Roznama Khabrein
No Result
View All Result
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو
اردو
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو
No Result
View All Result
No Result
View All Result
Home विचार

संस्कृत ग्रंथों में कुछ हिंदुओं ने खिलजी की प्रशंसा की है: एक नजरिया

RK News by RK News
November 26, 2022
Reading Time: 1 min read
0
संस्कृत ग्रंथों में कुछ हिंदुओं ने खिलजी की प्रशंसा की है: एक नजरिया

उत्तर भारत में 12वीं सदी का दौर भारी उथल-पुथल भरा था. अफगानिस्तान में नई सल्तनतों के उदय के साथ, मध्य एशिया और भारत में गंगा के मैदान के बीच संबंध फिर से जीवंत हो गए थे. राजकाज और शाही पोशाक के तुर्क विचारों को कश्मीर और लद्दाख के माध्यम से शैव और बौद्ध शासकों ने अपनाया लिया था. गजनी के महमूद (महमूद गजनवी) जैसे शासकों ने भारतीय सैनिकों को नियुक्त किया और अपने क्षेत्र में मंदिरों को फलने-फूलने दिया. यहां तक कि मोहम्मद गोरी ने भी देवी लक्ष्मी के चित्र वाले सिक्के जारी किए, जिसे आज बॉलीवुड में सबसे बेतुके ढंग से चित्रित किया जाता है.

RELATED POSTS

अहमदाबाद: एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो कर, दो टुकड़ों में टूटा,242 यात्रियों में53 ब्रिटिश,

Waqf पर सुनवाई:केंद्र ने कहा- वक्फ अधिनियम के प्रमुख प्रावधान जारी रहेंगे, सुप्रीम कोर्ट  अब 20 मई को मामले की सुनवाई करेगा

गजा और शान्ति:अमेरिका की दोहरी नीति, दोहरा चरित्र

हालांकि, उस युग के साहित्यिक स्रोतों ने उस अवधि को ‘इस्लामी कट्टरता’ बनाम ‘हिंदू प्रतिरोध’ के रूप में चित्रित करना बहुत आसान बना दिया है. यह अति सरलीकरण है, लेकिन समझने योग्य है. आखिरकार, जितना अधिक सुल्तानों ने खुद को भारत में भारतीय शासकों के रूप में पेश करने की कोशिश की, उन्होंने पश्चिम एशिया में रूढ़िवादी समाज को खुश करने के लिए अपने दरबारियों को ‘काफिरों’ पर विजय और विनाश के अफसाने तैयार करने में लगाया. लेकिन उस समय भारत में क्या हो रहा था?

भारत में शासन करने वाले अभिजात वर्ग ने इन नए प्रतिद्वंद्वियों के उथल-पुथल को कैसे देखा? उन्होंने उनकी लड़ाइयों को कैसे पेश किया, और वे किसे सुनाना चाहते थे? इन सवालों के जवाब हमें एक बार फिर बताते हैं कि इतिहास की असलियत हमारी सोच से कहीं बहुत ज्यादा अनजान है।

बर्बर ‘पराए’?

12वीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में कभी गोर के सुल्तान के मुख्य वजीर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधमंडल चौहान राजा पृथ्वीराज तृतीय (जिन्हें हम पृथ्वीराज चौहान के नाम से बेहतर जानते हैं) के दरबार में पहुंचा. इतिहासकार फिनबार बैरी फ्लड ‘ऑब्जेक्ट्स ऑफ ट्रांसलेशन’ में बताते हैं कि कैसे एक गोर ग्रंथ ताज अल-माथिर में दावा किया गया है कि ‘दूत … ने सुल्तान के संदेश को राजा के सामने बेहद सुसंस्कृत और सुंदर तरीके से बताया. उसने परामर्श और चेतावनी को बारीक मुहावरों को शब्दों की मोतियों में गूंथकर पेश किया.’

हालांकि पृथ्वीराज के दरबार में तैयार एक संस्कृत टेक्स्ट ज्यादा कड़वा है: ‘उसका सिर इतना गंजा और उसका माथा इतना चौड़ा था कि मानो भगवान ने जानबूझकर उसे ऐसा बनाया, ताकि उसके माथे पर (तांबे की प्लेट की तरह) लिखा जा सके कि उसने बड़ी संख्या में गायों का वध किया है. उसकी दाढ़ी, उसकी भौहें, उसकी पलकों का रंग उसकी जन्मभूमि में उगने वाले अंगूरों से ज्यादा पीले थे … उसकी बोली तो भयानक कर्कश थी, जंगली पक्षियों की चिल्ल-पों की तरह … उसके उच्चारण अशुद्ध थे, वैसे ही अशुद्ध जैसा उसका रंग था. मानो उसे चर्म रोग हुआ था, इतना भयानक सफेद था वह.’

