बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) प्रक्रिया पर खासा विवाद है। 6 अक्टूबर 2025 को शाम 4 बजे ईसीआईचुनाव तारीखों की घोषणा करने वाला है। ऐसे में कई सवाल उठे हैं: क्या लाखों नामों की डिलीशन पर अंतिम फैसला हो चुका है? क्या सुप्रीम कोर्ट की 29 अगस्त 2025 की चेतावनी व्यर्थ हो गई? क्या यह प्रक्रिया वोट चोरी का जरिया बनी? लेकिन इन सवालों का जवाब आए बिना शाम को चुनाव की तारीखों का पता चल जाएगा।
बिहार में एसआईआर: प्रक्रिया और विवाद
ईसीआई ने 24 जून 2025 को बिहार में एसआईआर का आदेश दिया था। इसका मकसद मृत, ट्रांसफर या डुप्लिकेट नामों को हटाना था। जनवरी 2025 की संक्षिप्त पुनरीक्षण सूची में 7.89 करोड़ मतदाता थे। एसआईआर के बाद ड्राफ्ट सूची (1 अगस्त 2025) में 7.24 करोड़ नाम बचे, यानी 65 लाख नाम डिलीट हुए। अंतिम सूची (30 सितंबर 2025) में 7.42 करोड़ नाम हैं यानी 21.53 लाख नए जोड़े गए, लेकिन कुल डिलीशन 68.5 लाख हो गई। इस तरह मतदाता सूची से 68 लाख नाम बाहर हो गए हैं।
ईसीआई का दावा है कि यह “22 साल का शुद्धिकरण” है, लेकिन विपक्ष (आरजेडी, कांग्रेस, इंडिया गठबंधन) इसे “वोट चोरी” बता रहा है। आंकड़ों से पता चलता है कि डिलीट नामों में 60% महिलाएं हैं, जो प्रवासी श्रमिकों और गरीब तबकों पर सीधी चोट है। बिहार में 75 लाख लोग अन्य राज्यों में प्रवासित हैं, और दस्तावेजों (जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट आदि) की कमी से लाखों वास्तविक मतदाता बाहर हो चुके हैं। एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने कहा कि एसआईआर ने “लाखों को मनमाने ढंग से वोट से वंचित किया”, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (अभिव्यक्ति) और 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने एसआईआर को “मतदाता-अनुकूल” कहा था, लेकिन “मास एक्सक्लूजन” यानी बड़े पैमाने पर नाम हटाने (डिलीट) करने पर फौरन हस्तक्षेप की चेतावनी दी थी। जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाला बागची की बेंच ने 29 जुलाई 2025 और 29 अगस्त 2025 को याचिकाकर्ताओं (एडीआर, पीयूसीएल, योगेंद्र यादव, आरजेडी सांसद मनोज झा) की आपत्तियों को सुना। कोर्ट ने कहा: “ईसीआई संवैधानिक संस्था है, लेकिन अवैधता साबित होने पर हम हस्तक्षेप करेंगे।”












