नई दिल्ली: उत्तराखंड के खूबसूरत शहर नैनीताल पर इस समय बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है, वहां की पहाड़ियां तेजी से दरक रही है, धंस रही हैं, गिर रही हैं, उनसे गिरने वाले चूना पत्थर झीलों में जा रहे हैं।
आज तक ऑनलाइन की कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि भूगर्भ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर नैनीताल में निर्माण कार्य रोके नहीं गए तो इस खूबसूरत पर्यटक शहर को बचा पाना मुश्किल होगा।
अंग्रेजों ने नैनीताल को बसाया था, साफ-सुथरे वातावरण और सभी सुविधाओं से युक्त एक शहर, यहां का हवा-पानी सेहत के हिसाब से बेहतरीन था, अंग्रेजों ने नैनीताल में आबादी तय कर रखी थी कि इससे ज्यादा जनसंख्या यहां नहीं होनी चाहिए।
क्योंकि तब भी यह इलाका भूगर्भीय बदलावों के अनुसार संवेदनशील था, नैनीताल का मॉल रोड तो शुरुआत से ही काफी नाजुक इलाके पर बसा है, ऐसे में 1880 में आए विनाशकारी भूस्खलन की याद आती है।
18 सितंबर, 1880 को नैनीताल की आबादी 10 हजार से भी कम थी, तब नैनीताल की अल्मा पहाड़ी, जिसे सात नंबर भी कहते हैं, वहां पर भयानक भूस्खलन हुआ, इसमें 43 ब्रिटिश नागरिकों समेत 151 लोगों की मौत हो गई थी।
नैनीताल के इतिहास का सबसे दर्दनाक दिन गिना जाता है इसे, इसके बाद नैनीताल के लोगों की दुनिया बदल गई, तब से यहां पर पहाड़ियों के भार-वहन क्षमता के आकलन की बात होने लगी।
नैनीताल में 24 जुलाई 2022 यानी रविवार को फिर अल्मा हिल यानी सात नंबर पर एक बड़ा भूस्खलन हुआ, यह भूस्खलन 1 घंटे की बारिश के बाद हुआ। भूस्खलन की चपेट में कई मकान भी आ गए, स्नोव्यू का जाने वाला रास्ता भी इसी भूस्खलन से बर्बाद हो गया, 50 मीटर के दायरे में पहाड़ी दरक गई, मार्ग के कई पेड़ उखड़ गए, इसके बाद से इस इलाके में दहशत का माहौल बना हुआ है, दर्जनभर से अधिक परिवारों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।