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ज़बरदस्ती मज़हब को बदलवाना मुम्किन है ना दबाना

RK News by RK News
July 5, 2021
Reading Time: 1 min read
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ज़बरदस्ती मज़हब को बदलवाना मुम्किन है ना दबाना

डाक्टर मुहम्मद रज़ीउल इस्लाम नदवी

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एक हफ्ते क़बल अचानक शोर उठा कि दो ऐसे आतंकियों को धर दबोचा गया है जो गूँगे बहरे, भोले-भाले, लड़कों और लड़कीयों का मज़हब बदलवाकर उन्हें मुस्लमान बनाया करते थे। उत्तरप्रदेश पुलिस ने डाक्टर उम्र गौतम और मुफ़्ती जहांगीर क़ासिमी को गिरफ़्तार करके उन पर इल्ज़ाम लगाया कि इन्होंने धर्म परिवर्तन का बहुत बड़ा जाल बिछा रखा था, जिसमें बड़ी अय्यारी से मासूमों को फंसाया करते थे। मुख़्तलिफ़ दफ़आत के तहत उनके ख़िलाफ़ एफ़ आई आर दर्ज की गई। चूँ कि रियासत में कुछ अरसा के बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए रियास्ती हुकमरानों को फ़िर्कावाराना मुनाफ़िरत फैलाने का एक अच्छा मौक़ा हाथ आगया। इन्होंने उसे एक बहुत बड़े रैकट की शक्ल दे दी और पुलिस को हुक्म दिया कि वो गैंगस्टर और दूसरी सख़्त दफ़आत लगाकर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करे।

मुल्क के दस्तूर (दफ़ा 25) मैं अक़ीदा और मज़हब की आज़ादी दी गई है और कहा गया है कि कोई भी शहरी अपनी आज़ाद मर्ज़ी से कोई भी मज़हब क़बूल कर सकता है और अपना साबिक़ा मज़हब तबदील कर सकता है। इस बिना पर इस इल्ज़ाम में कुछ दम ना था, इसलिए गिरफ़्तार शुदगान पर दूसरे बहुत से इल्ज़ामात भी आइद कर दिए गए, मसलन ये कि वो लोगों का मज़हब बदलवाने में ज़ोर ज़बरदस्ती से काम लिया करते थे, या उन्हें माली लालच दिया करते थे, या लड़कीयों की शादी करवा दिया करते थे। ये भी कहा गया कि इन्होंने मुख़्तलिफ़ मुल्कों का दौरा करके ‘धर्म परिवर्तन के लिए बहुत फ़ंडज़ जमा किए हैं। दस रोज़ होने को हैं, मुल्ज़िमों को पुलिस कस्टडी में रखकर उन पर क़बूल-ए-जुर्म का दबाओ बनाने के लिए मज़ीद रीमांड हासिल कर लिया गया है, उनके घरों से दस्तावेज़ात बरामद होने की बात कही जा रही है। मुख़्तलिफ़ जगहों पर छापे मारे जा रहे हैं। उन मर्दों और औरतों से पूछगिछ की जा रही है जिन्होंने गुज़श्ता कुछ अर्से में इस्लाम क़बूल किया था और क़बूल-ए-इस्लाम से क़बल या बाद में उमर गौतम साहिब से मुलाक़ात करके उनसे दस्तावेज़ात बनवाने में मदद हासिल की थी। हेल्पलाइन नंबर और ईमेल आई डी जारी की गई है, ताकि उन पर वो लोग राबता कर सकें जिन्हें ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन का शिकार बनाया गया, मगर दिल-चस्प बात ये है कि एक भी मर्द, औरत, नौजवान या दोशीज़ा सामने नहीं आई है जिसने ये कहा हो कि इस पर मज़हब बदलने के लिए ज़बरदस्ती की गई, या किसी चीज़ का लालच दिया गया, बल्कि सोशल मीडीया पर बहुत से ऐसे नौजवानों और दोशीज़ाओं के वीडीयोज़ वाइरल हो रहे हैं, जिनमें इन्होंने साफ़ अलफ़ाज़ में गवाही दी है कि इस्लाम क़बूल करने का फ़ैसला उनका अपना है। वो अपने राबते में आने वाले कुछ मुस्लमानों के किरदार और अख़लाक़ से मुतास्सिर हुए, या इन्होंने इस्लामी तालीमात का मुताला करने के बाद सोच समझ कर इस्लाम क़बूल किया है। बाद में उन्हें तबदीलई मज़हब के सिलसिले के काग़ज़ात बनवाने की ज़रूरत महसूस हुई तो इन्होंने उम्र गौतम साहिब से राबिता किया था, जिन्होंने इस मुआमले में उनकी मदद की थी।

