मणिपुर में जातीय संघर्ष में कई लोगों के मारे जाने के बाद लगे कर्फ्यू में रविवार को थोड़े समय के लिए ढील दी गई. पहली बार कर्फ्यू में दी गई इस ढील के दौरान लोगों को सुरक्षित स्थानों की ओर जाते देखा गयासुद्दीन. सेना के जवानों की सुरक्षा में लोगों को सुरक्षित जगहों पर भी पहुंचाते देखा गया.
‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में हिंसा से प्रभावित लोगों के हालात के बारे में विस्तृत रिपोर्ट छापी है. एक रिपोर्ट में 60 साल के मांगबोई हॉजेल अपना दर्द सुनाते हुए कहते हैं,” मैं अपने ही देश में शरणार्थी बन गया हूं.”
अख़बार लिखता है कि रविवार को इम्फाल एयरपोर्ट युद्ध क्षेत्र किसी शरणार्थी कैंप जैसा लग रहा था. वहां राज्य से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे लोगों की भीड़ थी. कुकी आदिवासी समुदाय के हजारों लोग प्लेन से पड़ोस के किसी राज्य में सुरक्षित पहुंचाए जाने का इंतजार कर रहे थे.हॉजेल के पड़ोसी ने अख़बार से कहा,”हममें से ज्यादातर लोगों के पास पैसा नहीं है. हम इंतजार कर रहे हैं कि दूसरे राज्यों में रहने वाले हमारे रिश्तेदार और परिवार के लोग टिकट खरीद कर हमें भेजें और हम यहां से निकलें. मणिपुर में सुरक्षित जगहों की ओर निकले लोगों की भारी भीड़ के बीच इंटरनेट सर्विस बंद कर दिए जाने से लोगों को संवाद करने में काफी दिक्कत आ रही है.
अख़बार लिखता है कि मणिपुर यूनिवर्सिटी के कुछ कुकी छात्रों ने बताया कि यह एक तरह का जातीय सफाया है. उन्होंने कहा कि हमारे चर्च जलाए जा रहे हैं. घर तोड़े जा रहे हैं. मैती नेता हॉस्टल में घुस कर कुकी छात्रों को चुन-चुन कर भगा रहे हैं. कल तक जो दोस्त थे आज दुश्मन बन गए हैं.