नई दिल्ली। उर्दू भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए स्थापित की गई बिहार उर्दू अकादमी पिछले दस वर्षों से पूरी तरह सक्रिय नही है और उर्दू अकादमी का कोई नियमित सचिव भी नहीं है। इस संबंध में राज्य सरकार से समय-समय पर अनुरोध किया गया, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। देश के कई राज्यों की तरह बिहार राज्य में भी उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा प्राप्त है और पूरे देश में उर्दू भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने में बिहार के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। क्योंकि भारत सरकार के प्रमुख संस्थानों के मुखिया हों या देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के उर्दू विभाग, हर जगह बिहार के स्कूल-कॉलेजों से पढ़े लोग मौजूद हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि बिहार में उर्दू को विशेष दर्जा प्राप्त है और भारी संख्या में लोग उर्दू भाषी हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बिहार में उर्दू को कठिन दौर से गुजरना पड़ रहा है।
नई शिक्षा नीति में भी मातृभाषा में शिक्षा की बात कही गई है। लेकिन शिक्षा विभाग बिहार सरकार के 2020 के आदेश में मातृभाषा का कोई जिक्र नहीं है। जब कि लाखों लोगों की मातृभाषा उर्दू है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह स्कूल स्तर पर उर्दू में शिक्षा सुनिश्चित करे। इसके साथ ही सरकारी बैनर, पोस्टर और विज्ञापनों में उर्दू भाषा को भी दूसरी सरकारी भाषा के तौर पर उचित स्थान दिया जाना चाहिए, जो नहीं दिया जा रहा है।
उर्दू डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सैयद अहमद खान ने कहा कि उर्दू भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए 1972 में बिहार उर्दू अकादमी की स्थापना की गई थी, लेकिन पिछले दस वर्षों से इसकी गतिविधियां ठप पड़ी हैं और कोई नियमित सचिव भी नहीं है। यह संस्था अन्य प्रान्तों की भाँति बिहार के उर्दू लेखकों एवं कवियों की पुस्तकों पर पुरस्कार देने, उनके मसोदों को प्रकाशित करने के साथ-साथ उर्दू पुस्तकालय को अनुदान देने, कविता-पाठ, सेमिनार एवं सम्मेलनों के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान करती थी, लेकिन अब ये सभी गतिविधियाँ बंद हैं। उर्दू मुशावरती कमेटी भी भंग पडी है, उर्दू मुशावरती कमेटी काम राज्य सरकार को उर्दू के इशूज और सुझाव व सलाह देना था वो भी ठप पड़ी है। डॉ. सैयद अहमद ने आगे कहा कि बिहार सरकार ने कई अच्छे काम भी किए हैं, जिनमें से एक बड़ा काम यह है कि पिछले कुछ वर्षों में उर्दू में पढ़ाई करने वालों को स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और ब्लॉक स्तर पर नौकरियां दी गई हैं, जो अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल है। बिहार राज्य इस मामले में सराहनीय है कि देश के अन्य राज्यों से सैकड़ों लोग यहां के स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं। पिछली सरकारों की तरह नीतीश कुमार सरकार भी उर्दू समर्थक है, इसलिए हमें उम्मीद है कि वे जल्द ही बिहार में उर्दू की समस्याओं को हल करने का प्रयास करेंगे और बिहार उर्दू अकादमी, सरकारी उर्दू लाइब्रेरी, खुदा बख्श लाइब्रेरी जैसी संस्थाओं को और मजबूत करेंगे तथा प्राइमरी, मिडिल और हाई स्कूल स्तर पर उर्दू भाषा को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाएगा, जिससे उर्दू भाषी प्रेमियों में फैली चिंता भी कम होगी।