पृथ्वीराज-विजय एक महाकाव्य है, जिसका काल 1192 ईसवी है जब गोरियों और चौहानों के बीच लड़ाई चरम पर थी. भारतीय दरबारों में ये महाकाव्य बाकी कुलीन समाज के लोगों को पढ़ने के लिए तैयार कराया गया था. ये अफगान सुल्तानों के तैयार कराए गए विजय आख्यानों जैसे ही थे, जो अपने कुलीन समाज के लिए था. अप्रत्याशित रूप से, ऐसे ग्रंथों में राजा के विरोधियों को कायर, बदसूरत, अनैतिक और अजीबोगरीब के रूप में पेश करने के लिए सीमाएं लांघ दी जाती हैं, ताकि आखिर में राजा की हार को सही ठहराया जा सके और उसके सकारात्मक गुणों को उभारा जा सके.

इस अर्थ में, वे ग्रंथ आधुनिक टॉलीवुड, कॉलीवुड और बॉलीवुड महाकाव्यों से काफी मिलते-जुलते हैं, जो दर्शकों को नायक के प्रति सहानुभूति रखने के लिए उसी तकनीक का प्रयोग करते हैं. ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में, वे महाकाव्य फिल्मों से ज्यादा विश्वसनीय नहीं हैं.

सुल्तानों की विस्तार शक्ति का अधिक गंभीर दृष्टिकोण इटावा किला शिलालेख (दिल्ली सल्तनत के संस्कृत शिलालेख, पृष्ठ 92-93) में मिलता है. शिलालेख के मुताबिक, 1193 शताब्दी में गहदावाला राजा अजय सिंह के एक अज्ञात पुजारी ने देवी दुर्गा के लिए बलि चढ़ाई थी. यह तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराजा चौहान की हार के तुरंत बाद का वाकया है, जब कन्नौज को सुल्तान ने जीत लिया था. पुजारी ने दुर्गा की मूर्ति गाड़ दी थी, जिसे बाद में खुदाई में निकाला गया.

उसने लिखा, ‘मलेच्छों के डर के मारे मेरी तर्क-बुद्धि नष्ट हो गई है. बड़े दुख के साथ, किले की रक्षक, दुख विनाशक दुर्गा को अपने माथे से लगाकर मैं इस गड्ढे में रखता हूं, जब तक कि भगवान स्कंद मलेच्छों की महिमा को धूल में नहीं मिला देते. यवनों पर दुर्भाग्य हावी होगा तो वे फिर प्रकट हो सकती हैं, या हाहाकार के साथ प्रकट हो सकती हैं!’ ऐसे शिलालेख विजय अभियान से फैली हिंसा और नए शासक के आने से अपने सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक संस्थानों के विनाश के बारे में कुलीन वर्ग के एहसास को बताते हैं.

ऐसा लगता है कि जिस तरह सुल्तानों ने अपने रूढ़िवादी समाज के लिए यह दावा किया कि वे हिंदू देवताओं के दुश्मन थे, हिंदू शासक कुलीन वर्ग ने भी उन्हें अपने धर्म के विरोधी के रूप में देखा. या क्या ऐसा ही था?

‘देवी-देवताओं का रक्षक’ सुल्तान

सुल्तानों के आतंक से एक पुजारी के दुर्गा की मूर्ति को गाड़ देने की घटना के लगभग 80 साल बाद, 1276 शताब्दी में दिल्ली के एक अन्य ब्राह्मण योगीश्वर ने एक शिलालेख बनाया, जिसमें लिखा: ‘हरियाणक की भूमि पर पहले तोमरों और फिर चौहानों का राज था. अब शक राजा इसका आनंद उठा रहे हैं … वह, सात-समुद्र से घिरी पृथ्वी की मोतियों की हार में चमकदार रत्न, नायक श्री हम्मीरा (अमीर) गयासदीना (गयास-उद-दीन बलबन) राजा और सम्राट सर्वोच्च हैं … पृथ्वी अब अपने प्रभु शेष (नाग) के सिर पर विराजमान है, वे धरती के वजन को धारण करने के अपने कर्तव्य को छोड़कर विष्णु की सैय्या बन गए हैं; और विष्णु स्वयं रक्षा के लिए लक्ष्मी को अपने सीने पर लेकर, और सभी चिंताओं को त्याग कर, क्षीर सागर में विश्राम कर रहे हैं.’

