नई दिल्ली: जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने कहा कि मनुस्मृति सभी महिलाओं को ‘शूद्र’ का दर्जा देती है।
‘डॉ. बी आर आंबेडकर्स थॉट्स ऑन जेंडर जस्टिस: डिकोडिंग द यूनिफॉर्म सिविल कोड’ शीर्षक वाले डॉ. बी आर आंबेडकर व्याख्यान श्रृंखला में शांतिश्री ने कहा कि महिलाओं की कोई जाति नहीं होती है, उन्होने आगे कहा कि कोई महिला यह दावा नहीं कर सकती है कि वो ब्राह्मण है या कुछ और है।
शांतिश्री ने कहा कि मेरा मानना है कि शादी से ही आपको पति या पिता की जाति मिलती है, मुझे लगता है कि यह कुछ असाधारण तौर पर पिछड़ी है,
उन्होंने कहा कि पुरुषों ने सभी धर्मों को हाईजैक कर लिया है, जब महिलाएं अपने अधिकार मांगती हैं, तो सभी धर्म कमजोर हो जाते हैं, सभी देवता और भी नाजुक हो जाते हैं।
आपको लगता है कि अगर कोई महिला 60 रुपए से 125 रुपए तक भरण-पोषण चाहती है, तो धर्म खतरे में पड़ जाता है, ऐसा कैसे हो सकता है कि जब कोई महिला अपना हक मांगती है तो सभी एकजुट हो जाते हैं?
शांतिश्री ने कहा कि आंबेडकर एक प्रख्यात, विचारक और महिला अधिकारों के पैरोकार थे, जो अपने समय से आगे थे, सिमोन डी बेवॉयर ने कहा था, महिलाएं पैदा नहीं होती हैं, बनाई जाती हैं. आंबेडकर के भी इसी तरह के विचार के थे।
शांतिश्री ने कहा कि मानव-विज्ञान की दृष्टि से’ देवता उच्च जाति से नहीं हैं और यहां तक कि भगवान शिव भी अनुसूचित जाति या जनजाति से हो सकते हैं।
नौ साल के एक दलित लड़के के साथ हाल ही में हुई जातीय हिंसा की घटना का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ‘कोई भी भगवान ऊंची जाति का नहीं है।
उन्होंने कहा कि आप में से अधिकांश को हमारे देवताओं की उत्पत्ति को मानव विज्ञान की दृष्टि से जानना चाहिए, कोई भी देवता ब्राह्मण नहीं है, सबसे ऊंचा क्षत्रिय है।
भगवान शिव अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से होने चाहिए क्योंकि वह एक सांप के साथ एक श्मशान में बैठते हैं और उनके पास पहनने के लिए बहुत कम कपड़े हैं, मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण श्मशान में बैठ सकते हैं।