करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में स्कूलों का इस्तेमाल धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए नहीं होने देने की वकालत की है. हाल में दो स्कूली घटनाओं का जिक्र करते हुए लेखक ने शिक्षकों को सबक सिखाने की आवश्यकता बतायी है और लिखा है कि सरकार से यह न्यूनतम अपेक्षा है.
लेखक ने अपने अनुभव से बताया है कि गलत करने पर मम्मी के थप्पड़ भी उन्हें याद है लेकिन तब भी वह उन्हें न्यायसंगत लगा था. लेकिन, बीते दिनों दो अलग-अलग स्कूलों में घटी घटनाओं में अलग-अलग समुदाय के शिक्षकों ने अपने छात्र के साथ जो कुछ किया, वह हैरान करने वाला है. इन घटनाओं में बच्चों को थप्पड़ नहीं पड़े. उन्हें रौंदा गया. यह उन्हें गलती का अहसास कराने और सही करने के लिए नहीं किया गया. यह उन्हें अपमानित करने के लिए था. इसके अलावा ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनकी आस्था अलग थी. सांप्रदायिक नफ़रत खुलकर दिखी.
करन थापर लिखते हैं कि उत्तर प्रदेश के खुब्बारपुर में शिक्षक और प्रिंसिपल तृप्ति त्यागी ने होमवर्क नहीं करने पर सात साल के मुस्लिम बच्चे को ऐसी सजा दी जिसमें उसके सहपाठी ने बारी-बारी से बच्चे की पिटाई की.
‘मोहम्मडन बच्चे’ कहकर बच्चे को धिक्कारा गया. दूसरा उदाहरण जम्मू-कश्मीर के बानी का है जहां 10वीं के एक छात्र ने ब्लैकबोर्ड पर ‘जय श्री राम’ लिख दिया था. शिक्षक फारूक अहमद ने जब इसे देखा तो छात्रों के सामने ही उसने जमीन पर पटकर बुरी तरह पीटा. फिर प्रिंसिपल के कमरे में ले गये. दोनों ने मिलकर छात्र को कमरे में बंद कर पीटा. यह चेतावनी दी कि दोबारा ऐसा हुआ तो जान से मार डालेंगे. लेखक ने इन उदाहरणों के माध्यम से बताया है कि ये अच्छे दिन नहीं हैं और न ही अमृतकाल इसमें नजर आता