नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में किसी व्यक्ति का नाम शामिल होने से उसे बाहरी घोषित किए जाने से छूट नहीं मिलती है, यदि किसी विशेष विदेशी न्यायाधिकरण ने ऐसे व्यक्ति को विदेशी नागरिक घोषित कर दिया है और उसे निर्वासित किया जा सकता है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘ट्रिब्यूनल द्वारा अपीलकर्ता को विदेशी घोषित किए जाने के परिणामस्वरूप, अपीलकर्ता का नाम एनआरसी के मसौदे में शामिल नहीं किया जा सकता था और दूसरी बात, अगर उसे शामिल भी किया गया है, तो भी वह न्यायाधिकरण द्वारा की गई घोषणा को रद्द नहीं करेगा.’
पीठ ने कहा, ‘यह न्यायाधिकरण द्वारा की गई घोषणा के विरुद्ध है.’
पीठ ने यह फैसला रफीकुल हक द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए पारित किया, जिन्हें असम में विदेशी न्यायाधिकरण ने इस आधार पर निर्वासित करने का निर्देश दिया था कि उन्होंने अवैध रूप से भारत में प्रवेश किया है.
इस मामले में विदेशी न्यायाधिकरण, जोरहाट, असम ने 4 मार्च, 2017 के एक आदेश द्वारा विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत कार्यवाही शुरू की थी और हक को एक विदेशी घोषित किया था, जिन्होंने 25 मार्च, 1971 के बाद अवैध रूप से भारत में प्रवेश किया था.
उन्होंने न्यायाधिकरण के आदेश को गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसने 20 नवंबर, 2017 को उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने वर्तमान अपील दायर की थी.
अपीलकर्ता ने दलील दी कि हाईकोर्ट द्वारा आदेश पारित करने के बाद उन्होंने एक स्थायी खाता संख्या (पैन) प्राप्त किया, जो 26 दिसंबर, 2017 को आयकर विभाग द्वारा जारी किया गया था, और उनका नाम 30 जुलाई, 2018 को सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रकाशित एनआरसी के मसौदे में क्रम संख्या 7 पर शामिल है. उन्होंने कहा कि उन्हें अब विदेशी नहीं माना जा सकता.
26 जुलाई, 2019 को अपीलकर्ता का नाम एनआरसी के मसौदे में आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के अधीन उसे हिरासत केंद्र से रिहा करने का निर्देश दिया था.
हालांकि, सोमवार को पारित अंतिम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधिकरण और हाईकोर्ट ने इस आधार पर उसके दावे को खारिज कर दिया कि वह वैध सबूतों के माध्यम से अपनी नागरिकता के दावे को साबित करने में सक्षम नहीं था.
विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सबूत का बोझ भारतीय होने का दावा करने वाले व्यक्ति पर होता है.
अदालत ने कहा, ‘परिणामस्वरूप, अपीलकर्ता पर यह दायित्व था कि वह ठोस दस्तावेजों या अन्य साक्ष्यों के माध्यम से यह स्थापित करे कि या तो वह 25 मार्च, 1971 से पहले असम के क्षेत्र में प्रवेश कर चुका था, या उसके पूर्वज उक्त तिथि से पहले क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे.’
निर्णय लिखने वाले जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘यदि न्यायाधिकरण और उच्च न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ता यह साबित करने का अपना दायित्व पूरा नहीं कर सका कि वह विदेशी नहीं है, तो उनके द्वारा लिया गया दृष्टिकोण विकृत, या स्पष्ट रूप से गलत, या अनुचित नहीं माना जा सकता, जिससे हस्तक्षेप की आवश्यकता हो.’
पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि इस अपील में कोई दम नहीं है. इसलिए इसे खारिज किया जाता है.’आभार:द वायर