वक्फ संशोधन विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट पर गुरुवार को राज्यसभा में हंगामा हुआ। यह विवाद रिपोर्ट में असहमति वाले नोट के कुछ हिस्सों को हटाने पर था। बाद में केंद्र सरकार ने एक शुद्धिपत्र के जरिए कुछ संपादित हिस्सों को फिर जोड़ दिया।
भाजपा सांसद मेधा विश्राम कुलकर्णी ने रिपोर्ट के परिशिष्ट 5 का शुद्धिपत्र पेश किया जिसमें “संयुक्त समिति के सदस्यों से प्राप्त असहमति के नोट्स/मिनट्स” शामिल थे। इसमें कुछ ऐसे संशोधन शामिल थे जिनके कारण संसद में हंगामा हुआ।
जेपीसी रिपोर्ट और दोपहर में संसद में पेश किए गए शुद्धिपत्र पर नजर डालने से पता चलता है कि असहमति नोटों से हटाए गए अंश या तो जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल के बर्ताव पर सवाल उठा रहे हैं या विधेयक पेश करने के पीछे भाजपा के “राजनीतिक एजेंडे” की आलोचना कर रहे हैं। कुछ संशोधनों को शामिल नहीं किया गया है। जैसे सबसे अधिक संशोधन एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी की आपत्तियों के थे। जिसे उन्होंने सोशल मीडिया पर पहले ही सार्वजनिक कर दिया था।
बाद में शुद्धिपत्र में जिन लाइनों को संपादन करके जोड़ा गया, उनमें है- “इसलिए यह स्पष्ट है कि प्रस्तावित विधेयक औकाफ के लाभ के लिए किया गया काम नहीं है, बल्कि इस देश में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के अधिकारों को व्यवस्थित रूप से कमजोर करने के वर्तमान सरकार के सुसंगत राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक काम है।”
उनके असहमति नोट में वह हिस्सा भी हटा दिया गया जिसमें आरोप लगाया गया था कि जेपीसी “एक राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित अभ्यास है जिसका मकसद परामर्श प्रक्रिया का नाटक करके इस असंवैधानिक विधेयक को वैधता प्रदान करना है।” लेकिन इन लाइनों को बाद में भी नहीं जोड़ा गया।
असहमति नोट में ओवैसी का आरोप था कि “सनातन संस्था और हिंदू जनजागृति समिति जैसे चरमपंथी संगठनों को विधेयक पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए मंच प्रदान करके समिति की कार्यवाही की पवित्रता से समझौता किया जा रहा है”, को भी हटा दिया गया, बाद में उसे नहीं जोड़ा गया।
ओवैसी के इस हिस्से को भी हटाया
ओवैसी ने लिखा था, “उनकी हिंसक और चरमपंथी विचारधाराओं के बारे में आपत्तियां उठाए जाने के बावजूद, जो गैरकानूनी तरीकों से हिंदू राष्ट्र की स्थापना की वकालत करती हैं, और उनके सदस्यों की आतंकवादी गतिविधियों और गोविंद पनसारे, एमएम कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्याओं सहित अन्य जघन्य अपराधों में कथित संलिप्तता के बावजूद, इन राष्ट्र-विरोधी संगठनों को इस प्रतिष्ठित समिति के सामने अपने विचार प्रस्तुत करने का अवसर दिया गया। उनकी भागीदारी ने संसद की गरिमा को धूमिल किया और किए जा रहे काम की गंभीरता को कम किया।” इसे भी बाद में शामिल नहीं किया गया।
इसी तरह डीएमके के ए. राजा और मोहम्मद अब्दुल्ला द्वारा प्रस्तुत संयुक्त असहमति नोटों का भी संपादन किया गया था। ऐसा माना जा रहा है कि जेपीसी रिपोर्ट में जो पंक्तियां हैं कि “यह पूरी तरह से असंवैधानिक है, वास्तविक मुद्दों को संबोधित करने में विफल है, प्रकृति में विभाजनकारी है और हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट कर सकती है” को संपादित किया गया। लेकिन बाद में इसे जोड़ दिया गया। लेकिन इनकी इन लाइनों को नहीं जोड़ा गया- जेपीसी का कामकाज ‘सबसे अलोकतांत्रिक तरीके’ से चल रहा है।‘
इन लाइनों को संपादित किया गया था लेकिन बाद में जोड़ दिया गयाः “हमारे विचार से, इस विधेयक का शीर्षक ‘वक्फ विनाश विधेयक’ होना चाहिए, क्योंकि इसमें समर्पित संपत्तियों की प्रकृति और स्वरूप को बदलने का प्रयास किया गया है, जो हमेशा के लिए सर्वशक्तिमान (ऑलमाइटी- अल्लाह) को सौंपी गई हैं।”
लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने अपने असहमति नोट में कहा था कि “समिति ने अपने कार्य को इस तरह से पूरा किया है जो विवादास्पद और लापरवाही से भरा है” और “बुरी भावना वाले लोगों को, जो स्वयं को वक्फ जैसी संस्थाओं के प्रति शत्रुतापूर्ण बताते हैं, अपनी राय देने के लिए बुलाया गया है।” इसे पहले हटाया गया, बाद में जोड़ दिया गया। लेकिन उनकी इस लाइन को नहीं जोड़ा गया- “समिति इस जनादेश को पूरा करने में विफल रही है, और इसके लिए द्विदलीय परामर्श प्रक्रिया को बनाए रखने की अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में विफल रही है।”
टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी और नदीमुल हक की उन लाइनों को भी हटाया गया जिसमें उन्होंने जेपीसी अध्यक्ष और समिति में भाजपा सदस्यों के आचरण से संबंधित हैं। इस तरह बहुत साफ है कि किसी नियम वगैरह को लेकर बहुत ज्यादा आपत्तियां विपक्ष ने नहीं जताई हैं या जो जताई हैं, उसके हिसाब से वक्फ बिल जो सरकार ने तैयार किया, वो उसी तरह है, जैसा उसने बनाया है। कुल मिलाकर यह साफ नहीं कि वक्फ संशोधन बिल के किस नियम पर विपक्ष को आपत्ति थी और किसी पर नहीं थी।