इस शिलालेख में सुल्तान को एक ऐसे धर्मी और सक्षम शासक के रूप में दर्शाया गया है, जिससे भगवान विष्णु निश्चिंत होकर विश्राम कर सकते हैं, (दिल्ली सल्तनत के संस्कृत शिलालेख, पृष्ठ 12-15). और पृथ्वीराज-विजय के लगभग 100 साल बाद, 1290 ईसवी तक, गोरियों के हार न मानने वाले शत्रु चौहानों ने न केवल शाही पोशक स्वीकार कर लिए, बल्कि उपहार में स्वर्ण प्रतिमाएं भेजी थीं. अपने एक शासक का नाम हम्मीरा (अमीर) भी रखा था, जिसका भाई सुरत्राण (सुल्तान) था. दरअसल, कुछ समय बाद के एक ग्रंथ हम्मीरा-महाकाव्य में अलाउद्दीन खिलजी की ताकत की प्रशंसा की गई है और हम्मीरा के अंतिम रुख का वर्णन एक महिमाशाही, एक मुसलमान के पक्ष में करता है. हम इन विरोधाभासी चित्रणों को कैसे समझ सकते हैं?

ब्रजदुलाल चट्टोपाध्याय अपनी किताब रिप्रेजेंटिंग द अदर?: संस्कृत सोर्सेस एंड द मुस्लिम्स में इसकी एक व्याख्या पेश करते हैं. सीधे शब्दों में कहें, तो जब मुस्लिम राजा तत्कालीन कुलीन सामाजिक व्यवस्था का आदर करते थे – ब्राह्मणों को सम्मान और मंदिरों को दान देते थे, ऊंची जातियों को राजकाज में नियुक्त करते थे- तब संस्कृत ग्रंथों में उनकी उसी तरह प्रशंसा होती थी, जैसे किसी भी मध्ययुगीन भारतीय की. जब उनके साथ सम्मान का व्यवहार किया जाता था और उन्हें धन दिया जाता था, तो भारतीय कुलीन वर्ग को मुसलमानों के साथ काम करने में कोई समस्या नहीं थी; तुर्क, फारसी और अफगानों को एक बड़े सर्वदेशीय शासक वर्ग के रूप में स्वीकार कर लिया गया था और भारतीय कुलीन वर्ग दूसरे राजनीतिक विरोधियों से संसाधन और धन ऐंठने में उनके साथ काम किया करता था.

लेकिन, जब संस्कृत बोलने वाले कुलीनों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था, खासकर राज विस्तार और युद्ध के समय में, तो मुस्लिम राजाओं को मलेच्छ बता दिया जाता था, जिन पर सामाजिक व्यवस्था को नष्ट करने, गोहत्या और ब्राह्मणों को सताने जैसे आरोप मढ़ दिया जाता था. यह किसी भी तरह से राष्ट्रवाद या कट्टरता नहीं है, बस व्यावहारिकता और सुविधा की राजनीति है, जो हमारे आज के समय जैसी ही है.

जब हम अपने आधुनिक पूर्वाग्रहों के साथ मध्ययुगीन स्रोतों को देखते हैं, तो यह सवाल पूछना जरूरी है कि क्या हमें जो इतिहास पढ़ाया गया, वह उन साक्ष्यों से मेल खाता है, जो हमारे सामने हैं? हमें निरंतर धार्मिक शत्रुता, उत्पीड़न और प्रतिरोध का इतिहास पढ़ाया जाता है. लेकिन, सभी साक्ष्य-कला इतिहास से लेकर मुद्राशास्त्र और साहित्य तक-वास्तव में अधिक जटिल मध्ययुगीन संसार की ओर इशारा करते हैं. हमारे आज की तरह ही, वह संसार भी अपने स्वार्थ में डूबे कुलीनों से भरा था, जिन्हें खुद को बेहतर दिखाने के लिए झूठ बोलने में कोई दिक्कत नहीं थी. हमारी तरह ही, यह संभव है कि ‘श्रीमद’ मोहम्मद गोरी से लेकर महाराजा हम्मीरदेव तक कई पहचान के साथ लोग अलग-अलग तबकों के सामने पेश कर रहे थे.

