**नफरत भड़काने वालों के लिए इस देश में कोई जगह नहीं- मौलाना महमूद मदनी*
**गुवाहाटी में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष की संवाददाताओं से प्रेस वार्ता*
*असम सरकार को एक समुदाय विशेष के विरुद्ध अवैध कार्रवाई और अपमानजनक रवैया छोड़ने की नसीहत
*नई दिल्ली, 2 सितंबर* जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने आज असम की राजधानी गुवाहाटी के होटल आरकेडी में एक खचाखच भरी प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए राज्य में हुई हालिया कार्रवाइयों पर गहरी चिंता और खेद व्यक्त किया। इसके साथ ही कहा कि यह कार्रवाइयां न केवल मानवीय सिद्धांतों के विरुद्ध हैं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी उल्लंघन हैं।
उन्होंने बताया कि कल हमने असम के कई स्थानों का दौरा किया, जहा अपनी आंखों से दुखद दृश्य देखे, लोगों के चेहरों पर बेबसी और निराशा झलक रही थी। मौलाना मदनी ने कहा कि ज़्यादा चिंताजनक बात यह है कि लोगों को धर्म के आधार पर विभाजित जा रहा है और एक विशिष्ट पहचान रखने वाले समुदाय के विरुद्ध ‘मियां’ और ‘डाउटफुल’ जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है, जो तोड़फोड़ की कार्रवाइयों से भी अधिक कष्टदायक और अपमानजनक हैं।
मौलाना मदनी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर कोई विदेशी यहां पाया जाए, तो उन्हें बाहर किया जाए, हमारी संवेदना उनके साथ नहीं है, लेकिन जो भारत के नागरिक बेदखल किए गए हैं, उन्हें फिर से बसाया जाए। जहां पर बेदखली अपरिहार्य हो, वहां सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार कार्रवाई की जाए और मानवीय संवेदना को प्राथमिकता दी जाए। विदेशियों के विरुद्द भी विधि संगत कार्रवाई होनी चाहिए। मौलाना मदनी ने उदाहरण देते हुए बताया कि व्यवस्था से बाहर किया गया अच्छा काम भी जवाबदेही योग्य और अपराध बन जाता है।
उन्होंने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति ने असम में जारी उत्पीड़न और दमन को लेकर मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी और यह मांग एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा संवैधानिक अधिकार है। हमने इस अधिकार का प्रयोग किया है और आगे भी करते रहेंगे। हमें किसी भी धमकी की परवाह नहीं है, हालांकि दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मुख्यमंत्री जैसे उच्च पद पर आसीन व्यक्ति कहता है कि वह ‘मुझे बांग्लादेश भेज देंगे’। मैं कल से असम में हूं, अगर वह चाहें तो मुझे बांग्लादेश भेज दें। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब मेरे जैसा व्यक्ति, जिसके पूर्वजों ने स्वतंत्रता संग्राम में छह अलग-अलग जेलों की यातनाएं सहन कीं और दशकों तक कुर्बानियां दीं, उसके बारे में यह कहा जा सकता है, तो आम मुसलमानों के प्रति उनका रवैया कैसा होगा?
मुख्यमंत्री के इस बयान पर कि वह डरते नहीं हैं, मौलाना मदनी ने कहा कि वह एक राज्य के मुखिया हैं, बड़े पद पर आसीन हैं, उन्हें डरने की आखिर क्या आवश्यकता है? मैं कोई बड़ा नेता नहीं हूं, बस एक आम नागरिक हूं। उनके अनुसार मैं ‘ज़ीरो’ हूं, लेकिन मुझे भी डरने की जरूरत नहीं है। मूल प्रश्न यह है कि देश में घृणा फैलाने वालों को कभी सहन नहीं किया जाएगा। जो लोग नफ़रत और दुश्मनी की आग भड़काते हैं, उनके लिए इस देश में कोई स्थान नहीं है। भारत का हजारों वर्ष पुराना इतिहास है, इसकी गौरव और गरिमा है। जो लोग इसे खराब करना चाहते हैं और इस धरती पर कालिख मलने का काम कर रहे हैं, उन्हें इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे नफरती लोगों के लिए बेहतर होगा कि वह पाकिस्तान चले जाएं।
मौलाना मदनी ने एक सवाल के जवाब में यह भी कहा कि स्थानीय लोगों की यह शिकायत भी महत्वपूर्ण है कि अतिक्रमण करने वालों की वजह से ‘नाम घर’ की जमीनें प्रभावित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि नामघर और मस्जिद, दोनों ही असम की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। असम अत्यंत हरा-भरा, शांत और समृद्ध राज्य है, यह विभिन्न सभ्यताओं का संगम है। इसके निर्माण में शंकर देव और अज़ान फकीर दोनों महान विभूतियों की संयुक्त भूमिका है। इसलिए, अगर नाम घर को नुकसान पहुंचेगा, तो मस्जिद भी सुरक्षित नहीं रह सकती। इसलिए, इनकी सुरक्षा का दायित्व हम सभी पर समान रूप से लागू होता है।
मौलाना मदनी ने प्रेस वार्ता के आरंभ में जमीअत उलमा-ए-हिंद के सौ वर्षों के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला संगठन है। जब टू-नेशन थ्योरी (दो-राष्ट्र का सिद्धांत) प्रस्तुत किया गया, तब देश का एकमात्र मुस्लिम संगठन जिसने धर्म के आधार पर भारत के विभाजन का विरोध किया, वह जमीअत उलमा-ए-हिंद ही था। यही संगठन आज भी राष्ट्र निर्माण के मुद्दों को मूल सिद्धांतों के आधार पर उठाता है। इसका दृष्टिकोण हमेशा स्पष्ट रहा है कि देश की सेवा धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि व्यापक राष्ट्रीय और मानवीय भावना से होनी चाहिए। यही कारण है कि हमारे विरोधी भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि जब जमीअत उलमा-ए-हिंद बात करती है, तो सिद्धांतों के आधार पर करती है और जब काम करती है, तो इतिहास के संदर्भ में और सिस्टम के दायरे में रह कर करती है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद के अलावा मौलाना मोहम्मद हकीमुद्दीन क़ासमी (नाज़िमे उमूमी, जमीअत उलमा-ए-हिंद), मौलाना महबूब हसन (सचिव, जमीअत उलमा असम), मौलाना अब्दुल क़ादिर (सचिव, जमीअत उलमा असम), मौलाना फ़ज़लुल करीम (सचिव, जमीअत उलमा असम), मुफ़्ती सअदुद्दीन (ग्वालपाड़ा), मौलाना अबुल हाशिम (कोकराझार) आदि भी मौजूद थे। इस अवसर पर मौलाना अब्दुल क़ादिर ने बताया कि जमीअत उलमा की ओर से कल लखीगंज, धुबरी (असम) में तीन सौ प्रभावित परिवारों को ज़रूरत की वस्तुएँ वितरित की गईं।












