*- जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति ने भारत सरकार से मांग की कि वह तत्काल इस कानून को वापस ले और शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों को न रोके*
नई दिल्ली, 13 अप्रैल: जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति की एक अत्यंत महत्वपूर्ण सभा आज नई दिल्ली के आईटीओ स्थित मदनी हॉल में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी की अध्यक्षता में आयोजित हुई, जिसमें वक्फ संशोधन अधिनियम 2025, उत्तराखंड में मदरसों के विरुद्ध सरकारी कार्रवाई, समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन और फिलिस्तीन में नरसंहार जैसे वर्तमान समय के ज्वलंत मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई और महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इसके साथ ही नए सदस्यता अभियान की तिथि में भी विस्तार किया गया। कार्यकारी समिति की सभा में जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति के सदस्यों और देश भर से विशेष आमंत्रित लोगों ने भाग लिया और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
सभा में विशेष रूप से वक्फ संशोधन अधिनियम की कमियों और इसके पीछे के उद्देश्यों पर घंटों चर्चा हुई। सबसे पहले वक्फ की सुरक्षा को लेकर जमीअत उलमा-ए-हिंद के संघर्ष पर आधारित रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसके बाद जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने इस कानून पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा मानना है कि यह कानून देश के संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है और भारत के संविधान के विरुद्ध है, जो बहुसंख्यकों का वर्चस्व स्थापित करने के लिए लाया गया है। यह सिर्फ कानूनी मुद्दा नहीं बल्कि न्याय और सिद्धांत का मामला है। हमने इस तरह के उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ पहले भी लड़ाई लड़ी है और हम भविष्य में भी लड़ेंगे। इस देश की बुनियाद जिन सिद्धांतों पर रखी गई थी, वह समानता, न्याय और स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। ऐसा महसूस होता है कि आज इन बुनियादों को हिलाने का प्रयास किया जा रहा है। मैं चाहता हूं कि मेरे यह शब्द न केवल सुने जाएं, बल्कि महसूस भी किए जाएं। यह मेरे समुदाय की पीड़ा और भावनाओं की अभिव्यक्ति है। उम्मीद है कि देश का नेतृत्व, मीडिया और आम जनता इस आवाज को सुनेंगे और इस पर गंभीरता से विचार करेंगे।
इस अवसर पर जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति ने वक्फ अधिनियम के खिलाफ प्रस्ताव पारित करते हुए कहा कि यह अधिनियम भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300-ए के विरुद्ध है। इसका सबसे नुकसानदायक पहलू ‘वक्फ बाय यूजर’ की समाप्ति है, जिससे ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, उनकी संख्या चार लाख से अधिक है। केंद्रीय व0क्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना, धार्मिक मामलों में खुला हस्तक्षेप और अनुच्छेद 26 का स्पष्ट उल्लंघन है। यह कानून बहुसंख्यकों के वर्चस्व का प्रतीक है, जिसका हम कठोरता से विरोध करते हैं।
कार्यकारी समिति यह स्पष्ट करती है कि वर्तमान सरकार संविधान की भावना और संवैधानिक समझौते का उल्लंघन कर रही है। एक पूरे समुदाय को हाशिए पर डालने, उनकी पहचान मिटाने और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास किया जा रहा है। सभा सरकार से मांग करती है कि वक्फ अधिनियम 2025 को तुरंत वापस लिया जाए। वक्फ इस्लामी कानून का एक मौलिक हिस्सा है और एक धार्मिक इबादत है। इसमें ऐसा कोई भी संशोधन स्वीकार्य नहीं है जो इसके धार्मिक चरित्र और शरई आधार को प्रभावित करे। संशोधन केवल प्रशासनिक सुधार के लिए होने चाहिए।
कार्यकारी समिति सरकार और विपक्ष के भ्रामक बयानों की निंदा करती है तथा मीडिया में फैलाए जा रहे दुष्प्रचार के खिलाफ सही स्थिति प्रस्तुत करने के लिए हर संभव कदम उठाएगी। यह भी स्पष्ट किया गया कि शांतिपूर्ण विरोध एक संवैधानिक अधिकार है। विरोध प्रदर्शनों को रोकना, कानूनी कार्रवाई करना या हिंसा का सहारा लेना निंदनीय है, जबकि विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा का सहारा लेना भी निराशाजनक है। ऐसे तत्व वक्फ आंदोलन को कमजोर कर रहे हैं।
जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति की यह सभा उत्तराखंड में धार्मिक मदरसों को सील करने के सरकार के कदम को संविधान का गंभीर उल्लंघन मानती तथा इसकी कड़ी निंदा करती है। धार्मिक मदरसे आजादी के बाद से ही स्वतंत्र रूप से स्थापित हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत सभी समुदायों को ऐसे संस्थान स्थापित करने का अधिकार है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संवैधानिक स्थिति को स्वीकार्य किया है। इसके बावजूद उत्तराखंड सरकार का रवैया संवैधानिक वादों के विपरीत है। कार्यकारी समिति ने उत्तराखंड सरकार को चेतावनी दी कि वह स्वतंत्र मदरसों पर प्रतिबंध लगाने से बचे तथा सील किए गए मदरसों को बहाल करे। अन्यथा जमीअत उलमा-ए-हिंद कानूनी कार्रवाई करने के लिए मजबूर होगी।
कार्यकारी समिति ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन और मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करने को धार्मिक अधिकारों का खुला उल्लंघन बताया। अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के प्रयास सार्वजनिक चिंता का कारण बन रहे हैं। समान नागरिक संहिता केवल मुसलमानों की ही समस्या नहीं है, बल्कि देश के सभी सामाजिक-सांस्कृतिक समूहों की समस्या है। हमारे बहुलतावाद की अनदेखी करके बनाया गया कोई भी कानून देश की एकता और अखंडता को प्रभावित करेगा। शरीयत के प्रति मुसलमानों की संवेदनशीलता इसकी सार्वभौमिक स्थिति और ईश्वरीय दिशा-निर्देशों पर आधारित होने के कारण है, जिनमें कोई भी बदलाव संभव नहीं है। मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करना लोकतंत्र और संवैधानिक गारंटियों के खिलाफ है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 से 29 में प्रदत्त हैं।
जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करते करते हुए राज्य सरकारों द्वारा बुलडोजर की कार्रवइयों पर गहरी चिंता व्यक्त की। न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया था कि किसी भी विध्वंस से पहले उचित प्रक्रिया, नोटिस और प्रभावित पक्ष को सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है, लेकिन हाल की कार्रवाइयों में इन सिद्धांतों विशेष रूप से कमजोर समूहों के खिलाफ की उपेक्षा की गई है। कार्यकारी समिति ने इन कार्रवाइयों की निंदा की और मांग की कि संवैधानिक संस्थाएं इन उल्लंघनों पर ध्यान दें और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को कानून के अनुसार जवाबदेह ठहराया जाए।
गाजा में इजरायल की दमनात्मक कार्रवाई और युद्ध अपराधों के बारे में भी गंभीर चिंता व्यक्त की गई। कार्यकारी समिति ने इजरायल की कार्रवाई को मानवता के विरुद्ध गंभीर अपराध बताया तथा भारत सरकार से मांग की कि वह मानवीय आधार पर तत्काल हस्तक्षेप करके युद्ध विराम सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाए, विशेष रूप से घायल फिलिस्तीनियों के उपचार और देखभाल के लिए ठोस और प्रभावी उपाय करे, तथा गाजा में घिरे फिलिस्तीनी लोगों को बुनियादी मानवीय आवश्यकताएं की पूर्ति के लिए हर संभव प्रयास किया जाए।
जमीअत उलमा-ए-हिंद के सदस्यता अभियान में विस्तार दिया गया है, जो पहले 1 अप्रैल को समाप्त हो रहा था, लेकिन अब इसे 31 जुलाई तक बढ़ा दिया गया है, और स्थानीय और जिला चुनाव 1 अगस्त या 31 अगस्त तक होंगे, जबकि प्रादेशिक चुनाव 1 सितंबर से 30 सितंबर तक होंगे। कार्यकारी समिति ने इस अवसर पर मौलाना सिद्दीकुल्लाह चौधरी के दामाद मुफ्ती लियाकत अली कासमी और मौलाना गुलाम गुलाम कादिर साहब के जवान बेटे जनाब अब्दुल रशीद बांडे और मौलाना याह्या करीमी मेवात की माता के निधन पर शोक भी व्यक्त किया। सभा के प्रारंभ में जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना मोहम्मद हकीमुद्दीन कासमी ने पिछली कार्रवाई प्रस्तुत की।
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