भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राज्यसभा सांसद और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री भीम सिंह ने संसद में अल्पसंख्यकों की परिभाषा फिर से तय करने की मांग की है। सोमवार को सदन में एक स्पेशल मेंशन के जरिए देश में “माइनॉरिटी” की मौजूदा परिभाषा पर चिंता जताते हुए उन्होंने सवाल उठाया कि जब देश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 14.2 फीसदी है तो वह अल्पसंख्यक कैसे हुए? उन्होंने अल्पसंख्यक दर्जे के मौजूदा स्वरूप और उससे पैदा होने वाली असमानताओं के बारे में भी बात की।
द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में सिंह ने सरकार को राज्य-वार या जिले-वार आबादी के अनुपात के आधार पर अल्पसंख्यकों की पहचान तय करने की मांग की। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में कहा कि हमारे संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल तो हुआ है, लेकिन उसे परिभाषित नहीं किया गया है। 1992 के नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटीज़ एक्ट के अनुसार, जिसके तहत केंद्र तय करता है कि अल्पसंख्यक कौन है, देश में कुल छह ऐसे समुदाय हैं, जिन्हें यह दर्जा दिया गया है। इनमें मुस्लिम, सिख, पारसी, जैन, ईसाई और बौद्ध हैं।
कई राज्यों में अल्पसंख्यक बहुसंख्यक हैं
सिंह ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसे उदाहरण भी हैं जहां राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक माने जाने वाले समुदाय कुछ राज्यों में बहुसंख्यक हैं। उन्होंने 2011 की जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर बताया कि देश में 14.2% मुस्लिम आबादी है और यह एक बड़ी संख्या है, फिर भी उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है, जबकि वे बहुसंख्यक समुदाय के बाद दूसरे नंबर पर आते हैं। सिंह ने कहा कि भारत में कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मुस्लिम-बहुसंख्यक हैं, जहां उनकी आबादी 50% से ज़्यादा है। उन्होंने बताया कि लक्षद्वीप में मुसलमानों की आबादी 96% तो जम्मू-कश्मीर में 69% है। इसी तरह असम में यह 34%, पश्चिम बंगाल में 27% और केरल में 26% है। यह राष्ट्रीय आंकड़े 14.2% से बहुत ज़्यादा है।
सिर्फ 2% आबादी वाले ही अल्पसंख्यक हों
भाजपा सांसद ने कहा कि वह केंद्र सरकार से गुज़ारिश करते हैं कि इस मामले की समीक्षा करें और ऐसी पॉलिसी लाएं जिसमें सच में पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता दी जाए। उन्होंने कहा कि वह जल्द ही इस बारे में अल्पसंख्यक मंत्रालय को चिट्ठी लिखेंगे और मांग करेंगे कि किसी भी इलाके में, या तो लोकल आबादी की बनावट को ध्यान में रखकर यह तय किया जाए कि कौन अल्पसंख्यक है और कौन नहीं, या फिर, राष्ट्रीय स्तर की परिभाषा में भारत में सिर्फ़ उन्हीं लोगों को अल्पसंख्यक माना जाए जिनकी आबादी 2% से कम है, जैसे सिख, बौद्ध, जैन और पारसी। साभार दैनिक हिन्दुस्तान










