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मुस्लिम बहुल लोक सभा क्षेत्र और मुसलमानों की इमामुदीन

RK News by RK News
March 20, 2024
Reading Time: 1 min read
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देश में कुल 543 लोकसभा सीटों में से 74 से ज़्यादा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। 57 से अधिक लोकसभा क्षेत्र तो ऐसे हैं जहाँ मुसलमानों की आबादी 30 फीसद से भी ज़्यादा है… जबकि 74 से अधिक सीटें ऐसी हैं जहाँ मुस्लिम मतदाता 20 से 97 फीसद के बीच में हैं… कुल मिला कर तक़रीबन 220 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ मुसलमानों का वोट शेयर 10 फीसद से ज़्यादा है। ऐसा समीकरण अगर देश की किसी अन्य कम्युनिटी के पक्ष में होता तो वो सत्ता से उतरने का नाम नहीं लेती… यहाँ तो 7-8 फीसद आबादी वाले भी सत्ता भोग रहे हैं जबकि 14-15 फीसद मुसलमान ग़ैरों के दर पर हाथ फैलाए बे-यारो मददगार खड़े हैं… क़ौम की इस हालत पर बहुत दुख होता है ।
*देश की सर्वोच्च मुस्लिम आबादी (40 से 97 फीसद) वाली 28 सीटें:*
बारामूला-जम्मू-कश्मीर (97% मुस्लिम आबादी), अनंतनाग- जम्मू-कश्मीर ( 95.5%), लक्षद्वीप (95.47%), श्रीनगर- जम्मू-कश्मीर (90%), किशनगंज- बिहार (67%), बेरहमपुर – प. बंगाल (64%), पोन्नानी-केरल(64%), जंगीपुर- प. बंगाल (60%), मुर्शिदाबाद- प. बंगाल (59%), वायनाड-केरल (57%) रायगंज- प. बंगाल (56%), धुबरी – असम ( 56%), मलप्पुरम – केरल (69%), रामपुर – उत्तर प्रदेश (50%), संभाल-यूपी (47%)  लद्दाख – जम्मू-कश्मीर (46%), मुरादाबाद- उत्तर प्रदेश (46%), करीमगंज- असम (45%), बशीरहट- प. बंगाल (44%), कटिहार-बिहार (42.53%), भोपाल (नार्थ)- मध्य प्रदेश (42%)’ नगीना-यूपी (42%), हैदराबाद- तिलंगना (41.1 7%), सिकन्द्राबाद-तिलंगना (41.17%) अररिया-बिहार (41.14%), मालदा उत्तर- प. बंगाल (50%), मालदा दक्षिण- प. बंगाल (53.46%), तथा भिवंडी -महाराष्ट्र (40%)…
*29 सीटें जहां मुस्लिम आबादी 30 फीसद से ऊपर और 40 फीसद से कम है:*
सहारनपुर- उत्तर प्रदेश (39.11%), बिजनौर- उत्तर प्रदेश (39%) तथा बरपेटा- असम (39%), अमरोहा- उप्र (38%), गुड़गांव- हरियाणा (38%) कटिहार- बिहार (38%), पूर्णिया – बिहार (37.65%), मुजफ्फरनगर- उप्र (37%), , कोजीकोड-केरल (37%), बीरभूम- प. बंगाल (36%), वाटकरा-केरल (35%) बहराइच- उप्र (35%), बरेली- उप्र (34%),  जादवपुर-प.बंगाल (33.24%), मथुरापुर-प.बंगाल (33.24%), कृष्णा नगर- प. बंगाल (33%), नवगांव- असम (33%), डायमंड हार्बर – प. बंगाल (33%), कासरगोड-केरल (33%), श्रावस्ती-यूपी (31.34%), ऊधमपुर- जम्मू कश्मीर (31%), मेरठ- उप्र (31%), जयनगर- प. बंगाल (30%), कैराना- उप्र (30%), सिलचर- असम (30%), कालियाबोर-असम (30%), बैतुल -मप्र (30%), मंदसौर- मप्र (30%) तथा फरीदाबाद- हरियाणा (30%)…
*28 सीटें जहां मुस्लिम आबादी 20 फीसद से अधिक और 30 फीसद से कम है:*
अररिया- बिहार (29), जम्मू (28), डुमरियागंज- उप्र (27),  गोड्डा- झारखंड (25), राजमहल- झारखंड (25), बोलपुर- प. बंगाल (25) तथा गुवाहाटी -असम (25), मधुबनी- बिहार (24), मंगलदोई- असम (24), , कैसरगंज- उप्र (23), लखनऊ- उप्र (23), कूच बिहार- प. बंगाल (23), दरभंगा- बिहार (22), शाहजहांपुर- उप्र (21), बाराबंकी- उप्र (21), सीतामढ़ी- बिहार (21), प. चंपारण – बिहार (21), उलूबेरिया- प. बंगाल (22), मथुरापुर- प. बंगाल (21), नार्थ ईस्ट दिल्ली (21.6 फीसद), पूर्वी चंपारण -बिहार (20), जमशेदपुर- झारखंड (20),  जादवपुर- प. बंगाल (20), बर्धवान- प. बंगाल (20), , मुम्बई नार्थ वेस्ट (20), मुंबई साउथ (20), औरंगाबाद -महाराष्ट्र (20) तथा गुलबर्गा – कर्नाटक (20).
2011 की जनगणना के अनुसार देश में मुसलमानों की आबादी तक़रीबन 14 फीसद है। इस आबादी के अनुपात (तनासुब) में लोकसभा में कम से कम 77 मुस्लिम एमपी होने चाहिए… लेकिन 16वीं लोकसभा में केवल 23 मुस्लिम एमपी रहे जोकि 14 फीसद आबादी का 4.2 फीसद ही बनता है… अब सवाल यह उठता है कि आखिर वो क्या तरीक़ा हो सकता है जिससे मुसलमान सत्ता में अपनी भागीदारी को यकीनी बना सकते हैं… इसका एकमात्र हल ये है कि मुसलमान दलितों की तरह अपनी सियासी क़यादत खड़ी करें और अपनी पार्टी के बैनर-तले जम जाएं, तभी जा कर अपनी हक़ीक़ी नुमाइन्दगी हासिल कर सकते हैं। यहाँ हक़ीक़ी नुमाइन्दगी (एक्चुअल रिपर्ज़ेंटेशन) का शब्द इस्तेमाल करने की वजह यह है कि हिंदुस्तान के लोकतान्त्रिक सिस्टम में असल नुमाइन्दगी पार्टियां करती हैं, एमपी और एमएलए नहीं। एमपी और एमएलए तो अपनी पार्टी लाइन से हट कर एक लाइन भी नहीं बोल सकते…

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