दिल्ली: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने रविवार (24 अगस्त) को कहा कि राज्य में कथित रूप से अतिक्रमित भूमि से बेदखल किए गए सभी लोगों के नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे.
शर्मा ने उसी दिन एक्स पर एक पोस्ट में दावा किया कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि बेदखल किए गए लोग ऊपरी असम के ‘अतिक्रमण’ वाले क्षेत्रों में वापस न लौटें.
उन्होंने एक्स पर अपने पोस्ट में कहा, ‘अब हमारी रणनीति यह सुनिश्चित करना है कि घुसपैठिए, जिनमें पहले से बेदखल किए गए लोग भी शामिल हैं, ऊपरी असम की ज़मीनों पर अतिक्रमण करने के लिए वापस न आएं, जैसा कि उन्होंने पिछले कुछ दशकों में निचले असम में किया था.’
हाल के दिनों में असम के मुख्यमंत्री ने एक्स पर कई पोस्टों में बेदखल किए गए परिवारों को बार-बार ‘अवैध बांग्लादेशी’ कहा है, जैसा कि द वायर ने 14 अगस्त को रिपोर्ट किया था कि विस्थापित लोग मुख्यतः मिया मुसलमान हैं. निचले असम में रहने वाले बंगाली मूल के मुसलमानों के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.
असम पांच क्षेत्रों में विभाजित है – ऊपरी असम (शिवसागर सहित आठ जिले), उत्तरी असम (चार जिले), मध्य असम (छह जिले), निचला असम (13 जिले) और बराक घाटी (तीन जिले).
शर्मा ने 24 अगस्त को संवाददाताओं से कहा, ‘सबसे पहले जिन लोगों को बेदखल किया गया है, उनके नाम उस मतदाता सूची में शामिल नहीं किए जाएंगे जहां से उन्हें बेदखल किया गया है.’
मुख्यमंत्री ने दावा, ‘उनका तरीका ऊपरी असम और उत्तरी असम को निशाना बनाना है. हम निचले और मध्य असम के विपरीत ऊपरी असम और उत्तरी असम को (घुसपैठियों से) बचाने की कोशिश कर रहे हैं. हमारी और उससे पहले की पीढ़ियां निचले और मध्य असम की रक्षा करने में विफल रहीं. लेकिन अब हमारी कोशिश कम से कम ऊपरी असम और उत्तरी असम को बचाने की है.’
उन्होंने कहा, ‘जैसे ही उन्हें बेदखल किया जाएगा, उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे… मार्गेरिटा में बसे अवैध प्रवासियों को निश्चित रूप से बेदखल किया जाएगा.’
असम ट्रिब्यून के अनुसार, शर्मा ने कहा कि असम के तिनसुकिया ज़िले के मार्गेरिटा में प्रस्तावित बेदखली के संबंध में उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक के साथ चर्चा चल रही है. शर्मा के हवाले से कहा गया है कि ‘जो लोग बाहर से आए हैं और जिनका इस जगह से कोई संबंध नहीं है, उन्हें बेदखल किया जाएगा.’
रिपोर्ट के अनुसार, शर्मा ने कहा कि मोरन, मटक, कोच राजबोंगशी, अहोम और गोरखा जैसे मूल निवासी समुदाय पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं और अगर सरकार उन्हें भूमि अधिकार नहीं देती है, तो अशांति फैल जाएगी.
जैसा कि द वायर ने 24 अगस्त को रिपोर्ट किया था, शर्मा ने 79वें स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में दावा किया था कि ओचिनाकी मनुह, यानी अज्ञात लोग/अज्ञात समुदाय, असम के सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में एक बढ़ती हुई चिंता का विषय हैं. अपने भाषण में उन्होंने दावा किया कि ये लोग – कथित तौर पर मिया मुसलमानों का ज़िक्र करते हुए – लव जिहाद और ज़मीन जिहाद सहित कई तरह के ‘जिहाद’ में शामिल रहे हैं.
शर्मा ने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने इस ‘अज्ञात समुदाय’ से 1.2 लाख बीघा ज़मीन वापस ले ली है और वे असमिया लोगों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे.
राज्य के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई थी, से लेकर अगस्त 2025 तक, 15,270 परिवारों – जिनमें से अधिकांश मुस्लिम हैं – को सरकारी ज़मीन से बेदखल किया गया है. 2016 से अब तक की गई बेदखली के दौरान कम से कम आठ मुसलमानों की गोली मारकर हत्या की गई है.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के गोलाघाट ज़िले के उरियमघाट और आसपास के गांवों में असम सरकार द्वारा चलाए जा रहे बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान पर अंतरिम रोक लगा दी थी.
याचिका में कहा गया था, ‘याचिकाकर्ता असम के गोलाघाट जिले में स्थित गांवों, अर्थात् नंबर 2 नेघेरिबिल, गेलजान, विद्यापुर, राजपुखुरी, उरियमघाट और आसपास के इलाकों के स्थायी निवासी हैं. उनके पूर्वज सात दशक से भी पहले वहां बस गए थे, और इन वर्षों में याचिकाकर्ताओं और उनके परिवारों ने स्थायी और अर्ध-स्थायी घर बनाए हैं, कृषि भूमि पर खेती की है.’
इसमें यह भी कहा गया कि निवासियों को बिजली कनेक्शन, राशन कार्ड, आधार नंबर दिए गए हैं और उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में लगातार नामांकित किया गया है.
बता दें कि असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा लगातार बांग्ला भाषी मुसलमानों पर निशाना साधते रहे हैं. जुलाई में उन्होंने कहा था कि जनगणना में असमिया की बजाय बंगाली भाषा चुनने वालों से बांग्लादेशियों की पहचान में मदद मिलेगी. यह बात उन्होंने राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के एक वर्ग द्वारा बांग्ला को जनगणना में अपनी मातृभाषा के रूप में सूचीबद्ध करने की मांग का जवाब देते हुए कहा था.आभार:द वायर हिंदी












