“सपा नेता आजम खान के गढ़ रामपुर में बूथ-वार मतदान पर नजर डालने से पता चलता है कि हिंदू बाहुल्य और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों के बीच मतदान में व्यापक अंतर है। मुसलमानों की तुलना में हिंदुओं ने बंपर वोटिंग की है जिसके चलते रामपुर विधानसभा में पहली बार कमल खिला है और BJP के आकाश सक्सेना जीते। 5 दिसंबर को रामपुर विधानसभा चुनाव में सिर्फ 33% मतदान हुआ था। तब सपा ने आरोप लगाया था कि मतदाताओं (विशेष रूप से मुस्लिम) को मतदान करने के लिए बाहर नहीं आने दिया गया है। गुरुवार को सपा अपने नेता आजम खान अपराजित गढ़ में चुनाव हार गए।”
सबरंग इंडिया हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार भाजपा उम्मीदवार आकाश सक्सेना को 62 प्रतशित वोट मिले हैं। वहीं सपा प्रत्याशी और आजम के सहयोगी मोहम्मद असीम राजा के 36 प्रतिशत ही वोट मिले हैं। रामपुर में बूथ-वार मतदान पर एक नजर डालने से पता चलता है कि हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों के बीच मतदान में कितना व्यापक अंतर है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, रामपुर विधानसभा क्षेत्र के लगभग 65% मतदाता मुस्लिम हैं। मुस्लिम समुदाय की करीब 80% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है। जबकि हिंदू ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में हैं। 3.8 लाख मतदाताओं में से 2.7 लाख मतदाताओं का निर्वाचन क्षेत्र शहरी है। इस चुनाव में शहरी क्षेत्रों के मुस्लिम बाहुल्य बूथों पर हिंदू बाहुल्य बूथों की तुलना में आधा मतदान हुआ है। रामपुर शहरी में कुल 325 में से 77 मतदान केंद्र हिंदुओं के वर्चस्व वाले थे। उन केंद्रों की मतदाता सूची में 68,000 से अधिक वोटर हैं। वोटिंग वाले दिन उन 77 मतदान केंद्रों पर करीब 46% मतदान हुआ। इसके विपरीत, जिन शेष 248 मुस्लिम बाहुल्य बूथों पर 2 लाख से अधिक मतदाता हैं, वहां केवल 23% मतदान हुआ।
मुस्लिम बाहुल्य मतदान केंद्रों पर वोटिंग प्रतिशत कम
कुछ मुस्लिम इलाकों, जैसे पीला तालाब के सात बूथों पर मतदान सिर्फ 4% हुआ है। कोठीबले रोड और बजरिया हिम्मत खान, यह दोनों मुस्लिम बहुल बूथ हैं, वहां क्रमश: 5% और 7% मतदान हुआ है। रामपुर शहरी के 90 से अधिक मतदान केंद्रों पर 20% से कम मतदान हुआ, वह सभी मुसलमानों के वर्चस्व वाले हैं। यहां तक कि सपा के गढ़, जहां पार्टी का कार्यालय है, वहां के 17 मतदान केंद्रों पर मतदान केवल 24% हुआ है। रामपुर शहरी के केवल एक मुस्लिम बहुल मतदान केंद्र सराय गेट घोसियान पर सबसे अधिक 39% मतदान दर्ज किया गया है।
हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में बंपर मतदान
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रामपुर शहरी में एक हिंदू बहुल बूथ पर सबसे कम मतदान 27% हुआ है। रामपुर शहरी में हिंदू बहुल बूथों पर सबसे अधिक मतदान 74% हुआ है। रामपुर के ग्रामीण इलाकों में, जहां भाजपा को काफी समर्थन प्राप्त है, वहां 80% से अधिक भी मतदान हुआ है। हिंदू बहुल माने जाने वाले 32 ग्राम-स्तरीय बूथों पर मतदान 60% से अधिक रहा है। लेकिन, कई मुस्लिम बहुल गांवों जैसे अजीतपुर, शाजदनगर, फजुल्ला नगर और अली नगर में मतदान 30 से 40 प्रतिशत के बीच रहा है।
यह सब तब हुआ है जब सपा उम्मीदवार असीम राजा के लिए प्रचार करते हुए आज़म खान ने बार-बार मुस्लिम क्षेत्रों में मतदाताओं से बड़ी संख्या में बाहर आने और मतदान करने के लिए कहा था, क्योंकि उन्होंने इन चुनावों को मुस्लिम गौरव और अपनी विरासत की परीक्षा के रूप में पेश किया था। मतदान से पहले ही उन्होंने बार-बार आरोप लगाया कि पुलिस मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर जाने से रोकने के लिए डर का माहौल बना रही है। हालांकि भाजपा और राज्य प्रशासन ने खान के आरोपों का खंडन किया था। कई बार आजम खान ने भावुक तकरीर भी की थी। खास है कि दिग्गज समाजवादी नेता आज़म खान की हेट स्पीच की वजह से सदस्यता रद्द होने के चलते रामपुर में उपचुनाव हुआ था।
