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ब्रिक्स में इसराइल पर भारत अलग थलग पड़ा!

RK News by RK News
November 22, 2023
Reading Time: 1 min read
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इस साल अगस्त में ब्रिक्स का विस्तार किया गया था. मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अर्जेंटिना को समूह में आमंत्रित किया गया था. ये सभी देश अगले साल जनवरी से ब्रिक्स के पूर्णकालिक सदस्य हो जाएंगे.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सम्मेलन में उद्घाटन भाषण देते हुए तुरंत युद्धविराम का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को तुरंत सभी तरह के हमले रोकने चाहिए और बंधक बनाये गए नागरिकों को रिहा किया जाना चाहिए.
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुए. उनकी जगह विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हिस्सा लिया.
ब्रिक्स नेताओं ने जहां संघर्षविराम की मांग की वहीं भारतीय विदेश मंत्री इस संवेदनशील मुद्दे पर महीन रेखा पर चलते नज़र आए.
एस जयशंकर ने मौजूदा संकट के लिए सात अक्तूबर को इसराइल पर हमास के हमले को ज़िम्मेदार बताया. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि फ़लस्तीनियों की चिंताओं को गंभीरता से सुना जाना चाहिए.
जयशंकर ने इस इसराइल-फ़लस्तीन मुद्दे पर भारत का रुख़ स्पष्ट करते हुए कहा कि द्वि-राष्ट्र समाधान ही इसका हल है और ये शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित होना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत इस दिशा में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का लगातार समर्थन करता रहा है.
जयशंकर ने ग़ज़ा में जारी संघर्ष में हो रही नागरिकों की मौतों की निंदा की. उन्होंने ये भी कहा कि ‘आतंकवाद’ पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता.
ब्रिक्स के सदस्य देश, शुरू से ही इसराइल-फ़लस्तीन टकराव में युद्धविराम की मांग कर रहे हैं. हालांकि युद्धविराम पर भारत संयुक्त राष्ट्र में हुए मतदान से दूर रहा था. बाक़ी सभी ब्रिक्स सदस्य देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया था.
इसराइल-हमास जंग पर ब्रिक्स देशों की आवाज़ पश्चिमी देशों और अमेरिका से अलग है.
ब्रिक्स देशों ने जहाँ तुरंत संघर्षविराम की मांग की है, वहीं अमेरिका की तरफ़ से अभी तक संघर्ष-विराम की आवाज़ नहीं उठी है.
ब्रिक्स में इस समय कुल 11 सदस्य देश हैं. पिछले महीने जब संयुक्त राष्ट्र में मानवीय संघर्ष-विराम को लेकर प्रस्ताव पर मतदान हुआ था, तब इनमें से सिर्फ़ भारत और इथियोपिया ने ही इसका समर्थन नहीं किया था.
भारत मतदान से अनुपस्थित रहा था क्योंकि भारत का पक्ष था कि प्रस्ताव में ‘हमास के आतंकवादी हमले की निंदा नहीं की गई थी.’
दक्षिण अफ़्रीकी राष्ट्रपति सिरील रामाफोसा ने इस असाधारण ब्रिक्स सम्मेलन की अध्यक्षता की.
उन्होंने इसराइल पर युद्ध अपराधों का आरोप लगाते हुए कहा कि ग़ज़ा में तेल, दवाएं और पानी ना पहुंचने देना जनसंहार के बराबर है.
रामाफोसा ने ये भी कहा कि इसराइल पर हमले और लोगों को बंधक बनाने के लिए हमास को भी ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान भी इस सम्मेलन में शामिल हुए.
उन्होंने 1967 की सीमाओं के आधार पर फ़लस्तीनी राष्ट्र के निर्माण की मांग की. मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि द्वि राष्ट्र समाधान से जुड़े अंतरराष्ट्रीय निर्णयों को लागू किए बिना इसराइल-फ़लस्तीन टकराव का कोई समाधान नहीं निकाला जा सकता है.
क्राउन प्रिंस ने ‘ग़ज़ा पर इसराइली हमले’ तुरंत रोकने और मानवीय मदद पहुँचाने की मांग भी की.

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