भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पेट्रोलियम मंत्रालय ने एक पोस्टर साझा किया। इस पोस्टर में स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की तस्वीर को प्रमुखता से दिखाया गया है। इस तस्वीर में सावरकर और गांधी के अलावा भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर है। सावरकर की तस्वीर सबसे ऊपर दायीं तरफ़ है और फिर महात्मा गांधी की तस्वीर थोड़ी नीचे बायीं तरफ़। इसके बाद भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर है। इस पोस्टर को कांग्रेस पार्टी ने महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे स्वतंत्रता संग्राम के दिग्गजों के अपमान के रूप में देखा है। कांग्रेस नेताओं ने इस कदम को इतिहास के साथ छेड़छाड़ और स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को कमजोर करने का प्रयास करार दिया है।
विनायक दामोदर सावरकर को हिंदुत्व विचारधारा का प्रणेता माना जाता है। वह स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका के लिए एक विवादास्पद व्यक्तित्व रहे हैं। कुछ लोग उन्हें एक प्रखर राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखते हैं जिन्होंने काला पानी की सजा काटी, जबकि अन्य उनकी अंग्रेजों से माफी मांगने और महात्मा गांधी की हत्या के मामले में मुकदमा चलने की वजह से उनकी भूमिका पर सवाल उठाते हैं।
सावरकर पर 1948 में महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने का मुकदमा चला था, हालांकि सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया था। कांग्रेस नेताओं ने इस तथ्य को बार-बार उजागर करते हुए कहा कि सावरकर को गांधी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ तुलना करना न केवल अनुचित है, बल्कि यह उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर साझा किए गए पोस्टर को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं। कई यूजरों ने इसे इतिहास के साथ छेड़छाड़ और महिमामंडन करने का प्रयास बताया। कांग्रेस समर्थकों और अन्य यूजरों ने इस पोस्टर को लेकर सरकार पर निशाना साधा और इसे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की अवमानना बताया।
पेट्रोलियम मंत्रालय या केंद्र सरकार की ओर से इस विवाद पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, इस तरह के कदम पहले भी विवादों का कारण बन चुके हैं, जब सरकार ने सावरकर को स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नायकों में से एक के रूप में पेश करने की कोशिश की थी
कई इतिहासकारों और विश्लेषकों का मानना है कि सावरकर की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना और गांधी, नेहरू, और पटेल जैसे नेताओं को कमतर दिखाना एक विशेष विचारधारा को बढ़ावा देने का प्रयास हो सकता है। इस मुद्दे पर आगे और बहस होने की संभावना है, क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की विरासत को लेकर देश में हमेशा से संवेदनशीलता रही है।
स्वतंत्रता दिवस जैसे पवित्र अवसर पर सावरकर को गांधी से ऊपर दिखाने वाला पोस्टर न केवल कांग्रेस बल्कि कई अन्य लोगों के लिए भी अपमानजनक रहा है। यह घटना न केवल इतिहास की व्याख्या को लेकर मतभेदों को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के प्रति सम्मान और उनकी विरासत को संरक्षित करने की ज़िम्मेदारी कितनी अहम है। इस विवाद ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि इतिहास को कैसे याद किया जाए और किन नायकों को किस तरह से सम्मान दिया जाए












