द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में लिखा है कि पीएम मोदी वैश्विक नेता के तौर पर ख़ुद की साख को चमकाने के लिए इस सम्मेलन के भरोसे थे. ऐसे में जिनपिंग का भारत ना आना पीएम नरेंद्र मोदी की अनदेखी के तौर पर देखा जाएगा.
बीते दिनों भारत और चीन के बीच तनाव देखने को मिला है. ये तनाव चीन के नए नक़्शे को जारी करने के बाद और बढ़ा है.
सिंगापुर की एस राजारत्नम स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ में सीनियर फेलो कॉलिन कोह ने कहा, ”ये नक़्शा असल में राजनीतिक बयान है. चीनी मीडिया का एक तबका इसे और बढ़ा रहा है, ये आधिकारिक मंज़ूरी के बिना नहीं हो रहा है.”
हालांकि शी जिनपिंग का नहीं आना हर तरह से पीएम मोदी के लिए झटका ही नहीं है. कई मायनों में उनके हक़ में भी है.
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के प्रोफ़ेसर ब्रह्मा चेलानी ने कहा, ”जिनपिंग अगर भारत आते तो ये माना जाता कि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बिना किसी गंभीर प्रयास के रिश्तों को सामान्य किया गया.” भारत का विपक्ष कहता कि सीमा पर तनाव है पीएम मोदी शी जिनपिंग की अगवानी में लगे हैं.
रिपोर्ट में लिखा है कि चीन ने जब नया नक़्शा जारी किया तो ये सवाल उठा कि ब्रिक्स में जब मोदी और जिनपिंग मिले थे तो सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में क्या बात बढ़ी?
ब्रिक्स सम्मेलन को जिनपिंग की जीत के तौर पर देखा गया था. इसी सम्मेलन में जिनपिंग ने ब्रिक्स में छह नए देशों को शामिल करने की वकालत की थी और इस सम्मेलन में इन नए देशों को ब्रिक्स में शामिल करने का न्योता भी दिया गया था.
ये देश एक जनवरी 2024 से ब्रिक्स में शामिल होंगे.
बीते कुछ महीनों में जिनपिंग ने सिर्फ़ उन देशों का दौरा किया है, जिनके साथ चीन के दोस्ताना संबंध हैं. जैसे- सउदी अरब, रूस और दक्षिण अफ्रीका.