लेखक: अनिरुद्ध कनिसेट्टि

आधार: द प्रिंट

 

ShareTweetSend
RK News

RK News

Related Posts

विचार

अहमदाबाद: एयर इंडिया का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो कर, दो टुकड़ों में टूटा,242 यात्रियों में53 ब्रिटिश,

June 12, 2025
विचार

Waqf पर सुनवाई:केंद्र ने कहा- वक्फ अधिनियम के प्रमुख प्रावधान जारी रहेंगे, सुप्रीम कोर्ट  अब 20 मई को मामले की सुनवाई करेगा

May 15, 2025
विचार

गजा और शान्ति:अमेरिका की दोहरी नीति, दोहरा चरित्र

May 12, 2025
विचार

ईस्ट इंडिया कंपनी भले खत्म हो गई, उसका डर फिर से दिखने लगा!

November 6, 2024
विचार

इस्लामोफोबिया से मुकाबला बहुत पहले शुरू हो जाना था:–राम पुनियानी

September 16, 2024
विचार

क्या के.सी. त्यागी द्वारा इजरायल को हथियारों की आपूर्ति रोकने के आह्वान के कारण उन्हें अपना पद गँवाना पड़ा?

September 5, 2024
Next Post
सत्येंद्र जैन के सामने तिहाड़ के सुपरिंटेंडेंट की हाजिरी: बीजेपी ने वीडियो जारी किया

सत्येंद्र जैन के सामने तिहाड़ के सुपरिंटेंडेंट की हाजिरी: बीजेपी ने वीडियो जारी किया

हेटबस्टर! आफताब पूनावाला- श्रद्धा मर्डर केस का धर्म से कोई लेना-देना नहीं!

हेटबस्टर! आफताब पूनावाला- श्रद्धा मर्डर केस का धर्म से कोई लेना-देना नहीं!

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recommended Stories

जमाअत इस्लामी हिन्द ने विख्यात  अर्थशास्त्री
डॉ निजातुल्लाह सिद्दीकी के निधन पर शोक जताया

November 12, 2022

कमलनाथ की पूरी ज़िंदगी कांग्रेस में गुज़री’ बुढ़ापा BJP में कटेगा?

February 17, 2024

आजादी का अमृत महोत्सव : जामिया में तिरंगा रैली व ध्वज वितरण का आयोजन

August 13, 2022

Popular Stories

  • मेवात के नूह में तनाव, 3 दिन इंटरनेट सेवा बंद, 600 परFIR

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • कौन हैं जामिया मिलिया इस्लामिया के नए चांसलर डॉक्टर सैय्यदना सैफुद्दीन?

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • दिल्ली में 1396 कॉलोनियां हैं अवैध, देखें इनमें आपका इलाका भी तो नहीं शामिल ?

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • NCERT Recruitment 2023 में नौकरी पाने का जबरदस्त मौका, कल से शुरू होगा आवेदन, जानें तमाम डिटेल

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • पकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में महिला यूट्यूबर ज्योति गिरफ्तार, पूछताछ में किए बड़े खुलासे

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • नूपुर को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- बयान के लिए टीवी पर पूरे देश से माफी मांगे

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
Roznama Khabrein

The Roznama Khabrein advocates rule of law, human rights, minority rights, national interests, press freedom, and transparency on which the newspaper and newsportal has never compromised and will never compromise whatever the costs.

More... »

Recent Posts

  • नई दिल्ली:नेवी का क्लर्क विशाल  जासूसी के आरोप में गिरफ्तार, पाक महिला हैंडलर ‘प्रिया शर्मा’ को गोपनीय सैन्य जानकारी दी
  • SCO में चीन-पाक का खेल: पहलगाम की जगह बलूचिस्तान का नाम… भारत का जॉइंट स्टेटमेंट पर साइन से इनकार
  • इजराइल-ईरान और अमेरिका:12 दिन की war में किस को कितना फायदा व नुक्सान:report

Categories

  • Uncategorized
  • अन्य
  • एजुकेशन
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • विचार
  • समाचार
  • हेट क्राइम

Quick Links

  • About Us
  • Support Us
  • Terms & Conditions
  • Privacy Policy
  • Grievance
  • Contact Us

© 2021 Roznama Khabrein Hindi

No Result
View All Result
  • होम
  • समाचार
  • देश-विदेश
  • पड़ताल
  • एजुकेशन
  • विचार
  • हेट क्राइम
  • अन्य
  • रोजनामा खबरें विशेष
  • اردو

© 2021 Roznama Khabrein Hindi