पटना हाई कोर्ट ने कहा है कि बैंक और वित्तीय संस्थान गाड़ी मालिकों द्वारा लोन डिफ़ॉल्ट करने की सूरत में उनकी गाड़ी को गुंडे भेजकर जबरन अपने कब्ज़े में नहीं ले सकता है और ऐसा करना जीवन और आजीविका के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है.
जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद की बेंच ने इस तरह के मामलों से जुड़ी हुई कई रिट याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा कि बैंक और वित्तीय कंपनियों के अधिकार संवैधानिक दायरे में और क़ानून के अनुसार ही इस्तेमाल किए जा सकते हैं.
पटना हाई कोर्ट की एकल पीठ ने कहा कि बैंक और वित्तीय कंपनियां बुनियादी उसूलों और भारत की नीति के ख़िलाफ़ बर्ताव नहीं कर सकती हैं. इसका मतलब ये हुआ कि किसी भी व्यक्ति को क़ानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बगैर उसकी आजीविका और गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
बेंच ने अपने आदेश में कहा कि गुंडों जिन्हें रिकवरी एजेंट भी कहा जाता है, की मदद से लोन डिफॉल्ट वाली गाड़ियों को कर्ज़दार से कब्ज़े में लेने पर सुप्रीम कोर्ट का पूरी तरह से प्रतिबंध है.