अफ़ग़ानिस्तान में वहां की सेना और कट्टरपंथी संगठन तालिबान के बीच चल रही जंग को कवर करने गए न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के पत्रकार दानिश सिद्दीक़ी की मौत पर भी कुछ लोग ख़ुश हो रहे हैं। न जाने यह कौन सी घटिया मानसिकता है जो किसी के इस दुनिया से जाने पर कुछ लोगों को सुकून देती है और वे इतने बेशर्म होते हैं कि इस सुकून का खुलेआम इजहार भी करते हैं।
इससे पहले भी ऐसा कई बार देखा गया है। लेकिन दानिश सिद्दीक़ी की मौत के बाद ऐसे नफ़रती लोग फिर सामने आए और उन्होंने ट्विटर पर अपनी सोच को जाहिर किया। सिद्दीक़ी प्रतिष्ठित पुलित्जर अवार्ड से सम्मानित थे और लोग उनके द्वारा खींची गई तसवीरों के कायल थे।
सत्या हिंदी डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के काल में भी दानिश ने बेहतर काम किया था और लोगों के दर्द को दुनिया तक पहुंचाया था। लेकिन बावजूद इसके वह उन लोगों को रास नहीं आते थे, जिन्हें हुक़ूमत के ख़िलाफ़ सच सुनना पसंद नहीं है।
नफ़रती लोगों ने ट्विटर पर उनकी मौत को उनके कर्मों यानी किए गए का नतीजा बताया। नो कन्वर्जन नाम के ट्विटर हैंडल ने लिखा कि दानिश ने कोरोना से मरने वाले लोगों की तसवीरों को बिना किसी से पूछे बेच दिया।
दानिश ने दिल्ली दंगों से लेकर कोरोना महामारी तक प्रवासी मजदूरों के दर्द को अपने कैमरे मे उतारा था। उनके द्वारा कोरोना की दूसरी लहर में दिल्ली में जल रही ढेर सारी लाशों को ड्रोन कैमरे के जरिये लोगों तक पहुंचाना हमेशा याद रखा जाएगा। लेकिन उस दौरान भी उनकी आलोचना हुई थी और कहा गया था कि वह सिर्फ़ हिंदुओं के अंतिम संस्कार की फ़ोटो दिखा रहे हैं। उनकी ये फ़ोटो सोशल मीडिया पर जोरदार ढंग से वायरल हुई थीं।