कुछ वाक़ियात ब-ज़ाहिर नापसंदीदा या तकलीफ़-दह होते हैं, लेकिन मशी्यत-ए-इलाही से उनमें बहुत कुछ ख़ैर पोशीदा होता है। ये अल्लाह ताला की सुन्नत है, जो ज़माना-ए-क़दीम से जारी है। अल्लाह ताला का इरशाद है ” हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें पसंद ना हो, मगर अल्लाह ने इसी में बहुत कुछ भलाई रख दी हो।( अलनिसा-ए- 19)

डाक्टर उम्र गौतम और उनके रफ़ीक़ की गिरफ़्तारी इन तमाम लोगों के लिए तकलीफ़-दह है जो उन्हें बेक़सूर और उन पर लगाए जानेवाले इल्ज़ामात को बे-बुनियाद समझते हैं । लेकिन इस में ख़ैर का पहलू ये है कि तबदीलई मज़हब का मौज़ू उस वक़्त पूरे मुल्क में छा गया है, इस पर मुबाहिसा-ओ-मुज़ाकरा जारी है, टीवी डिबेटस हो रहे हैं, अरबाब-ए-दानिश इस पर इज़हार-ए-ख़्याल कर रहे हैं और जो नौजवान लड़के और लड़कीयां अपने मज़हब से मुतमइन नहीं हैं, या इस्लामी तालीमात से मुतास्सिर हैं उन्हें मालूम हो गया है कि कैसे इस्लाम क़बूल किया जा सकता है।

हैरत है कि ज़बरदस्ती तबदीलई मज़हब का इल्ज़ाम वो लोग लगाते हैं जिनकी क़दीम तारीख़ उनके जौर-ओ-सितम से भरी हुई है, जिन्होंने अपने अहद-ए-उरूज में मज़हबी अक़ल्लीयतों पर तरह तरह के मज़ालिम ढाए हैं और ज़ोर ज़बरदस्ती लाखों इन्सानों का मज़हब बदलवाया है और जो इस पर तैयार नहीं हुए उन्हें ज़िंदा रहने के हक़ से महरूम किया है। और ये इल्ज़ाम उन लोगों पर लगाया जा रहा है जिनका मज़हब अक़ीदा-ओ-मज़हब की आज़ादी का ज़बरदस्त हामी है और ज़ोर ज़बरदस्ती मज़हब बदलवाने से सख़्ती से मना करता है।

क़ुरआन-ए-मजीद में है ” दीन के मुआमले में कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है। सही बात ग़लत ख़्यालात से अलग छांट कर रख दी गई है। (अलबकरा : 256) अल्लाह ने अपने पैग़ंबर को ज़बरदस्ती मज़हब क़बूल करवाने से सख़्ती से मना किया है: “अगर तेरे रब की मशी्यत ये होती कि ज़मीन में सब मोमिन-ओ-फ़र्मांबरदार ही हूँ तो सारे अहल-ए-ज़मीन ईमान ले आए होते। फिर किया तो लोगों को मजबूर करेगा कि वो मोमिन हो जाएं?”(यूनुस :99) जो लोग दिल से ईमान ना लाएंगे, इस्लाम की नज़र में उनकी कोई हैसियत नहीं, बल्कि वो उन्हें सख़्त मबग़ूज़ क़रार देता है। उन्हें ‘मुनाफ़क़ीन कहा गया है और उन्हें जहन्नुम के सबसे निचले दर्जे में होने की वईद सुनाई गई है। इन बुनियादी तालीमात के होते हुए इस्लाम को मानने वाले दीगर मज़ाहिब वालों को क्यूँ-कर ज़ोर ज़बरदस्ती अपने मज़हब में शामिल करने की कोशिश कर सकते हैं।