दरअसल इस उपचुनाव में समाजवादी पार्टी नेता आजम खान, वोटों के समीकरण को देखते हुए अपने प्रत्याशी की जीत को लेकर मुतमईन थे। वहीं, दूसरी ओर प्रदेश की भाजपा सरकार आजम खान की इस विरासत पर किसी भी सूरत में कब्जाना चाहती थी। इसी के चलते चुनाव के दिन सपा प्रत्याशी व पार्टी कार्यकर्ताओं ने जिला प्रशासन पर धांधली के आरोप लगाए, लेकिन उनके इस आरोप को विपक्षी दल का रिवायती इल्जाम समझते हुए उस वक्त ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई। मतदान खत्म होने के बाद जब यहां मतदान का कुल प्रतिशत एक तिहाई पर अटक गया तो सपा के आरोपों की गंभीरता समझ आने लगी। गिनती के बाद भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना की जीत के बाद यह आरोप और ज्यादा मुखर होकर उभरें।
आजम खान के समर्थकों का आरोप है कि पुलिस ने मतदान केंद्र तो छोड़िए लोगों को घर तक से नहीं निकलने दिया। हर 10 मिनट में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में पुलिस की टुकड़ी डंडे फटकारने आ रही थी। पुलिस का उद्देश्य महिलाओं में आतंक फैलाना था, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुई।
आज़म खान के घर से कुछ दूरी पर मौ कमर का घर है। घर में उनका बेटा उमर एक्सीडेंट में पैर की चोट की वजह से एक साल से बिस्तर पर होने के कारण चुनाव में हिस्सा लेने पोलिंग बूथ तो नहीं जा सका, लेकिन मतदान के अधिकार का प्रयोग करने पर पुलिस जो सबक यहां के लोगों की सीखा रही, उससे वह घर में रहकर भी वाकिफ है।
उमर के अनुसार “अब्बा घर के दरवाजे पर खड़े थे। अचानक पुलिस आई तो लोगों में भगदड़ मच गई। लोग भागने लगे, लेकिन अब्बा तो अपने घर के दरवाजे पर खड़े थे। वह भागकर क्यों और कहां जाते? लेकिन पुलिस ने इसके बाद भी उन्हें धक्का देकर गिराते हुए पीटना शुरू कर दिया, जिससे उनका हाथ टूट गया है। वह अभी अस्पताल में ही अपना इलाज करा रहे हैं।”
एक और युवक जो मतदान केंद्र पर वोट डालने गया, के अनुसार, पुलिस ने उस दिन पूरा तांडव मचा रखा था। मुस्लिम इलाके के मतदाताओं को पहले तो बूथ पर नहीं आने दिया। पुलिस ने गली-मोहल्लों में बैरिकेडिंग कर दी थी, जहां से मतदाताओं को निकलने नहीं दिया गया। जो मतदाता किसी तरह बूथ तक पहुंचे भी तो उन्हें बहुतों को यह कहकर लौटा दिया कि उनके पास उनकी पहचान सिद्ध करने का सही दस्तावेज नहीं है। मतदान पर्ची, वोटर आईडी या फिर आधार कार्ड तक से भी पुलिस मुसलमानों को वोट नहीं डालने दे रही थी। कुछ लोग कथित तौर पर अपने पासपोर्ट लेकर भी मतदान केंद्रों तक पहुंचे, लेकिन आरोप है कि उन्हें भी वोट नहीं डालने दिया जा रहा था।
सवाल है कि क्या एक विधायक के लिए ये सब हुआ? रामपुर विधानसभा के उपचुनाव में यदि सत्ताधारी भाजपा का प्रत्याशी हार भी जाता तो बहुमत की सरकार को तब भी कोई खतरा नहीं था। जनज्वार के इस लाख टके के सवाल का जवाब आज़म खान की आज तक की राजनीति में छिपा है। रामपुर रियासत के खिलाफ राजनीति के रंगमंच पर नमूदार हुए आज़म इस शहर से 10 बार विधायक रह चुके हैं। रामपुर के आवाम में नवाब परिवार का भरपूर सम्मान होने के बाद भी आज़म लोगों के बीच लोकप्रिय रहे हैं। हालांकि नवाब परिवार से भी जनप्रतिनिधि बनते रहे हैं। राजपरिवार के साथ राजनीतिक जंग के दौरान आज़म खान कई बार विवादास्पद बयानबाजी भी करते आए हैं, लेकिन पिछली सपा सरकार के दौरान रामपुर के लिए जौहर यूनिवर्सिटी की स्थापना करना शायद आज़म के लिए एक मुश्किल फैसला साबित हुआ।
इसी से सवाल ‘क्या एक विधायक के लिए ये सब हुआ?, जवाब नहीं में है। यह केवल एक विधानसभा सीट की बात नहीं थी, शायद आज़म के साम्राज्य को समाप्त करने का मिशन था। जिस तरह बीते दिनों आज़म, बकरी चोर, किताब चोर जैसे तमाम हास्यपद मुकदमों की जद में आते चले गए। इसके पीछे कुछ गुनाह उनकी खुद की बदजुबानी के चलते तो थे ही, शायद बेशुमार मुकदमे थोपकर उन्हें जेल में रखने के पीछे उनके कद को खत्म करना भी था। ऐसे में कुछ दिन पहले ही जेल से बाहर आए आज़म अगर सपा प्रत्याशी को ये चुनाव जीतवाने में सफल हो जाते तो रामपुर की राजनीति में फिर से अपनी प्रासंगिकता साबित करते हुए, अपने विरोधियों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर देते। लेकिन अभी जब आज़म के पुत्र अब्दुल्लाह आज़म भी रामपुर की राजनीति में अपना दखल बनाए हुए हैं तो क्या आज़म का साम्राज्य इतनी आसानी से खत्म हो सकेगा, जवाब भविष्य के गर्भ में है?