इजराइल की सत्ता इस वक्त एक ऐसे मुद्दे से हिल गई है जिसके सियासी नतीजे बेहद बड़े हो सकते हैं. गाज़ा युद्ध के बीच जहां इजरायली सेना सैनिकों की भारी कमी से जूझ रही है, वहीं प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपने ही सहयोगियों से जूझ रहे हैं. मसला है सेना में भर्ती को लेकर अल्ट्रा-ऑर्थोडॉक्स यहूदियों यानी हरेदी समुदाय की छूट खत्म करने का.जैसे ही हरेदी युवाओं पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी, नेतन्याहू सरकार के दो पिलर पार्टी शास और यूनाइटेड टोरा जूडाइज़्म भड़क उठे. उन्होंने साफ कह दिया है, अगर येशिवा छात्रों को गिरफ्तार किया गया, तो सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे. मतलब साफ है नेतन्याहू की कुर्सी खतरे में है.
इजरायली सेना (IDF) ने हाल ही में उन युवाओं पर कार्रवाई शुरू की है, जो अनिवार्य सैन्य सेवा के आदेश के बावजूद रिपोर्ट नहीं कर रहे. मिलिट्री पुलिस अब ऐसे युवाओं को उनके घर से उठा रही है. यह नियम हर नागरिक पर लागू है, लेकिन हरेदी नेताओं का आरोप है कि उनका समुदाय खासतौर पर निशाने पर है. शास और यूटीजे ने साफ कर दिया है कि अगर येशिवा छात्रों की गिरफ्तारी जारी रही, तो गठबंधन से बाहर हो जाएंगे.एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अगर छात्रों को जबरन उठाया गया, तो यह इस सरकार के आखिरी दिन होंगे. बवाल इतना बढ़ गया है कि हरेदी पार्टियों ने सेना प्रमुख एयाल ज़मीर पर ही सरकार गिराने की साजिश का आरोप जड़ दिया. उधर हरेदी कॉल सेंटर्स युवाओं को सैन्य सेवा से बचने के ‘टिप्स’ दे रहे हैं, और यरुशलम के कट्टरपंथी गुट अलर्ट मोड पर हैं.
जनता के दबाव के चलते सुप्रीम कोर्ट ने हरेदी समुदाय को दी गई छूट रद्द कर दी. सेना ने करीब 10 हजार हरेदी युवाओं को बुलावा भेजा, लेकिन महज कुछ ही लोगों ने रिस्पॉन्ड किया. अब मिलिट्री पुलिस ने मोर्चा संभाल लिया है और यही बना है नेतन्याहू सरकार के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द.आभार :tv9 भारत वर्ष