नई दिल्ली: देश में नफरत के माहौल और मुसलमानों को नूह और अन्य स्थानों पर सामूहिक बदले का निशाना बनाए जाने पर जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आरएसएस हिन्दुस्तान में हिंदू और मुसलमानों के बीच शांति, एकता, प्रेम और सदभाव को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता से पीछे हट गया
सोमवार को अपने एक बयान को दौरान मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि देश में आपसी समझबूझ बनाने और भ्रम की स्थिति को समाप्त करने के लिए उनकी आरएसएस चीफ मोहन भागवत से जो बात हुई थी, आरएसएस उस पर अब क़ायम नहीं है। उन्होंने कहा कि आरएसएस के नेताओं के बयानों से स्पष्ट है कि वो सांप्रदायिक सौहार्द नहीं चाहते।उन्होंने हर हिन्दुस्तानी के हिंदू होने के बयान को भी निर्रथक बताया। उन्होंने कहा कि हर हिन्दुस्तानी ‘हिंदू’ नहीं बल्कि ‘हिन्दी’ (भारतीय) है। अध्यक्ष जमीअत उलम-ए-हिंद ने विपक्ष के गठबंधन ‘इंडिया’ का भी पूर्ण समर्थन करते हुए कहा कि देश में नफरत के माहौल की समाप्ति के लिए रानीतिक बदलाव आवशयक है। अगर विपक्षी दल एकजुट नहीं रहे तो स्वयं उनका अस्तित्व भी ख़तरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह कर्नाटक में सांप्रदायिक शक्तियों को हराया गया, उसी तरह यह राष्ट्रीय स्तर पर भी आवशयकता है। उन्होंने हरियाणा के मेवात में रेहड़ी पटरी और ठेला लगाने वाले 200 पीड़ितों के लिए 40 लाख रुपये की सहायता राशि का चैक जारी किया जिससे लाभान्वित होने वाले मुसलमान के साथ-साथ हिन्दू भी है।
मौलाना मदनी ने दंगों के बीच उपद्रवियों द्वारा इबादतगाहों को निशाना बनाने की भी निंदा करते हुए कहा कि किसी भी धर्म की शिक्षा में यह शामिल नहीं। जो लोग धर्म का प्रयोग नफरत और हिंसा फैलाने के लिए करते हैं वो अपने धर्म के सच्चे अनुयायी नहीं हो सकते हैं।
मौलाना ने कहा कि सांप्रदायिक तत्व यह समझते हैं कि दंगों द्वारा मुसलमानों को नुक़सान पहुंचाएंगे लेकिन वह यह नहीं समझते कि इससे देश का नुकसान होता है, अगर प्रशासन और पुलिस ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाए तो कभी दंगा नहीं हो सकता। उन्होंने मांग की कि दंगा रोकने के लिए पुलिस और प्रशासन को उत्तरदायी बनाया जाए।