बिहार में सरकार भगवान भरोसे चल रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए विपक्षी नेता लगातार कह रहे हैं कि वे अचेतावस्था में हैं और उनको अब अपनी सरकार के मंत्रियों के नाम भी याद नहीं हैं। तभी राज्य में सभी मंत्री और अधिकारी मनमानी कर रहे हैं। किसी पर किसी का जोर नहीं है। इसकी एक मिसाल पटना यूनिवर्सिटी के कॉलेजों में प्रिंसिपलों की नियुक्ति में दिखाई देती है। सोचें, पटना यूनिवर्सिटी एक सौ साल पुराना विश्वविद्यालय है और अध्यापन का उसका गौरवशाली इतिहास रहा है। वहां नामांकन होना प्रतिष्ठा की बात मानी जाती थी। आज स्थिति यह है कि वहां प्रिंसिपल लॉटरी के जरिए नियुक्त हो रहे हैं। वह भी एक कॉलेज में नहीं, बल्कि पांच कॉलेजों में।
एक रिपोर्ट के मुताबिक छपरा के जयप्रकाश यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर नागेंद्र प्रसाद वर्मा को मगध महिला कॉलेज पटना का प्रिंसिंपल नियुक्त किया गया है। उनका नाम लॉटरी में निकला था। पटना यूनिवर्सिटी के दो सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों पटना कॉलेज और पटना साइंस कॉलेज में भी लॉटरी से प्रिंसिपल नियुक्त हुए हैं। पटना कॉलेज के लिए उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज में केमिस्ट्री पढ़ाने वाले अनिल कुमार का नाम लॉटरी से निकला तो पटना साइंस कॉलेज के लिए हाजीपुर महिला कॉलेज की प्रोफेसर अलका यादव का नाम निकला। मगध महिला कॉलेज में होम साइंस की प्रोफेसर सुहेली मेहता का नाम वाणिज्य महाविद्यालय के लिए लॉटरी से निकला। पटना लॉ कॉलेज के प्रोफेसर योगेंद्र कुमार वर्मा की लॉटरी निकली तो उसी संस्थान का प्रिंसिपल बन गए। हो सकता है कि ये प्रिंसिपल योग्य हों और प्रिंसिपल होने की योग्यता रखते हों लेकिन लॉटरी से नाम तय होना इस बात का संकेत है कि प्रशासन कोई काम नहीं कर रहा है। क्या इसी तरह प्रशासनिक अधिकारियों का चयन लॉटरी से किया जा सकता है? क्या पटना का कलेक्टर चुनने के लिए 10 आईएएस अधिकारियों में से किसी का नाम लॉटरी से निकाला जा सकता है? फिर शिक्षा के साथ इस तरह का मजाक क्यों हो रहा है?