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असम में 171 फर्जी एनकाउंटर किलिंग का आरोप, एडवोकेट आरिफ यासिन की याचिका पर सुप्रीम का जांच का आदेश

RK News by RK News
May 28, 2025
Reading Time: 1 min read
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असम में 171 फर्जी एनकाउंटर किलिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार आयोग को निष्पक्ष जांच के आदेश दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट आरिफ यासिन जवाद्दर की याचिका पर यह आदेश दिया है. आरिफ यासिन ने गौहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें मामले की स्वतंत्र जांच की मांग कोर्ट ने ठुकरा दी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने मामले पर सुनवाई की. उन्होंने कहा कि पुलिस पर लगाया गया यह आरोप बहुत गंभीर है. कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक प्राधिकारियों की ओर से पीड़ितों पर अत्यधिक और गैर-कानूनी बल का इस्तेमाल किए जाने को वैध नहीं माना जा सकता है.
कोर्ट ने कहा- ये संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन
बेंच ने कहा कि आरोप है कि एनकाउंटर में कुछ फर्जी भी हो सकते हैं, वास्तव में यह बहुत गंभीर है और अगर यह सही साबित होता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो जीवन का अधिकार देता है. कोर्ट ने कहा कि यह भी संभव है कि निष्पक्ष जांच में सामने आए कि कुछ मामले कानूनी रूप से उचित और जरूरी थे.
बेंच ने कहा कि राज्य की ओर से चिन्हित कुछ मामलों का आगे मूल्यांकन किया जाना भी जरूरी है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि पूर्व में सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन किया गया या नहीं. इसके बाद कोर्ट ने मामला जांच के लिए मानवाधिकार आयोग के पास भेज दिया.
पीड़ितों को भी जांच में शामिल करें, बोला कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़ितों और उनके परिवारों को भी कोर्ट की कार्यवाही में शामिल होने का अवसर मिलना चाहिए. कोर्ट ने मानवाधिकार आयोग को निर्देश दिया है कि इस संबंध में वह एक पब्लिक नोटिस जारी करे. कोर्ट ने कहा कि अगर आयोग को ऐसा लगता है कि आगे जांच की जरूरत है तो उन्हें इसकी भी अनुमति दी जाएगी. कोर्ट ने आयोग को जांच के लिए रिटायर्ड या सेवा दे रहे पुलिस अधिकारियों की मदद लेने की भी इजाजत दी है, लेकिन ये अधिकारी एनकाउंट में शामिल पुलिस कर्मियों के संपर्क में नहीं होने चाहिए.
आरिफ यासीन ने याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दायर करने की मांग की है, जिन पर फर्जी एनकाउंटर के आरोप लगे हैं. हालांकि, असम सरकार का कहना है कि पिछले दस सालों में 10 परसेंट ही मामले ऐसे हैं, जिनमें पुलिस एक्शन में अपराधियों को चोट आई हों और ये कार्रवाई भी पुलिस ने सेल्फ डिफेंस में की थीं.

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