इस्लाम दावत-ओ-तब्लीग़ का मज़हब है। हर मुस्लमान मिशनरी जज़बा रखता है। इस का मज़हब इस पर लाज़िम करता है और वो अपनी ज़िम्मेदारी समझता है कि वो जिस हक़ का हामिल है उसे दूसरे तमाम इन्सानों तक पहुंचा दे। अगर वो ये काम कर दे तो इस का फ़र्ज़ अदा हो गया, अब चाहे दूसरे उस की बात मानें या ना मानें, वो बातिल अक़ाइद और औहाम-ओ-ख़ुराफ़ात से किनारा-कश हूँ या ना हूँ, हक़ को क़बूल करें या ना करें, ये उनका मसला है, उन्हें उस की आज़ादी हासिल है।

जो मुस्लमान दावत-ओ-तब्लीग़ का ये काम अंजाम दे रहे हैं वो इंतिहाई काबिल-ए-मुबारकबाद हैं। इस राह में अगर वो आज़माईशों से दो-चार होंगे तो बारगा ह्-ए-इलाही में इस का भरपूर बदला पाएँगे। जो मुस्लमान ये काम नहीं कर रहे हैं उन्हें अल्लाह ताला से इस की तौफ़ीक़ तलब करनी चाहिए।

एक बात ये भी तवज्जा तलब है कि इस्लामी तालीमात अपने अंदर बे-इंतिहा कशिश रखती हैं। मसलन उस की मुसावात की तालीम उन लोगों को बेहद मुतास्सिर करती है जिनमें ज़ात पात की बुनियाद पर इन्सानों के दरमयान तक़सीम रवा रखी गई है और कुछ इन्सानी तबक़ात के साथ सदीयों तक जानवरों जैसा सुलूक किया गया और अब भी इस रवी्ये में तबदीली नहीं आई है। इस्लाम ने ख़वातीन को माँ, बहन, बीवी, बेटी, हर हैसियत में बुलंद मुक़ाम दिया है। इस की ये तालीमात उन औरतों और लड़कीयों को बहुत ज़्यादा भली मालूम होती हैं जिनके मज़हब में औरतों को हक़ीर समझा गया है और मर्दों से कमतर हैसियत दी गई है। इसलिए अगर कुछ लोग, ख़ाह वो मर्द हूँ या ख़वातीन, इस्लाम की तालीमात से मुतास्सिर हो कर उस की तरफ़ लपकते हैं और अपनी आज़ाद मर्ज़ी से उसे क़बूल करते हैं तो उन्हें उस का हक़ हासिल है। उन्हें इस हक़ से महरूम नहीं किया जा सकता।

आख़िरी बात ये कि किसी भी मज़हब को और खासतौर पर इस्लाम को ज़ोर ज़बरदस्ती दबाना मुम्किन नहीं। ये बात उन लोगों को अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए जो ताक़त-ओ-क़ुव्वत, जाह-ओ-इक़तिदार या माल-ओ-दौलत के नशे में चूर हैं। इस वाक़िया ने ज़ाहिर कर दिया है कि जिन नौजवान लड़कों और लड़कीयों ने इस्लाम क़बूल किया है उनमें इस्तिक़ामत पाई जाती है। वो किसी धौंस और धमकी से डरने वाले नहीं हैं। उनके अंदर दावती और मिशनरी स्परिट पाई जाती है। उनकी वजह से इस मुल्क में इस्लाम का मुस्तक़बिल रोशन है। जितना उसे दबाने की कोशिश की जाएगा, इतना ही वो उभरेगा, इंशा-ए-अल्लाह।

Tags: Forcibly changing religionधर्म परिवर्तन
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