला कोई अधिनियम या व्यवहार भारत में स्वीकार्य ना हो। मगर आज सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ रहा है कि अभियुक्तों या सजायाफ्ता व्यक्तियों के परिजनों को आवास से वंचित किया जाए, कानून इसकी इजाजत नहीं देता। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने पूछा- “सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति अभियुक्त है, उसके घर को कैसे तोड़ा जा सकता है?.. क्या ऐसा उस हाल में भी किया जा सकता है, अगर उसे सजा हो गई हो?” बहरहाल, देश की सर्वोच्च अदालत से अपेक्षा यह नहीं होती कि वह प्रश्न पूछने तक सीमित रहे। उससे अपेक्षा होती है कि वह कानून तोड़ने या उसे अपने हाथ में लेने वाले व्यक्ति या अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करे।
कोर्ट ने कहा है कि अवैध निर्माण के मामले में भी किसी मकान को तोड़ने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। कोर्ट ने इस बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करने की इच्छा जताई है। इस रूप में अदालत ने संवैधानिक भावना को व्यक्त किया है। मगर जिस दौर में कथित बुल्डोजर न्याय प्रचलित हुआ है, उसमें आम शिकायत है कि कानून की भावना के खिलाफ खुद सरकारें और उनके अधिकारी काम कर रहे हैं। ऐसे में न्यायपालिका की इस भावना का कितना पालन होगा, इसको लेकर संशय बने रहने का पर्याप्त आधार है। क्या सुप्रीम कोर्ट आगे से किसी कथित बुल्डोजर न्याय पर अपनी तरफ से पहल कर कार्रवाई करेगा? क्या वह अपने प्रस्तावित दिशा-निर्देशों के उल्लंघन पर अवमानना की कार्रवाई शुरू करेगा? ऐसा नहीं हुआ, तो आशंका है कि ताजा अदालती पहल का हश्र भी लीचिंग मामले में दिए आदेश जैसा हो जाएगा।