नई दिल्ली: भारत के कुछ प्रमुख धार्मिक समूह जन्म के समय अपने लिंगानुपात में काफी भिन्न थे, लेकिन आज संकेत हैं कि ये अंतर कम हो रहे हैं, सिख समुदाय में पिछले दशकों में लड़कियों और लड़कों के बीच बहुत बड़ा असंतुलन था, अब धीरे-धीरे प्राकृतिक स्तर की ओर बढ़ रहा है।
लेकिन अभी भी जन्म पर लड़कियों के ‘गायब’ होने या कहें कि कम होने का स्तर हर समुदाय में अलग-अलग है। इसमें भी गौर करने लायक स्थिति हिंदुओं और मुसलमानों में है।
इसको लेकर प्यू रिसर्च सेंटर ने आँकड़ों का विश्लेषण और शोध किया है। प्यू सेंटर वाशिंगटन स्थित एक ग़ैर-लाभकारी संस्था है जो दुनिया भर में इसी तरह के शोध करता है। इस सेंटर द्वारा तैयार की गई एक नई शोध रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि भारत में कन्या भ्रूण हत्या के कारण ‘लापता’ लड़कियों की संख्या सबसे ज़्यादा हिंदुओं में है।
इन लड़कियों को ‘लापता’ कहा जाता है क्योंकि उन्हें पैदा होना चाहिए था और आबादी का हिस्सा बनना चाहिए था – लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि भ्रूणों का गर्भपात हो गया था। केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, अकेले हिंदुओं ने लगभग 78 लाख लड़कियों को ‘खोया’।
प्यू रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफ़एचएस के अंतिम तीन दौरों के डेटा का विश्लेषण किया है।
प्यू रिसर्च के शोध के अनुसार, सिख भारतीय आबादी का 2% से कम हैं, लेकिन 2000 और 2019 के बीच कुल गायब 90 लाख बच्चियों में से अनुमानित 5% सिख ‘लापता’ हो गईं।
रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं में ‘लापता’ लड़कियों का हिस्सा भी उनके संबंधित जनसंख्या हिस्से से ऊपर है। हिंदू भारत की आबादी के 80% हैं, लेकिन अनुमानित 87% लड़कियाँ हैं जो लिंग चयन के आधार पर गर्भपात के कारण ‘गायब’ हैं।
इस दौरान मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच लड़कियों के जन्म पर ‘लापता’ का हिस्सा दूसरे समुदायों से कम है। इसका अर्थ है कि दूसरों की तुलना में लिंग-चयन गर्भपात में उनके शामिल होने की संभावना कम रही।
मुस्लिम भारत की आबादी का लगभग 14% हिस्सा हैं, देश की ‘लापता’ लड़कियों में इस समुदाय का हिस्सा 7% है। ईसाई जनसंख्या का 2.3% हिस्सा हैं, ‘लापता’ लड़कियों का अनुमानित हिस्सा 0.6% है।