जब आपने एक स्कूल टीचर द्वारा किसी छात्र पर उसी की क्लास के दूसरे छात्रों द्वारा थप्पड़ मारने का वीडियो देखा (या इसके बारे में पढ़ा) तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी? जब आपने ऑडियो सुना और महसूस किया कि वह वास्तव में सांप्रदायिक शब्दावली का उपयोग कर रही थी और वास्तव में, बच्चों से हेट क्राइम करने को कह रही थी, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया थी?
क्या इसने आपको किसी तरह से उस रेलवे पुलिस कॉन्स्टेबल की याद दिलाई, जो ट्रेन में घूमकर मुस्लिम यात्रियों को गोली मार रहा था और उस समुदाय विशेष के प्रति भावावेश से भरी टिप्पणी कर रहा था
और क्या आपने बुधवार के अखबारों में यह खबर देखी कि दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में चार छात्र शिकायत कर रहे हैं कि उनके शिक्षक ने उन पर सांप्रदायिक टिप्पणी की थी. शिकायतों के मुताबिक टीचर ने कहा, ”बंटवारे के दौरान आप पाकिस्तान नहीं गए. आप भारत में रहे. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आपका कोई योगदान नहीं है.” इसी तरह और भी बहुत कुछ था.
मैं अनुमान लगा रहा हूं कि इन सभी घटनाओं पर आपकी पहली प्रतिक्रिया मेरी जैसी ही थी: सदमा, आक्रोश, क्रोध, अविश्वास, दुख और भय कि हम किस तरह का देश बन रहे हैं. और आप भी उतने ही भयभीत थे जितना मैं तब हुआ था जब सोशल मीडिया पर संगठित सेनाओं ने घटनाओं को समझाने के लिए झूठ पोस्ट किया था. जाहिर है, नफरत से भरे शिक्षक ने कोई सांप्रदायिक बात नहीं कही थी. वीडियो को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया. विभिन्न ग्लव-पपेट्स और बॉट्स ने तब उसे शहीद के कहकर सम्मानित किया. इसी तरह, मुस्लिमों की हत्या करने वाला रेलवे पुलिस अधिकारी मुस्लिम विरोधी नहीं था, उसके सोशल मीडिया समर्थकों ने कहा, वह सिर्फ ‘परेशान’ था. कंट्रोल रूम को इस झूठ को खारिज करना पड़ा जब शूटर के अपने वरिष्ठों ने स्वीकार किया कि उसने हेट क्राइम किया है, जिसके लिए उस पर आरोप लगाया गया था.लेकिन एक बार जब मैंने अपने गुस्से और निराशा से परे देखना शुरू किया, तो दो चीजों ने मुझे चिंतित कर दिया.
नफ़रत जिसे रोका नहीं जा सकता
नफरत के बारे में सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी यह है कि आप इसे नियंत्रित कर सकते हैं. राजनेता (सभी दलों और सभी धर्मों के) यह मानने की गलती करते हैं कि नफरत पानी की तरह है. आप इसे जितना चाहें उतना डाल सकते हैं. लेकिन जब आप पहुंच जाएं तो आप नल बंद कर सकते हैं.
दरअसल, नफरत पानी के विपरीत है. यह आग की तरह है.
एक बार जब आप लौ जलाते हैं तो इसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल हो जाता है. आग आपकी जान ले लेती है और इसे रोकना या इसे फैलने से रोकने का मैनेजमेंट करना लगभग असंभव है.
वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था का विरोध करने वाले लोगों के बीच यह व्यवहार करना लोकप्रिय है जैसे कि हम अपने चारों ओर जो नफरत देखते हैं वह ऊपर से आती है और कुछ सावधानीपूर्वक पोलिटिकल कैलकुलेशन का परिणाम है.
मुझे नहीं लगता कि यह सच है. प्रत्येक मुस्लिम-विरोधी संघ समर्थक नहीं है जो नागपुर के आदेश पर कार्य कर रहा है. आग की तरह, नफरत अपनी जान ले लेती है. कोई नहीं बता सकता कि अगली आग कहां लगेगी, आग कहां फैलेगी या लपटें किसे भस्म कर देंगी.
आज के भारत में जिस तरह की नफरत हम देखते हैं वह बेकाबू है. इसके लिए किसी ट्रिगर और किसी चिंगारी की आवश्यकता नहीं है. और नफरत से लड़ना कठिन है क्योंकि एक बार काम हो जाने या अपराध हो जाने के बाद, सोशल मीडिया हिटमैन की आर्मी हत्यारों और दुर्व्यवहार करने वालों की जय-जयकार करने के लिए आ जाती है.
सबसे दुखद बात यह है कि टेलीविजन मीडिया अपने इतिहास में किसी भी समय की तुलना में आज अधिक सांप्रदायिक और नफरत से भरा हुआ है. जहां तक सोशल मीडिया की बात है – जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा नियंत्रित हिस्से भी शामिल हैं – यह हमारे देश में सबसे बड़ा कूड़ेदान है
क्या हम ऐसे छात्रों की एक पीढ़ी तैयार कर रहे हैं जो मानते हैं कि मुसलमान वास्तव में यहां नहीं हैं? कि उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए? कि उनके साथ भेदभाव करना ठीक है? कि, किसी तरह से, वे वास्तव में हिंदुओं जितने भारतीय नहीं हैं?
जिस तरह से एक शिक्षक ने एक स्कूली छात्र पर हमला किया, उससे हमारा हैरान और भयभीत होना सही है. लेकिन उस तरह के व्यवहार के खतरे हमारी तात्कालिक नाराजगी से कहीं अधिक हैं. वे हमारे समाज के हृदय तक फैले हुए हैं और वे भारत के भविष्य को खतरे में डालते हैं. (आभार:दि प्रिंट)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)