रामानुजन बताते हैं कि इस कथा के कई स्वरुप है – जैन और बौद्ध स्वरुप हैं, और महिलाओं का संस्करण भी है, जिसकी लेखिका आंध्रप्रदेश की रंगनायकम्मा है. आदिवासियों की अपनी रामकथा है. अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक “हिन्दू धर्म की पहेलियाँ” में हमारा ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया है कि राम ने शम्बूक की केवल इसलिए हत्या कर दी थी क्योंकि वह शूद्र होते हुए भी तपस्या कर रहा था.
इसी तरह, राम ने छुपकर और पीछे से वार कर बाली को मार दिया था. बाली कुछ पिछड़ी जातियों ही श्रद्धा के पात्र हैं. कहा जाता है “इडा पीडा जावो, बळीचे राज्य येवो” (हमारे दुःख और तकलीफें ख़त्म हों और बाली का राज फिर से कायम हो). अम्बेडकर राम की इसलिए भी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं क्योंकि राम ने मात्र इसलिए सीता को जंगल में छोड़ दिया था क्योंकि उन्हें अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह था. पेरियार भी द्रविड़ों पर आर्य संस्कृति लादने के लिए राम की आलोचना करते हैं. ठीक-ठीक क्या हुआ था यह साफ़ नहीं है मगर यह महाकाव्य हमें उस काल के बारे में कई महत्वपूर्णब बातें बताता है.
उसी तरह महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित विश्व की सबसे लम्बी कविता ‘महाभारत’ भी हमें उस युग में झाँकने का मौका देती हैं. ये दोनों ग्रन्थ ज्ञान के स्त्रोत हैं. मगर उन्हें इतिहास के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल करना एक अलग मसला है, जिसका सम्बन्ध हिन्दू राष्ट्रवाद से ज्यादा और विद्यार्थियों को इतिहास के सच से परिचित करवाना कम है.
यह भी कहा गया है कि पाठ्यपुस्तकों में इंडिया की जगह भारत शब्द का इस्तेमाल किया जाए. ऐसा बताया जा रहा है कि चूँकि हमारे देश को इंडिया नाम अंग्रेजों ने दिया था अतः वह गुलामी का प्रतीक है. इस तथ्य को जानबूझकर छुपाया जा रहा है कि हमारे देश के लिए इंडिया से मिलते-जुलते शब्दों का प्रयोग अंग्रेजों के भारत आने से बहुत पहले से हो रहा है.
ईसा पूर्व 303 में मेगस्थनीज ने इस देश को इंडिका बताया था. सिन्धु नदी के नाम से जुड़े हुए शब्द भी लम्बे समय से इस्तेमाल हो रहे हैं. हमारे संविधान में प्रयुक्त वाक्यांश “भारत देट इज़ इंडिया” का कोई जवाब नहीं है. मगर हिन्दू राष्ट्रवादी एजेंडा के चलते ‘इंडिया’ शब्द उन्हें असहज करता है.
वे भारत के इतिहास को नए सिरे से कालखंडों में विभाजित करना चाहते हैं. इतिहास के सबसे पुराने कालखंड, जिसे अंग्रेज़ हिन्दूकाल कहते हैं, को वे ‘क्लासिक’ (श्रेष्ठ या उत्कृष्ट) काल कहना चाहते हैं. उद्देश्य है इस कालखंड में प्रचलित मूल्यों को हमारे समाज के लिए आदर्श निरुपित करना. ये मूल्य, जो ‘मनुस्मृति’ में वर्णित हैं, वही हैं जिनके विरुद्ध अम्बेडकर ने विद्रोह का झंडा उठाया था और ‘मनुस्मृति’ का दहन किया था.
आज यूजीसी और एनसीईआरटी का मार्गदर्शक केवल और केवल हिन्दू राष्ट्रवादी एजेंडा है. भारतीय संविधान के मूल्यों से उन्हें कोई लेनादेना नहीं है.
(लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं. अमरीश हरदेनिया द्वारा अंग्रेजी से अनुवाद.)