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चंडीगढ़: बंटवारे के वक्‍त गुरुद्वारे में कुरान छोड़ गए मुस्लिम, 75 साल बाद मुसलमानों को सौंपा गया

RK News by RK News
September 18, 2022
Reading Time: 1 min read
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चंडीगढ़: बंटवारे के वक्‍त गुरुद्वारे में कुरान छोड़ गए मुस्लिम, 75 साल बाद मुसलमानों को सौंपा गया

नई दिल्ली: पंजाब में जालंधर के गांव बुट्टर में सिख-मुस्लिम सद्भावना की अनोखी मिसाल देखने को मिली, दरअसल आजादी से पहले लिखी एक कुरान शरीफ को गुरुद्वारा सिंह सभा कमेटी ने मुस्लिम समुदाय को सौंपा है।

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मुख्य ग्रंथी गुरमेल सिंह ने बताया कि विभाजन से पहले गुरुद्वारा सिंह सभा की इमारत में मस्जिद थी, वहीं देश के विभाजन के दौरान मुस्लिम परिवारों को गांव छोड़ना पड़ा था। ऐसे में वो इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ को मस्जिद में ही छोड़ गए थे।

अब 1938 के समय के कुरान को गुरुद्वारा सिंह सभा कमेटी ने मुस्लिम समुदाय के हवाले कर दिया है। बता दें कि बुट्टर गांव के बुजुर्ग लोगों ने बताया कि बंटवारे से पहले तीन मुस्लिम परिवार एक कमरे वाले गुरुद्वारे के आसपास रहते थे, बंटवारे के दौरान जब मुस्लिम परिवार को पाकिस्तान जाना पड़ा तो उन्होंने गुरुद्वारे के तत्कालीन संरक्षक को कुरान शरीफ सौंप दी थी।

गुरुद्वारा कमेटी तब से ही कुरान शरीफ का रखरखाव कर रहा था, इसे गुरुद्वारे में अन्य पवित्र शास्त्रों के साथ एक कपड़े में लपेट कर पूरे सम्मान के साथ रखा गया था।

वहीं लगभग चार साल पहले, जब गुरमेल सिंह गुरुद्वारे के ग्रंथी बने तो उन्होंने ग्रामीणों के सामने विचार रखा कि पवित्र पुस्तक को मुस्लिम समुदाय को सुरक्षित रूप से सौंप दी जानी चाहिए।

ग्रंथी ने कुरान को लेकर बताया, “हम इसे तभी खोलते थे जब कोई ग्रामीण या गुरुद्वारे में आने वाले आगंतुक इसके दर्शन के लिए आग्रह करते थे। इस किताब को लाहौर में आजादी से पहले किसी ने लिखा था।

हालांकि यह आज भी अच्छी स्थिति में है, हमने शुरू में सोचा था कि हम इसे गांव के कुछ गुर्जर परिवारों को सौंप सकते हैं, लेकिन फिर हमें सुझाव मिला कि जालंधर शहर में पुरानी इमाम नासिर मस्जिद इसके लिए सबसे उपयुक्त जगह होगी।

ग्रंथी ने कहा कि इसको लेकर मैं गुरुद्वारा कमेटी के सदस्यों और कुछ ग्रामीणों के साथ इमाम नासिर मस्जिद गया और वहां मौलाना मोहम्मद अदनान जमाई से मिला, मौलाना ने कुरान को सौंपने की बात कही और हमने उन्हें गुरुद्वारे में इसे लेने का आमंत्रण दिया।

गुरमेल सिंह ने कहा, “हमने उनसे किताब का मूल पढ़ने का अनुरोध किया। उन्होंने हमें बताया कि यह हस्तलिखित कुरान 1938 में तैयार की गई थी। वे खुशी-खुशी इसे अपने साथ ले गए।”

 

 

 

 

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